20 जुलाई 1969.. 8 बजकर 26 मिनट... यह एक ऐसा पल था, जब पृथ्वी के तीन मनुष्यों ने वह करिश्मा कर दिखाया, जिसकी कल्पना तब तक महज कहानी-किस्सों में की जाती थी. हां, मैं जिक्र कर रहा हूं उन तीन मनुष्यों का जिसने चंद्रमा जैसे उपग्रह पर पहला फतह हासिल किया. चंद्रमा पर पहला कदम रखने वाले ये आसाधारण व्यक्तित्व थे नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन. आज सारा विश्व इस कामयाबी की पचासवीं वर्षगांठ मना रहा है. आइए जानें यह पूरा असंभव सा मिशन कैसे पूरा हुआ.
चंद्रमा तक पहुंचने वाला पहला सोवियत स्पेसक्राफ्ट लूना-2
चंद्रमा के धरातल पर पहली बार उतरने वाला मानव निर्मित मगर मानव रहित पहला सोवियत स्पेसक्राफ्ट था, लूना-2. जो 14 सितंबर 1959 के दिन चंद्रमा की धरातल को स्पर्श कर बताया था कि चांद पर न ही चुंबकीय प्रभाव है ना ही वहां सौर हवा मौजूद है. वास्तव में चांद पर पहुंचने वाला लूना-2 सोवियत रूस का छंठवा प्रयास था. इसमें पहले तीन प्रयास उड़ान के समय ही असफल साबित हुए थे, जबकि लूना-1 चांद के करीब से गुजर गया था. लूना-2 चांद पर उतरने से पहले करीब 36 घंटे तक चंद्रमा के ऊपर उड़ते हुए चंद्रमा के नेचर को पहचानने की कोशिश करता रहा. अलबत्ता चांद पर उतरते समय यह स्पेसक्राफ्ट क्रैश हो गया.
चंद्रमा पर पहला मानव कदम
सोवियत स्पेसक्राफ्ट लूना-2 के बाद 16 जुलाई 1969 के दिन केप केनेडी से अमेरिकी अंतरिक्ष यान अपोलो-11 चांद की ओर रवाना हुआ. अपोलो-11 में कुल तीन अंतरिक्ष यात्री उपस्थित थे, नील आर्मस्ट्रांग, माइकल कालिंस और एडविन एल्ड्रिन. चांद के करीब पहुंचकर परिक्रमा यान से चंद्रयान ईगल अलग हो गया. चंद्रयान ईगल नील आर्मस्ट्रांग और एडविन एल्ड्रिन को लेकर रात 1 बजकर 47 मिनट पर चंद्रमा के शांति सागर मैदान में उतरा. उधर योजनानुसार परिक्रमा यान कोलंबिया चंद्रमा की सतह से करीब 96 किमी ऊपर जाकर चंद्रमा की परिक्रमा करता रहा. इस समय कोलंबिया यान को हैंडल कर रहे थे माइकल कालिंस.
रोमांचित नील आर्मस्ट्रांग ने बताया चंद्रमा क्या है
चंद्रमा के शांति सागर मैदान पर कुछ देर ईगल यान में गुजारने के बाद सर्वप्रथम नील आर्मस्ट्रांग ने सीढियों की मदद से चंद्रमा की सतह पर कदम रखा. बताया जाता है कि ऐसा करते हुए वे जितने रोमांचित थे, उतने ही भाव विभोर भी कि कल तक कवियों की कल्पना बनें चांद को उन्होंने साकार कर दिखाया था. नील आर्मस्ट्रांग के बाद एडविन एल्ड्रिन भी चंद्रमा की सतह पर उतरे. कहा जाता है कि लगभग साढ़े तीन घंटे चंद्रमा की सतह पर चहलकदमी करते हुए दोनों अंतरिक्ष यात्रियों ने चंद्रमा के वातावरण, धरातल और मिट्टी की जांच परख की और बताया कि चंद्रमा पर बड़े-बड़े पत्थर नजर आ रहे हैं, पृथ्वी की तुलना में चंद्रमा की सतह अपेक्षाकृत ज्यादा कड़ी थी. चंद्रमा की मिट्टी पृथ्वी के रेगिस्तान जैसी थी.
चांद की सुंदरता से प्रभावित थे एडविन एल्ड्रिन
एडविन एल्ड्रिन चांद से बहुत प्रभावित थे, उनका कहना था कि चांद के दृश्य बहुत सुंदर हैं. चांद की चट्टानें बैगनी रंग की दिख रही थी. चंद्रमा पर सूर्य की रोशनी पड़ रही थी, जिसकी वजह से वहां की चट्टानें चमक रही थीं. हालांकि चारों ओर खामोशी थी. इसके पश्चात दोनों अंतरिक्ष यात्रियों ने चंद्रमा की सतह से मिट्टी और चट्टानों के टुकड़े लिए, ताकि अमेरिका में वैज्ञानिक इस पर शोध कर सकें. इसके पश्चात चांद से पृथ्वी की ओर लौटते समय अपोलो-11 यान से नील आर्मस्ट्रांग ने चांद को निहारते हुए कहा गुड नाइट! इस तरह अपने वैज्ञानिकों के सहयोग से तीन मनुष्यों ने असंभव से लग रहे चांद पर फतह हासिल किया.
साढ़े तीन सौ साल पहले देखा था चांद का भीतरी नजारा वैज्ञानिक गैलीलियो ने
इंसानी फितरत ही ऐसी है कि वह हर चीज के रहस्य को दुनिया के सामने लाना चाहती है. करीब साढ़े तीन सौ साल पहले 1610 में गैलीलियो ने अपनी दूरबीन से चांद को देखकर बताया था कि चांद की सतह उबड़-खाबड़ है. चांद की धरातल पर कहीं गड्ढे हैं तो कहीं चट्टानें. ठीक उसी तरह जैसे पृथ्वी पर पर्वत एवं खाइयां हैं. संभवतया तभी इंसान ने सोच लिया था कि वह चंद्रमा के तिलिस्म को एक दिन जरूर तोड़ेंगे. अंततः यह करिश्मा कर दिखाया नील आर्मस्ट्रांग, माइकल कालिंस और एडविन एल्ड्रिन ने.
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हालांकि चंद्रमा पर पहला कदम रखने वाले नील आर्मस्ट्रांग अब खाकसार हो चुके हैं. ह्रदय रोग से पीड़ित इस अंतरिक्ष यात्री का 82 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. लेकिन चांद पर पहला कदम रखते हुए उन्होंने अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा था, ‘पृथ्वी ग्रह से चांद पर हमने पहली बार कदम रखा. हम यहां समस्त मानव जाति के लिए शांति की कामना लेकर आए हैं.’ उम्मीद है विश्व की शक्तियां नील आर्मस्ट्रांग की भावनाओं का पूरा सम्मान करेगा.