प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को अजा एकादशी (Aja Ekadashi) के नाम से मनाया जाता है. इसे आनंदा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. मान्यताओं के अनुसार इस व्रत-पूजा को विधि-विधान से करने वाले जातक पर प्रभु विष्णु की कृपा से परम सुख प्राप्ता होता है, उनके जीवन में किसी तरह की बाधा नहीं आती और मृत्युपर्यंत उसे बैकुंठधाम में स्थान मिलता है. चूंकि इस वर्ष अजा एकादशी कुछ बेहद शुभ योग का निर्माण हो रहा है, और ज्योतिषियों के अनुसार इस शुभ घड़ी में विष्णु-पूजा से जातक की हर मनोकामनाएं पूरी होती है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इन वर्ष अजा एकादशी का व्रत 10 सितंबर 2023, रविवार को रखा जाएगा. आइये जानते हैं अजा एकादशी के महात्म्य, मुहूर्त, पूजा-व्रत, शुभ-मुहूर्त, एवं इस दरम्यान बन रहे अत्यंत शुभ योगों के महात्म्य के बारे में. यह भी पढ़ें: Chanakya Neeti: आचार्य चाणक्य राम को मनुष्य क्यों नहीं मानते थे? जानें उनकी नीति में राम की 10 बातें
अजा एकादशी 2023 का महात्म्य
ज्योतिषाचार्य रविंद्र पांडेय के अनुसार भगवान विष्णु के सर्वाधिक प्रिय एकादशियों में एक है अजा एकादशी. इस बार इस एकादशी पर कई अति शुभ योग का निर्माण हो रहा है, जिससे अजा एकादशी का महत्व कई गुना बढ़ जाएगा. हिंदू पंचांगों के अनुसार 9 सितंबर शाम 07.17 बजे से अजा एकादशी शुरू होकर 10 सितंबर 2023 को रात्रि 09.28 बजे तक रहेगी. इसी काल में पुनर्वसु एवं पुष्य नक्षत्र का निर्माण हो रहा है, इसके साथ-साथ इसी दरम्यान रवि पुष्य योग एवं सर्वार्थ सिद्धि योग भी बन रहा है, इस काल में भक्त के मन में जो भी कामनाएं होंगी, भगवान श्रीहरि की कृपा से अवश्य पूरी होगी.
अजा एकादशी की मूल तिथि एवं शुभ मुहूर्त
भाद्रपद कृष्ण पक्ष एकादशी प्रारंभः 07.17 AM (09 सितंबर 2023)
भाद्रपद कृष्ण पक्ष एकादशी समाप्त 09.28 AM (10 सितंबर 2023)
उदया तिथि के अनुसार 10 सितंबर को अजा एकादशी का व्रत रखा जाएगा.
व्रत का पारण कालः 06.04 AM से 08.33 AM तक
पूजा एवं व्रत के नियम
अन्य एकादशियों की तरह अजा एकादशी व्रत रखने वालों को भी दशमी तिथि की सायंकाल के बाद से अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए. अगले दिन यानी एकादशी की सुबह सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान-ध्यान के पश्चात पीले रंग का वस्त्र धारण कर एक लोटे में लाल फूल एवं जल लोटे में डालकर सूर्य को अर्घ्य दें इसके पश्चात घर के मंदिर के सामने एक चौकी बिछाकर उस पर गंगाजल छिड़कें, पीले या लाल रंग का वस्त्र बिछाएं. इस पर भगवान श्री हरि की प्रतिमा स्थापित करें. इनके समक्ष धूप-दीप प्रज्वलित करें और षोडशोपचार विधि से पूजा करते हुए पुष्प, पुष्पहार, पीला चंदन, तुलसीदल, रोली, अक्षत फल एवं मिष्ठान अर्पित करें, और निम्न मंत्र का जाप करें.
‘ॐ नमोः भगवते वासुदेवाय’
इसके पश्चात विष्णु चालीसा का पाठ करें और अंत में श्री हरि की आरती उतारें.