शीतला अष्टमी 2021: हिंदू धर्म में शीतला अष्टमी (Sheetala Ashtami ) का विशेष आध्यात्मिक महत्व है.शीतला अष्टमी का व्रत एवं पूजन होली के आठवें दिन यानी चैत्र कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन करते हैं. इस साल (2021) शीतला अष्टमी 4 अप्रैल (रविवार) को पड़ रहा है. यह आध्यात्मिक पर्व बसौड़ा के नाम से भी लोकप्रिय है. माँ शीतला (Maa Shitala) को शीतलता का प्रतीक मानते हैं, इसलिए उन्हें ठंडा (बासी) भो लगाया जाता है. यह व्रत एवं पूजा पूरी स्वच्छता, सच्ची श्रद्धा एवं आस्था के साथ मनाया जाता है. उत्तर प्रदेश समेत राजस्थान, गुजरात में इस पर्व का विशेष महत्व है.आइये जानें क्या है इस व्रत का महात्म्य, पूजा विधि, मुहूर्त एवं व्रत कथा..
शीतला अष्टमी व्रत का महात्म्य
शीतलता का प्रतीक माने जाने वाली मां शीतला गधे पर सवार होकर आती हैं, उनके एक हाथ में झाड़ू दूसरे हाथ में ठंडे जल का कलश होता है. वे आभूषण के रूप में नीम के पत्ते धारण करती हैं. शीतला माता को स्वच्छता और शीतलता का प्रतीक माना जाता है, इसलिए शीतला अष्टमी के दिन साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखना होता है. माँ भगवती शीतला देवी को चढ़ाने वाला भोग सप्तमी के दिन पूरी स्वच्छता से तैयार किया जाता है. अष्टमी के दिन बासी खाद्य-पदार्थ देवी को समर्पित किये जाने की परंपरा है. बाद में इस प्रसाद को भक्तों में वितरित कर दिया जाता है. बहुत-सी जगहों पर शीतला अष्टमी बसौड़ा के नाम से भी जाना जाता है. इसी दिन से गर्मी का प्रकोप शुरु होता है. मान्यता है कि इस दिन शीतला माता की पूरे विधि-विधान से पूजा करने से परिवार के शारीरिक, मानसिक एवं आर्थिक कष्ट दूर हो जाते हैं. यह भी पढ़ें : Sheetala Ashtami Wishes 2021: शीतला अष्टमी पर ये WhatsApp Stickers, SMS, GIF Images भेजकर दें शुभकामनाएं
पूजा विधि-
सप्तमी के दिन व्रती को सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान कर माँ शीतला के व्रत का संकल्प लेना चाहिए. इसके बाद मां शीतला के भोग के लिए एक साफ थाली में दही, पुआ, रोटी, बाजरा, सप्तमी के दिन बने मीठे चावल, नमक पारे और मठरी को सजा कर रखें. एक अन्य थाली में आटे से बना दीपक, रोली, वस्त्र, अक्षत, हल्दी, मोली, पुष्प, सिक्के और मेहंदी रखें. दोनों थालियों के साथ में ठंडे पानी से भरा दो लोटा रखें. मां शीतला को जल अर्पित कर रोली और हल्दी का टीका लगाएं. माँ शीतला की पूजा करते हुए उन्हें थाली का भोजन अर्पित करें. इसके साथ ही उन्हें मेहंदी, मौली और वस्त्र अर्पित करें. आटे के दीपक को बिना जलाए मां के सामने रखें. बासी खाने का भोग लगाएं एवं मां के सामने एक बार पुनः मां को शीतल जल अर्पित करें, एवं 'ऊँ शीतला मात्रै नम:' मंत्र का जाप करें. जल अर्पित करते हुए थोड़ा सा जल बचा लें. इसी जल को घर के शेष सदस्यों की आंखों पर लगाने के लिए दें. शेष जल को घर के हर हिस्से में छिड़क दें. अब घर के सभी सदस्यों को हल्दी का टीका लगाएं एवं उन्हें प्रसाद दें. इसके बाद होलिका-दहन वाली जगह पर जाकर पूजा करें. वहां थोड़ा जल और पूजन सामग्री चढ़ाएं. घर आने के बाद पानी स्त्रोत पर पूजा करें. नीम के वृक्ष पर जल अर्पित करें, इससे पूरे घर में शीतलता रहती है. पूजा के पश्चात बची हुई सारी सामग्री किसी ब्राह्मण अथवा गाय को दे दें.
शीतला अष्टमी पौराणिक व्रत कथा
एक बार शीतला सप्तमी के दिन एक वृद्धा व उसकी दो बहुओं ने व्रत रखा. इस दिन परंपरानुसार सभी को बासी भोजन करना था. चूंकि दोनों बहुएं कुछ समय पूर्व ही मां बनी थीं, बासी भोजन खाने से शिशु बीमार न हो जायें, इसलिए मां शीतला का पूजा करने के बाद उन्होंने अपने लिये रोटी बनाकर खा लिया. सास ने जब बासी भोजन करने के लिए कहा तो काम का बहाना बनाकर टाल गई. इस कृत्य से माता कुपित हो गईं. दोनों नवजात शिशु की मृत्यु हो गयी. जब सास को बहुओं के कृत्य का पता चला तो उन्होंने दोनों को घर से निकाल दिया. दोनों बहुएं मृत बच्चों के साथ निकलीं और एक वृक्ष के नीचे विश्राम करने लगीं. वहीं उन्हें ओरी और शीतला नामक दो बहनें दिखीं, जो सिर में पड़े जुओं से परेशान थीं. उन्हें सिर खुजाते देख दोनों बहुओं ने उनके सर के जुए खत्म कर दिये. दोनों बहनों ने बहुओं को आशीर्वाद दिया कि तुम्हारी गोद हरी हो जायेगी. बहुओं ने बताया कि उनकी गोद तो हरी थी ही. इस पर शीतला ने उन्हें लताड़ते हुए कहा कि तुम्हें पाप का कर्म तो भुगतना ही होगा. बहुएं समझ गईं कि उनके सामने माता शीतला उपस्थित हुई हैं. उन्होंने माता शीतला साष्टांग दंडवत होते हुए अपने कृत्यों के लिए माफी मांगी. इस पर माता शीतला के आशीर्वाद से उनके बच्चे जीवित हो गये, सास ने भी दोनों बहुओं को स्वीकार लिया.
शीतला अष्टमी (4 एवं 5 अप्रैल) शुभ मुहूर्त-
अष्टमी प्रारम्भः अप्रैल 04, 2021 को AM में 04.12 बजे से
अष्टमी समाप्तः अप्रैल 05, 2021 को 02.59 AM बजे।
शीतला अष्टमी पूजा मुहूर्तः 06.08 AM बजे से अगले दिन (5 अप्रैल) AM 06.41 बजे तक