जैन समाज के चौबीस तीर्थंकरों में अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर का जन्म चैत्रमास के शुक्लपक्ष की त्रयोदशी को लिच्छवी वंश (बिहार) के महाराज सिद्धार्थ और माँ त्रिशला के यहां हुआ था. इनके बचपन का नाम वर्धमान था. जैन समाज के लोग इस दिन को महावीर जयंती के रूप में सेलीब्रेट करते हैं. भगवान महावीर ने पूरे समाज को सत्य और अहिंसा का मार्ग दिखाया. जैन धर्म समुदाय इस पर्व को पूरी श्रद्धा और शांति पूर्वक एक उत्सव के रूप में मनाते हैं. इस वर्ष महावीर जयंती 6 अप्रैल को मनाया जायेगा. आइये जानें कैसे राजकुमार वर्धमान सारे वैभव त्याग कर तमाम कष्ट सहते हुए कैसे ‘महावीर’ के रूप में प्रतिष्ठित हुए.
‘जियो और जीने दो’ का मार्ग
जैन धर्म ग्रंथों के अनुसार, 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ जी के निर्वाण (मोक्ष) प्राप्ति के करीब 188 वर्ष बाद भगवान महावीर का जन्म हुआ था. ‘अहिंसा परमो धर्म:’ अर्थात अहिंसा सभी धर्मों से सर्वोपरि है, यह संदेश उन्होंने पूरी दुनिया को देते हुए समाज के सभी तबकों का मार्गदर्शन किया. यद्यपि दूसरों को उपदेश देने से पूर्व उन्होंने स्वयं पहले अहिंसा का मार्ग अपनाया. अहिंसा से संबंधित ही उनके जीवन का एक अन्य मूल मंत्र था ‘जियो और जीने दो’. यह भी पढ़े: Mahavir Jayanti 2020 Messages: प्रियजनों से कहें हैप्पी महावीर जयंती, भेजें ये शानदार हिंदी GIF Wishes, Facebook Greetings, WhatsApp Status, HD Images, SMS और वॉलपेपर्स
वर्धमान कैसे बने महावीर
कहा जाता है कि भगवान महावीर के जन्म पश्चात लिच्छवी वंश का राज खूब फलने-फूलने लगा था, इसीलिए उनका नाम वर्धमान रखा गया. वर्धमान तब मात्र तीस वर्ष के थे, जब उऩ्होंने राजमहल के सारे सुख-वैभव त्याग कर तपोमय साधना का रास्ता अपनाया था. उन्होंने तमाम कष्ट उठाते हुए तप और ज्ञान से सभी इच्छाओं और विकारों पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया था. उनकी यह साधना करीब साढ़े बारह वर्षों तक चली थी. इसके बाद उनके अनुयायियों ने उन्हें भगवान महावीर के नाम से पुकारना शुरु किया. आम मानव के हित एवं कल्याण के लिए उन्होंने धर्मतीर्थ का प्रवर्तन किया था.
कौन हैं जैन?
मान्यता है कि वर्धमान ने 12 वर्षों तक कठोर तपस्या कर अपनी इंद्रियों पर विजय हासिल किया था, इस वजह से उन्हें ‘जिन’ कहा गया. यहां ‘जिन’ का अर्थ ‘विजेता’ होता है. जैन का तात्पर्य है ‘जिन’ के अनुयायी और जैन धर्म का अर्थ है ‘जिन’ द्वारा परिवर्तित धर्म. वर्धमान का तप किसी पराक्रम से कम नहीं था. इसी के चलते उन्हें महावीर नाम से संबोधित किया गया और उनके दिखाए मार्ग पर चलने वाले जैन कहलाये. कहते हैं कि दीक्षा लेने के बाद महावीर ने कठिन दिगंबर चर्या को अंगीकार किया और निर्वस्त्र रहे. माना जाता है कि भगवान महावीर अपने पूरे साधना काल के दौरान मौन रहे.
क्या हैं महावीर के पांच सिद्धांत
मोक्ष प्राप्ति के पश्चात ‘भगवान’ का दर्जा पाने वाले महावीर जी ने 5 सिद्धांत प्रतिपादित किये, जिनका मूल उद्देश्य समृद्ध जीवन और आंतरिक शांति माना जाता है. ये पांच सिद्धांत हैं सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह. पहला सिद्धांत जो उन्होंने प्रतिपादित किया उसके अनुसार भगवान महावीर का कहना है हे पुरुष! तू सत्य को ही सच्चा तत्व समझ, जो बुद्धिमान मनुष्य सत्य के सानिध्य में रहता है, वह मृत्यु के भवसागर को तैर कर पार कर जाता है. इसलिए कठिन से कठिन परिस्थियों में भी सत्य का साथ नहीं छोड़ना चाहिए. दूसरा सिद्धांत है, अहिंसा, महावीर जी के अनुसार जैन को विपरीत से विपरीत परिस्थिति में भी हिंसा का रास्ता नहीं अपनाना चाहिए. क्योंकि किसी को भी
कष्ट देना मानव का सबसे बड़ा अपराध
तीसरा सिद्धांत अस्तेय यानि अस्तेय का पालन करने वाले किसी भी रूप में अपनी इच्छानुसार वस्तु ग्रहण नहीं करेंगे. जो मिलेगा उसे ही ग्रहण करना है. संयम की इससे बड़ी परिभाषा कुछ भी नहीं हो सकता. चौथा सिद्धांत है ब्रह्मचर्य का. यह इंसान को कामुक गतिविधियों से दूर रखता है. पांचवा सिद्धांत है अपरिग्रह. यह सिद्धांत पिछले सिद्धांतों को एक सूत्र में बांधती है. अपरिग्रह का पालन करके, जैनियों की चेतना जगाती है और सांसारिक वस्तुओं का त्याग कर देते हैं|
कैसे मनाते हैं उत्सव
महावीर जयंती के दिन दुनिया भर से लोग भारत के जैन मंदिरों में दर्शन करने के लिए आते हैं. जैन समाज प्रातःकाल उठकर स्नान-ध्यान के पश्चात महावीर जी की प्रतिमा को जल और सुगंधित तेलों से धोते हैं. इसके बाद सामूहिक रूप से भगवान महावीर की प्रतिमा की शोभायात्रा निकालते हैं. इस दौरान जैन भिक्षु रथ पर भगवान महावीर की प्रतिमा को लेकर बैठते हैं. उनके द्वारा बताये जीवन के मूल सार लोगों तक पहुुंचाते हैं. इसके अलावा, लोग महावीर और जैन धर्म से संबंधित पुरातन स्थानों पर भी जाते हैं. गोमतेश्वर, दिलवाड़ा, रणकपुर, सोनागिरि और शिखरजी जैन धर्म के कुछ सबसे लोकप्रिय स्थानों में से एक हैं. महावीर जयंती भगवान महावीर के जन्म व जैन धर्म की स्थापना के उपलक्ष्य में मनाया जाता है.
महावीर जयंती 6 अप्रैल 2020 शुभ मुहूर्त
जयंती तिथिः - सोमवार, 6 अप्रैल 2020
त्रयोदशी तिथि आरंभः 07.24 बजे से (5 अप्रैल 2020)
त्रयोदशी तिथि समाप्तः 03.51 बजे तक (6 अप्रैल 2020)