VIDEO: 'मेरे बच्चे को किसी ने छुआ तक नहीं...' एक पिता का दर्द और सिस्टम की वो नाकामी, जिसने छीन ली मासूम आर्यन की जान

सोचिए, एक पिता अपने कुछ घंटों के बच्चे को गोद में उठाए, इस उम्मीद से अस्पताल भागता है कि डॉक्टर उसके बच्चे आर्यन (Aryan) को बचा लेंगे. उसकी आंखों में डर होता है, लेकिन दिल में भरोसा होता है कि यहाँ उसके जिगर के टुकड़े को कुछ नहीं होगा. लेकिन क्या हो जब वही अस्पताल, वही डॉक्टर और वही सिस्टम उसके भरोसे को तोड़ दे और उसकी गोद में ही उसका बच्चा दम तोड़ दे?

यह कोई फिल्मी कहानी नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश के फतेहपुर में रहने वाले शाहरुख नाम के एक बेबस पिता की सच्ची और दर्दनाक हकीकत है.

क्या हुआ था उस दिन?

फतेहपुर के लाखीपुर गांव के रहने वाले शाहरुख के घर एक नन्ही जान ने कदम रखा था. नाम रखा आर्यन. लेकिन कुछ ही देर में आर्यन की तबीयत बिगड़ने लगी. घबराया हुआ शाहरुख अपने नवजात बेटे को लेकर तुरंत जिले के सरकारी अस्पताल पहुंचा. उसे लगा कि अब सब ठीक हो जाएगा, डॉक्टर हैं, दवाइयां हैं, आर्यन बच जाएगा.

लेकिन अस्पताल पहुँचकर उसका सामना उम्मीद से नहीं, बल्कि एक पत्थरदिल सिस्टम से हुआ. परिवार का आरोप है कि वहाँ मौजूद डॉक्टरों ने बच्चे की गंभीर हालत को देखकर भी उसे हाथ तक नहीं लगाया. शाहरुख गिड़गिड़ाता रहा, मदद की भीख मांगता रहा, लेकिन किसी का दिल नहीं पसीजा. बच्चे को साँस लेने में तकलीफ हो रही थी, उसे ऑक्सीजन की सख्त जरूरत थी, पर उसे ऑक्सीजन सिलेंडर तक नहीं दिया गया.

"10 मिनट में सब खत्म हो गया"

शाहरुख के लिए वो 10 मिनट शायद जिंदगी के सबसे भारी 10 मिनट थे. उसकी आँखों के सामने, उसकी गोद में उसका बेटा बिना किसी इलाज के तड़पता रहा और आखिरकार उसने दम तोड़ दिया. जिस बच्चे की किलकारी घर में गूंजनी थी, उसकी मौत ने पूरे परिवार में मातम फैला दिया.

इस घटना का एक वीडियो भी सामने आया है, जिसे देखकर किसी का भी दिल दहल जाए. वीडियो में शाहरुख जमीन पर बैठे हैं, अपने मरे हुए बेटे को सीने से लगाए फूट-फूट कर रो रहे हैं. उनके मुँह से बस एक ही बात निकल रही है, "मैं मर जाता लेकिन मेरे बच्चे को किसी ने हाथ नहीं लगाया सर..."

यह एक लाइन उस पिता के दर्द, बेबसी और सिस्टम के प्रति गुस्से को बयां करने के लिए काफी है.

सवाल जो पीछे रह गए

आर्यन की मौत सिर्फ एक बच्चे की मौत नहीं है. यह हमारे स्वास्थ्य सिस्टम पर एक बहुत बड़ा सवालिया निशान है.

  • क्या एक गरीब की जान इतनी सस्ती है कि कोई उसकी परवाह ही न करे?
  • अस्पतालों में इमरजेंसी का मतलब क्या रह जाता है, अगर वहां पहुंचने पर भी तुरंत इलाज न मिले? इस मासूम की मौत का जिम्मेदार कौन है? वो डॉक्टर जिन्होंने उसे छुआ तक नहीं, या वो पूरा सिस्टम जो अंदर से खोखला हो चुका है?

आर्यन तो चला गया, लेकिन अपने पीछे कई कड़वे सवाल छोड़ गया है, जिनका जवाब शायद इस बेबस पिता को कभी नहीं मिलेगा.