आश्विन माह की शुक्लपक्ष (नवरात्रि) की चतुर्थी को कुष्माण्डा देवी के स्वरूप की उपासना की जाती है. मान्यता है कि जब सृष्टि की रचना नहीं हुई थी, माँ कुष्मांडा ने ही ब्रह्मांड की रचना की थी. इसलिए माँ कुष्मांडा ही सृष्टि की आदि-स्वरूपा और आदिशक्ति मानी जाती हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार 10 अक्टूबर 2021 यानी आज देवी कुष्मांडा की पूजा-अनुष्ठान होगा.
दिव्य स्वरूप है माँ कुष्मांडा का!
देवी पुराण के अनुसार माँ कुष्मांडा सूर्यमंडल के भीतरी लोक में निवास करती हैं. माँ की कांति एवं काया भी सूर्य के समान ही दिव्य है. इनके तीव्र किरणों से दसों दिशाएं प्रकाशमान हो रही थीं. अगर आपकी जन्मपत्रिका में सूर्यदेव संबंधी कोई परेशानी हो तो मां कूष्मांडा की उपासना करना आपके लिये बड़ा ही फलदायी होगा. 8 भुजाएं होने के कारण इन्हें अष्टभुजी देवी के नाम से भी जाना जाता है. 7 हाथों में कमंडल, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृत कलश, चक्र तथा गदा सुशोभित हो रहे हैं जबकि आठवें हाथ में सिद्धियों वाली जपमाला है, माँ का वाहन सिंह है.
महात्म्य!
मान्यता है कि इनकी उपासना से साधक के समस्त रोग-शोक खत्म जाते हैं, तथा आयु, ऐश्वर्य, शक्ति और आरोग्य मिलती है. यदि व्यक्ति सच्चे मन से माँ की शरण में आए तो उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं. विधि-विधान से माँ की सच्ची भक्ति से उनकी कृपा का सूक्ष्म अनुभव होने लगता है.
पूजा विधि और मंत्र!
कूष्मांडा वस्तुतः संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ है कुम्हड़ा यानि कद्दू. परम्परास्वरूप इस दिन मां कूष्मांडा को कुम्हड़े की बलि दी जाती है. इसलिए मां दुर्गा का एक नाम कूष्मांडा भी है. दुर्गा पूजा के चौथे दिन माता कूष्मांडा की पूजा सच्चे मन से करना चाहिए फिर मन को अनहत चक्र में स्थापित करने हेतु मां का आशीर्वाद लेना चाहिए. सबसे पहले सभी कलश में विराजमान देवी-देवता की पूजा करें, फिर मां कूष्मांडा की पूजा करें. इसके बाद हाथों में फूल लेकर मां को प्रणाम कर इस मंत्र का ध्यान करें.
सुरासम्पूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च.
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु।
मां कूष्मांडा का प्रिय भोग!
मान्यता है कि माता कुष्मांडा को मालपुआ बहुत प्रिय है, इस दिन मालपुआ का प्रसाद चढ़ाने से सुख-समृद्धि प्राप्त होती है. आज के दिन कन्याओं को रंग-बिरंगे रिबन व वस्त्र भेट करने से धन की वृद्धि होती है.
देवी कूष्मांडा की आरती:
कूष्मांडा जय जग सुखदानी। मुझ पर दया करो महारानी॥
पिगंला ज्वालामुखी निराली। शाकंबरी मां भोली भाली॥
लाखों नाम निराले तेरे ।भक्त कई मतवाले तेरे॥
भीमा पर्वत पर है डेरा।स्वीकारो प्रणाम ये मेरा॥
सबकी सुनती हो जगदम्बे। सुख पहुँचती हो माँ अम्बे॥
तेरे दर्शन का मैं प्यासा। पूर्ण कर दो मेरी आशा॥
माँ के मन में ममता भारी। क्यों ना सुनेगी अरज हमारी॥
तेरे दर पर किया है डेरा। दूर करो मां संकट मेरा॥
मेरे कारज पूरे कर दो।मेरे तुम भंडारे भर दो॥
तेरा दास तुझे ही ध्याए। भक्त तेरे दर शीश झुकाए॥