पूजा एवं आरती के समय घंटी क्यों बजाते है? जानें सैकड़ों साल पुरानी परंपरा का धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व?
Bell (Photo Credits: Wikimedia Commons)

सुबह और शाम जब भी मंदिर में पूजा या आरती होती है तो एक विशेष धुन के साथ घंटियां बजाई जाती हैं. मान्यता है कि ऐसा करने से श्रद्धालुओं को दैवीय उपस्थिति की अनुभूति होती है. कहते हैं कि जब ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के बाद सरस्वती द्वारा जिस नाद (आवाज) की जो गूंज उठी थी वैसी ही गूंंज घंटी बजाने पर भी आती है. आइये जानें पूजा के दरम्यान घंटी बजाने के पीछे आध्यात्मिक एवं वैज्ञानिक तर्क क्या हैं.

घंटी बजाने की प्रथा

घंटी बजा कर पूजा करने की परंपरा सैकड़ों साल पुरानी है. आमतौर पर घंटियां पीतल की होती हैं और विभिन्न आकार की होती हैं. घंटी जितनी ज्यादा भारी होती है, बजाने पर उसकी गूंज उतनी ही तेज होती है. मान्यतानुसार देवी-देवताओं की पूजा एवं आरती के दरम्यान घंटी नहीं बजाने से पूजा पूरी नहीं होती. यूं तो भगवान की आरती में भजन-पूजन में तमाम प्रकार के वाद्य यंत्र बजाए जाते हैं, लेकिन इनमें घंटी का स्थान सर्वाधिक महत्व है. मंदिर ही नहीं घरों में भी पूजन एवं आरती के वक्त घंटी बजाई जाती है.

धार्मिक महत्व!

पूजा करते हुए ना केवल देवी-देवता जागृत होते हैं, और आपकी प्रार्थना सुनते हैं साथ ही श्रद्धालुओं के मन में भक्ति भाव जागृत होता है. घंटी की ध्वनि मन, मस्तिष्क और शरीर को सकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव छोड़ती है. साथ ही घर से नकारात्मक शक्तियों का प्रभाव समाप्त होता है. घंटी की आवाज वातावरण को शुद्ध एवं पवित्र बनाती है. मंदिर में घंटी बजाने से मनुष्य के कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं. सुबह और शाम जब भी मंदिर में पूजा या आरती होती है तो एक लय और विशेष धुन के साथ घंटियां बजाई जाती हैं, जिससे वहां मौजूद लोगों को शांति और दैवीय उपस्थिति की अनुभूति होती है. जिन जगहों पर घंटी बजने की आवाज नियमित आती रहती है, वहां का वातावरण हमेशा शुद्ध एवं पवित्र बना रहता है. इससे लोग अपने दरवाजों और खि‍ड़कियों पर भी विंड चाइम्स लगवाते हैं, ताकि उसकी ध्वनि से नकारात्मक शक्तियां घर में प्रवेश ना करने पायें. यह भी पढ़ें : Jagannath Rath Yatra: पुरी में कोरोना कर्फ्यू के बीच बिना श्रद्धालुओं के निकली भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा

वैज्ञानिक महत्व!

घंटी की नाद का सिर्फ आध्यात्मिक कनेक्शन ही नहीं है, बल्क‍ि इसका वैज्ञानिक असर भी होता है. इसीलिए घंटी हमेशा मंदिर के प्रवेश द्वार पर ही लगाई जाती है. घंटियों की आवाज वातावरण को शुद्ध एवं पवित्र बनाती है. घंटी से जो ध्वनि निकलती है, वह बहुत चमत्कारी होती है. वायुमंडल में कई करोड़ों सूक्ष्मतम कीटाणु होते हैं, जो दिखते नहीं हैं और, हमारे स्वास्थ्य के लिए बहुत हानिकारक होते हैं, घंटियों से जो ध्वनि निकलती है, उससे वायुमंडल में जो कंपनी होता है, उन कंपनों से कीटाणुओं नष्ट होते हैं, और वायु शुद्ध होते हैं. इस घंटी को एकाग्रचित होकर सुनने से बच्चों का दिमाग अच्छा होता है, पीतल का घंटा अथवा घंटी बजाने से मानसिक रोग दूर होते हैं. अगर किसी गर्भवती को बहुत ज्यादा प्रसव पीड़ा हो रही है तो मंदिर का घंटा बजाने के तुरंत बाद उस घंटे को पानी में डुबाकर उस पानी को पिलाया जाये तो पीड़ा कम होती है. क्योंकि जब घंटे बजते हैं तो उसमें विद्युत तरंगें उत्पन्न होती हैं, और घंटे को पानी में डालते ही विद्युत तरंगें उस पानी में आ जाती हैं.

विदेशों में भी हैं घंटे या घंटी बजाने की मान्यताएं!

भारत ही नहीं बल्कि रूस और अफ्रीका में भी घंटे या घंटियां बजाने की बड़ी मान्यताएं है. मास्को (रूस) के सेनीवेयर में घंटे की आवाज से तपेदिक रोग (टीवी) दूर करने के सफल प्रयोग हुए हैं, तो वहीं अफ्रीका में घंटी बजाकर सांप के विष उतारने का भी सफल प्रयोग किया गया है.