नागा साधुओं की दुनिया बहुत ही रहस्यमयी है जो आम लोगों से परे है. ये कहां रहते हैं, कहां से आते हैं और कहां चले जाते हैं इसका किसी को भी पता नहीं चल पाता. नागा साधु दो प्रकार के होते हैं एक बर्फानी नागा और दूसरा खूनी नागा. आइए हम आपको बताते है बर्फानी नागा और खूनी नागा के बारे में. परंपरा के अनुसार केवल उज्जैन (Ujjain) और हरिद्वार (Haridwar) में लगने वाले कुंभ में नागा साधू बनने की दीक्षा दी जाती है. जिन्हें हरिद्वार में दीक्षा दी जाती है उन्हें बर्फानी नागा कहा जाता है. जिन्हें उज्जैन में दीक्षा दी जाती है उन्हें खूनी नागा कहा जाता है. खूनी नागा अस्त्र शस्त्र धारण करते हैं. धर्म की रक्षा के लिए वो खून भी बहा सकते हैं. ये धर्म को लेकर बहुत कट्टर होते हैं. नागा साधु बनने की प्रक्रिया बहुत कठिन होती है. जो भी नागा साधु बनने आता है पहले अखाड़ा उसकी जांच पड़ताल करता है. उसके बाद वो फैसला करते हैं की व्यक्ति को दीक्षा उज्जैन में दी जाएगी या हरिद्वार में.
अखाड़े में प्रवेश के बाद शुरू के तीन साल महंतो की सेवा में गुजारने पड़ते हैं. इसी दौरान ब्रह्मचर्य की परीक्षा ली जाती है और शिप्रा नदी में 108 बार डुबकी लगानी पड़ती है. खूनी नागा साधु बनने की प्रक्रिया में रात भर ओम नमः शिवाय का जाप करना पड़ता है. जाप के बाद अखाड़े के महामंडलेश्वर विजया हवन करवाते हैं और हवन के बाद फिर से शिप्रा नदी में 108 बार डुबकी लगानी पड़ती है. स्नान के बाद अखाड़े के ध्वज के नीचे दंडी त्याग कराया जाता है. इस प्रक्रिया के बाद पूरी तरह से नागा साधु बन जाते हैं. नागा साधुओं को सजना सवरना बहुत अच्छा लगता है. वे हमेशा शरीर पर रुद्राक्ष और भस्म का श्रृंगार करते हैं.