Pitru Paksha 2020: कब है अविधवा नवमी? जानें ‘मां का श्राद्ध' किसे करना चाहिए और किसे नहीं
पितृ पक्ष 2020 (Photo Credits: Wikimedia Commons)

Pitru Paksha 2020: सनातन धर्म के अनुसार पति से पूर्व मृत्यु को प्राप्त हुई पत्नी (अविधवा) का श्राद्ध करने का विशेष विधान है. यह पर्व हिंदू कैलेंडर के अनुसार प्रथम आश्विन कृष्णपक्ष की नवमी के दिन मनाया जाता है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अविधवा नवमी (Avidhava Navami) 11 सितंबर को मनाया जायेगा. पितृपक्ष (Pitru Paksha)  के इस दिनों में इसका विशेष महत्व होता है. गौरतलब है कि पितृपक्ष में अलग-अलग तिथियों का भिन्न-भिन्न महत्व है. पूरे पितृपक्ष के दौरान श्रद्धालु तिथि विशेष के अनुसार अपने पितरों (Ancestors) की शांति के लिए तर्पण एवं पिण्ड दान इत्यादि करते हैं, ताकि पितर प्रसन्न होकर पूरे परिवार को सुखी एवं शांतिपूर्ण जीवन का आशीर्वाद दें. आइये जानें अविधवा नवमी क्या होता है और इसे कैसे मनाया जाता है.

कैसे करें मां का श्राद्ध? 

श्राद्धपक्ष की नवमी तिथि का दिन मृत सुहागन स्त्री के लिए निर्धारित किया है. प्रथम आश्विन कृष्णपक्ष की नवमी के दिनअविधवा नवमी पर घर की विवाहित महिला प्रातःकाल स्नान-ध्यान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें. इसके पश्चात अपने सामर्थ्यनुसार ब्राह्मणों को भोजन करवाकर सोलह श्रृंगार की संपूर्ण सामग्री दान दें. अथवा किसी सुहागन स्त्री को सोलह श्रृंगार की सामग्री तथा वस्त्र इत्यादि दान करें. इसके पश्चात ही स्वयं एवं परिवार के सदस्यों को भोजन करना चाहिए. मान्यता है कि ऐसा करने से पितर आप पर प्रसन्न होकर आपकी हर मनोकामना पूरी होने का आशीर्वाद देते हैं. पति के जीवित रहते, जिस सुहागन स्त्री का निधन हो जाता उसे ‘अहेव’ अथवा ‘सधवा’भी कहते हैं. यह भी पढ़ें: Pitru Paksha 2020: क्या होता है पितृदोष? ये लक्षण बताते हैं कि आप हैं इस दोष से पीड़ित, जानें कैसे पाएं इससे मुक्ति

किसे करना चाहिए और किसे नहीं ? 

श्राद्धपक्ष पर माताओं का श्राद्ध अविधवा नवमी के दिन किये जाने का विधान है. ध्यान रहे कि जिस स्त्री का देहांत हो चुका हो और अगर उसके कोई पुत्र न हो अथवा पुत्र का भी निधन हो चुका हो तो उसके बच्चों को ‘अविधवा नवमी' का श्राद्ध हरगिज नहीं करना चाहिए. इसके अलावा एक नियम यह भी है कि अगर सौतेली मां का पुत्र जीवित हो और सगी मां का निधन हो जाए तो सौतेली मां की संतान को यह श्राद्ध जरूर करना चाहिए. अगर सौतेली मां का निधन हो चुका है तो भी पुत्र को यह श्राद्ध अवश्य करना चाहिए, लेकिन जिस स्त्री का देहांत हो चुका है और उसकी कोई संतान नहीं है तो पुत्री अथवा जमाई को यह श्राद्ध नहीं करना चाहिए.