क्या तुलसीदास ने रामचरितमानस में ही कोरोना वायरस की भविष्यवाणी कर दी थी? क्या कहती हैं उत्तरकाण्ड की ये चौपाइयां!
रामचरितमानस में कोरोना वायरस का जिक्र (Photo Credits: Book cover and Pixabay)

Coronavirus Prediction: कोरोना वायरस (Coronavirus) की महामारी के खौफ से संपूर्ण दुनिया में भय का वातावरण व्याप्त है. इसके साथ ही इस संदर्भ में तमाम तरह की बातें भी देखी और सुनी-सुनाई जा रही है. कुछ लोग अपनी दलीलों से यह साबित कर रहे हैं कि इसकी भविष्यवाणी तो बहुत पहले फलां व्यक्ति ने कर दी थी. पिछले दो-ढाई माह से इस तरह के तर्क-कुतर्क से भरी सामग्री सोशल मीडिया पर पोस्ट और शेयर किये जा रहे हैं. कुछ लोग कुछ पुस्तक विशेष में प्रकाशित अंशों का तर्क देकर इसे दुनिया के अंत के रूप में तरह-तरह की बातें कर रहे हैं.

अब इसी कोरोना वायरस जैसी महामारी के संदर्भ में एक नया तर्क यह जोड़ा जा रहा है कि गोस्वामी तुलसीदास द्वारा लिखित महाकाव्य श्रीरामचरितमानस  के उत्तरकाण्ड की कुछ चौपाइयां कोरोनावायरस के प्रकोप की भविष्यवाणी थी, जिसका खुलासा गोस्वामी तुलसीदास जी ने 16वीं शताब्दी में ही कर दिया था. रामायण में सीता का रोल निभाने वाली दीपिका चिखलिया का शॉकिंग खुलासा

महाकाव्य रामचरितमानस को भारतीय संत एवं भक्तिरस के महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने 16वीं शताब्दी में लिखा था. माना जाता है कि यह महाकाव्य संस्कृत के महाकवि वाल्मिकि की संस्कृत भाषा में लिखी रामायण का पुनःकथन है, इसे अवधी और भोजपुरी मिश्रित भाषा में लिखा गया है ताकि भगवान श्रीराम की कहानी आमजन तक पहुंचाई जा सके. आइये जानें रामचरितमानस के किस अध्याय में कोरोनावायरस से संबंधित अंश हैं.

क्या हैं चौपाइयां

महाकाव्य रामचरितमानस के उत्तरकाण्ड के दोहा नंबर 120 के बाद चौपाई नंबर 17 में उल्लेखित है

* सब कै निंदा जे जड़ करहीं। ते चमगादुर होइ अवतरहीं॥

सुनहु तात अब मानस रोगा। जिन्ह ते दुख पावहिं सब लोगा॥14॥

इसका आशय है कि जो मूर्ख मनुष्य सब की निंदा करते हैं, वे चमगादड़ होकर जन्म लेते हैं. हे तात! अब मानस रोग सुनिए, जिनसे सब लोग दुःख पाया करते हैं.

इसी क्रम की अगली चौपाई नंबर 15 में लिखा है,

"मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला। तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला

काम बात कफ लोभ अपारा। क्रोध पित्त नित छाती जारा ॥15

अर्थात

भावार्थ:-सब रोगों की जड़ मोह (अज्ञान) है. उन व्याधियों से फिर और बहुत से शूल उत्पन्न होते हैं. काम वात है, लोभ अपार (बढ़ा हुआ) कफ है और क्रोध पित्त है जो सदा छाती जलाता रहता है.

इसी क्रम की अगली पंक्तियां हैं,

“प्रीति करहिं जौं तीनिउ भाई। उपजइ सन्यौत दुखदाई ।।

बिषय मनोरथ दुर्गम नाना। ते सब सूल नाम को जाना।।16

अर्थात यदि कहीं ये तीनों भाई (वात, पित्त और कफ) प्रीति कर लें (मिल जाएं), तो दुःखदायक सन्निपात रोग (तेज बुखार) उत्पन्न हो जाता है. कठिनता से प्राप्त (पूर्ण) होने वाले जो विषयों के मनोरथ हैं, वे ही सब शूल (कष्टदायक रोग) हैं, उनके नाम कौन जानता है. (अर्थात्‌ वे अपार हैं)॥

इस तरह रामचरितमानस की इन तीनों चौपाइयों को कुछ लोग कोरोनावायरस की चेतावनियों से जोड़कर देख रहे हैं. सार यह निकाला जा रहा है कि जब पृथ्वी के सारे पापों का उदय होगा, तो एक भयंकर महामारी जन्म लेगी, और चमगादड़ के संदर्भ में कोरोनावायरस की उत्पत्ति से भी जोडते हुए कहा जा रहा है कि यह चीन में चमगादड़ों से ही विकसित हुआ था, इसीलिए बहुत से लोगों का मत है कि रामचरित मानस के माध्यम से गोस्वामी तुलसीदास जी ने 16वीं शताब्दी में ही कोरोनावायरस जैसे प्रकोप की भविष्यवाणी कर दी थी.

नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है और यह लेखक की निजी राय है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.