Shrawan Putrada Ekadashi 2021: कब है पुत्रदा एकादशी? क्या है महत्व, पूजा-विधि एवं कथा? जानें संतान-प्राप्ति के लिए कैसे करें पूजा?
भगवान विष्णु (File Photo)

प्रत्येक वर्ष श्रावण मास के शुक्लपक्ष में 11वें दिन पड़ने वाली एकादशी को ‘पुत्रदा एकादशी’ (Putrada Ekadashi) के नाम से जाना जाता है. हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार साल में पड़नेवाली सभी 24 (कुछ वर्ष 26 एकादशियां भी पड़ती हैं) एकादशियां भगवान विष्णु को समर्पित होती हैं. पुत्र की कामनाओं को पूरी करने वाली इस पुत्रदा एकादशी का व्रत एवं पूजन का आयोजन इस बार 18 अगस्त 2021 को किया जायेगा. आइये जानते हैं इस वर्ष श्रावण मास में पड़ने वाली पुत्रदा एकादशी का महत्व, मंत्र एवं कैसे की जाती है पूजा-अर्चना तथा क्या है इस व्रत के महात्म्य को वर्णित करने वाली इसकी कथा.

पुत्रदा एकादशी का महत्व

सनातन धर्म के अनुसार हर सुहागन स्त्रियां पुत्र-प्राप्ति तथा उनकी दीर्घायु एवं अच्छी सेहत के लिए पुत्रदा एकादशी का व्रत रखती हैं. पुत्रदा एकादशी की महिमा के संदर्भ में बताया गया है कि यह व्रत रखने वाले को वाजपेई यज्ञ के समान पुण्य-फल की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि इस दिन कोई निःसंतान दंपति श्रद्धा पूर्वक व्रत एवं पूजन करता है और पूरी प्रक्रिया का विधि-विधान से पालन करता तो उन्हें संतान की प्राप्ति अवश्य होती है. इस व्रत को करने से मनुष्य के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. यह व्रत करने से गोदान समान वरदान प्राप्त होता है

पूजा विधि

पुत्रदा एकादशी का व्रत रखने वाले दम्पति को एक दिन पूर्व तैयारियां कर लेनी चाहिए. इस दिन सात्विक आहार लें. एकादशी के दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्नान करें. श्रीहरि के व्रत एवं पूजन का संकल्प लें. इस दिन श्रीहरि के बाल स्वरूप की पूजा का विधान है. घर के मंदिर में श्रीहरि की मूर्ति अथवा तस्वीर पर गंगाजल छिड़कने के बाद पंचामृत से स्नान करायें एवं नये वस्त्र पहनाएं. धूप-दीप प्रज्जवलित करें और भगवान श्रीहरि का आह्वान करें. पीले फूल, अक्षत, रोली मिष्ठान एवं पंचामृत अर्पित करते हुए ‘ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय’ नमः मंत्र का जाप करें. अंत में श्रीहरि की आरती उतारने के बाद, अगले दिन प्रातःकाल मुहूर्त के अनुरूप पारण करें.

शुभ मुहूर्त

एकादशी प्रारंभ: रात 03.20 बजे (18 अगस्त 2021, बुधवार) से

एकादशी समाप्त: रात 01.05 बजे (19 अगस्त 2021 गुरुवार) तक

पारण का समय: प्रातः 06.32 बजे से 08.29 बजे तक

पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा

प्राचीन काल में महिष्मति नगर में राजा महीजित का राज्य था. वे अपनी प्रजा से बहुत प्यार करते थे. उन्हें एक ही दुख था कि वह निसंतान थे. एक दिन उन्होंने दरबार के सभी ज्ञानी ब्राह्मणों, पुजारी-पुरोहितों को बुलवाकर कहा, -मैंने हमेशा धर्म-कर्म, दान-पुण्य एवं ईमानदारी से न्याय पूर्वक कार्य किया है. लेकिन फिर भी मै संतानहीन क्यों हूं. क्या आप बता सकते हैं कि मुझे संतान-सुख कैसे मिल सकता है.

किसी ने राजा को लोमेश मुनि मदद लेने की सलाह दी. सभी लोमेश मुनि के आश्रम पहुंचे. मुनि ने पूछा क्या कष्ट है? राजा ने बताया, हे महामुनि मैं संतानहीन क्यों हूं? मुनि ने थोड़ी देर आंख बंद रखने के बाद बताया, -पूर्व जन्म में आप एक व्यापारी था. आपने छल और पाप से संपत्ति एकत्र कर ली थी. एक दिन व्यापारी जंगल में प्यासा भटक रहा था, उसने एक जलाशय से पानी पीती गाय को हटाकर खुद पानी पीया. वह श्रावण मास की एकादशी का दिन था. व्यापारी अनजाने में एकादशी व्रत करके इस जन्म में राजा तो बन गया, मगर प्यासी गाय को हटाने से उसे संतानहीन का दंश झेलना पड़ा. यह सुन राजा बहुत दुखी हुआ. उसने मुनि से पूछा, -इसका पश्चाताम कैसे किया जाये? मुनि ने कहा, सभी प्रजा श्रावण शुक्लपक्ष की एकादशी का उपवास रखें, एवं रात्रि जागरण कर, पारण करें, तो राजा का पाप मिट सकता है. अगली श्रावण शुक्लपक्ष की एकादशी के दिन सभी ने विधिनुसार उपवास रखा. इससे राजा का पाप मिट गया और उसे एक तेजस्वी पुत्र-रत्न की प्राप्ति हुई.