जानें सबसे पहले किसने किया था श्राद्ध और कैसे शुरू हुई थी ये परंपरा?
श्राद्धकर्म (Photo Credit: PTI)

हिंदू धर्म में पितृपक्ष यानी श्राद्धपक्ष को काफी महत्वपूर्ण माना जाता है. मान्यता है कि इस दौरान अगर कोई व्यक्ति सच्चे मन और श्रद्धा के साथ अपने पितरों का श्राद्धकर्म करता है तो उसे पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. पितरों के प्रसन्न होने पर व्यक्ति का जीवन सुखमय हो जाता है और उसे हर काम में सफलता मिलती है. यही वजह है कि हर साल भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर अश्विन मास की अमावस्या तक लोग अपने पूर्वजों को याद करते है, उन्हें प्रसन्न करने के लिए पिंडदान और तर्पण जैसे श्राद्धकर्म करते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया में सबसे पहले श्राद्ध किसने किया था और इस परंपरा की शुरुआत कैसे हुई थी.

मान्यताओं के अनुसार, महाभारत काल में श्राद्ध के बारे में पता चला था, जिसमें भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को श्राद्ध से जुड़ी कई बातें बताई थीं. साथ ही यह भी बताया था कि श्राद्ध की परंपरा कैसे शुरू हुई थी और यह जनमानस तक कैसे पहुंची ?

महाभारत के अनुशासन पर्व के अनुसार, भीष्म पितामह ने युधिष्ठिर को बताया था कि सबसे पहले अत्रि मुनि ने महर्षि निमि को श्राद्ध का उपदेश दिया था. इस उपदेश को सुनने के बाद महर्षि निमि ने श्राद्ध करना प्रारंभ किया, जिसके बाद उन्हें देवता और पितर ऋण से  मुक्ति मिल गई. इसके बाद महर्षि निमि ने बाकी ऋषियों को भी श्राद्ध के बारे में बताया और अन्य ऋषि भी पितृ ऋण से  मुक्त होने के लिए श्राद्ध करने लगे. यह भी पढ़ें: Pitru Paksha 2018: ये संकेत बताते हैं कि आप हैं पितृदोष से पीड़ित, इन उपायों से पाएं मुक्ति

इस तरह से श्राद्ध की ये परंपरा आगे बढ़ती चली गई और पितरों का श्राद्ध करके ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाने लगा. शास्त्रों में इस बात का भी उल्लेख मिलता है कि हवन में जो पितरों के निमित्त पिंडदान किया जाता है, उसे ब्रह्मराक्षस भी दूषित नहीं कर पाते हैं. श्राद्ध में अग्निदेव को देखकर राक्षस भी वहां से चले जाते हैं, क्योंकि अग्नि हर चीज को पवित्र कर देती है और पवित्र खाना मिलने से देवता और पितर भी प्रसन्न होते हैं.