अल्जाइमर एक मस्तिष्क विकार है, जो शनैः-शनैः बढ़ता है. मानसिक चिकित्सकों के अनुसार मस्तिष्क में कुछ विशेष प्रोटीन जमा होने से इसकी शुरुआत होती है. इस कारण मस्तिष्क निरंतर सिकुड़ता जाता है, अंततः मस्तिष्क की कोशिकाएं मर जाती हैं. इससे रोगी की स्मृति, सोच, व्यवहार और सामाजिक कौशल की क्षमता में क्रमशः गिरावट होती है. बढ़ती उम्र के साथ इस बीमारी की शुरुआत कब होती है, पता नहीं चल पाता, जिससे यह बद से बदतर होता जाता है. इस पर समग्र ध्यान आकर्षित करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 21 सितंबर को विश्व अल्जाइमर दिवस मनाने का फैसला किया है. विश्व अल्जाइमर दिवस पर आइये जानते हैं दिल्ली के चिकित्सक डॉ जितेंद्र सिंह से अल्जाइमर के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां
विश्व अल्जाइमर दिवस का महत्व
अल्जाइमर बढ़ती उम्र का एक घातक रोग है. आम लोगों में इस रोग के प्रति जागरूकता बढ़ाने, बीमारी की गंभीरता और इसके लक्षणों के बारे में शिक्षित करने हेतु विश्व अल्जाइमर दिवस मनाया जाता है. चूंकि यह एक प्रचलित प्रकार का मनोभ्रंश है, जो धीरे-धीरे स्मृति हानि और संज्ञानात्मक क्षमता के नुकसान का कारण बनता है, इसलिए इस दिन लोगों को इस मनोभ्रंश को दूर करने के लिए शिक्षित और प्रोत्साहित किया जाता है. हालिया प्राप्त आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में अल्जाइमर यानी मनोभ्रंश से पीड़ितों की संख्या साढ़े पांच करोड़ में 60 से 70 प्रतिशत लोगों के अल्जाइमर से पीड़ित होने का अनुमान है, अकेले संयुक्त राज्य अमेरिका में 65 वर्ष और इससे अधिक उम्र के करीब 65 लाख लोग अल्जाइमर से पीड़ित हैं, जहां तक भारत की बात करें तो यहां अल्जाइमर से पीड़ितों की संख्या 60 लाख से ज्यादा बताई जाती है.
कैसे हुई अल्जाइमर दिवस की शुरुआत?
अल्जाइमर को एक रोग के रूप में सर्वप्रथम मनोवैज्ञानिक एवं न्यूरोलॉजिस्ट एलॉइस अल्जाइमर नामक जर्मन मनोचिकित्सक ने 1901 में 50 वर्षीय महिला के समय पहचाना था. इसलिए इस बीमारी का नाम उनके नाम पर पड़ा था. 21 सितंबर 1994 में एडिनबर्ग में अल्जाइमर रोग इंटरनेशनल (AID) की 10वीं वर्षगांठ के अवसर पर 21 सितंबर को विश्व अल्जाइमर दिवस मनाना सुनिश्चित किया गया. इस संगठन की स्थापना का मुख्य उद्देश्य अल्जाइमर पीड़ितों एवं उनके परिवारों को समर्थन और मार्गदर्शन देना था. दुनिया भर में करीब 100 से ज्यादा अल्जाइमर संघ कार्यरत हैं. एआईडी विभिन्न देशों की सरकारों एवं विश्व स्वास्थ्य संगठन नीति निर्धारण की डिमेंशिया और अल्जाइमर से लड़ने और पीड़ितों के समर्थन हेतु जागरूकता अभियान आयोजित करता है.
अल्जाइमर के कारण एवं लक्षण
डॉ जितेंद्र सिंह के अनुसार अमूमन अल्जाइमर वंशानुगत यानी जेनेटिक कारणों से हो सकती है. इसके अलावा बी-12 की कमी के होने से भी अल्जाइमर की संभावना होती है. अनिद्रा के कारण पर्याप्त आराम नहीं ले पाने के कारण भी यह बीमारी हो सकती है. इसके साथ-साथ चिंता, तनाव, सिर दर्द, मोटापा एवं अवसाद भी एक कारण हो सकता है. कार्यक्षमता प्रभावित होने लगती है. इसके अलावा इस बीमारी से व्यक्ति की जुबान लड़खड़ाने लगती है, अपनी बात को वह धाराप्रवाह बोलने में असमर्थ होता है. किसी भी काम को पूरा करने एवं सोचने-समझने की क्षमता खोने लगता है. वह कंफ्यूज रहता है.