आस्था और विश्वास के अनूठे संगम कुंभ की शुरुआत हो चुकी है. श्रद्धालु दूर-दूर से कुंभ मेले में स्नान के लिए आ रहे हैं. इस दौरान यहां कुछ लोग ऐसे आते जो 50 दिन तक कुंभ मेले में ही रहते हैं. तट पर रहकर ही ये लोग पूजा-पाठ और दान-पुण्य करते हैं जिसे कल्पवास कहते हैं. कल्पवास के लिए देश के कोने-कोने से श्रद्धालु प्रयागराज पहुंच चुके हैं. एक महीने तक ये कल्पवासी सन्यासी का जीवन व्यतीत करते हैं. सन्यासी जिन अनुशासनों का पालन करते हैं उन सभी का पालन कल्पवासी भी करते हैं.
ये कुटिया में रहते हैं घास की बनी इस कुटिया को पर्ण कुटी कहा जाता है. कल्पवासी सुबह की शुरुआत गंगा स्नान से करते हैं. स्नान के बाद दिन भर परमात्मा की पूजा, भजन कीर्तन में लगे रहते हैं. कल्पवास के दौरान कल्पवासी सांसारिक मोह, माया और काम को छोड़कर परमात्मा में लीन हो जाते हैं. कुछ लोग मकर संक्रांति से तो कुछ पौष पूर्णिमा से कल्पवास व्रत की शुरुआत करते हैं. इस दौरान एक ही वक्त भोजन किया जाता है. पुराणों और धर्म शास्त्रों में इसे आत्मा की शुद्धि और अध्यात्मिक उन्नति के लिए जरुरी बताया गया है.
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मत्स्यपुराण के अनुसार कुंभ में जो कल्पवास करता है वो अगले जनम में राजा के रूप में जन्म लेता है और जो मोक्ष के लिए कल्पवास करता है उसे मोक्ष की प्राप्ति जरुर होती है. कल्पवास प्राचीन काल से चला आ रहा है. ऋषियों ने गृहस्थों के लिए कल्पवास का विधान रखा. इस दौरान उन्हें थोड़े समय के लिए शिक्षा और दीक्षा दी जाती है. कल्पवास करने वाले श्रद्धालु शुद्ध और सात्विक भोजन करते हैं यह भोजन रोगों से लड़ने में मदद करता है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी बढ़ाता हैं.