Sex के संदर्भ में क्या कहता है आयुर्वेद? किस मौसम में सेक्स जरूरी है और किस मौसम में नहीं? जानें चौंकाने वाले कुछ तथ्य?
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Unsplash)

घर एवं समाज में हमारी परवरिश कुछ इस तरह होती है कि हम इस बात पर पुख्ता विश्वास करने लगते हैं कि सेक्स (Sex) सिर्फ परिवार बढ़ाने के लिए ही किया जाता है. ऐसे में आयुर्वेद की यह धारणा हमें हैरान करती है कि सेक्स सिर्फ बच्चे पैदा करने के लिए नहीं किया जाता. आयुर्वेद के अनुसार सेक्स हमें पोषित एवं विकसित भी करता है, इसलिए हमें समय-समय पर सेक्स करते रहना चाहिए. अलबत्ता आयुर्वेद (Ayurveda) के अनुसार सेक्स करने के भी कुछ मूलभूत नियम हैं. यहां हम जानेंगे कि आयुर्वेद हमें सेक्स के किन गूढ़ अर्थों या नियमों से वाकिफ कराता है.

क्या है शरीर से उत्पादित ओजस?

आयुर्वेद हमें बताता है कि हमारा शरीर 7 महत्वपूर्ण एवं मूलभूत धातुओं के संयोग से बना है. इनमें एक है धातुरस. इसे हम सार अथवा सीरम कहते हैं, जो वस्तुतः रक्त का श्वेत स्वरूप होता है. इसी रस के साथ एक लिक्विड पदार्थ आता है, जिसे हम सुक्र धातु कहते हैं. इनके बनने की प्रक्रिया लगभग एक माह लंबी होती है. सुक्र धातु वस्तुतः रस का बेहद संशोदित रूप है. सेक्सुअल द्रव बनाने के लिए शरीर को काफी मेहनत करनी पड़ती है. इस द्रव से एक और इससे भी ज्यादा गाढ़ा रस विकसित होता है जिसे ओजस कहा जाता है. आयुर्वेद के अनुसार नये जीवन की रचना करने में ओजस की महत्वपूर्ण भूमिका होती है. यह भी पढ़ें: How Sexless Marriage Affects a Man: सेक्सलेस शादी एक पुरुष को ऐसे प्रभावित करती है

कब प्रभावित होती है सेक्सुअल ऊर्जा?

हमारी सेक्सुअल ऊर्जा को प्रभावित करने वाला एक और तत्व है, जिसे ‘अपान वायु’ कहते हैं. गौरतलब है कि हमारा शरीर जिन पांच तरह की वायु से बना है, उसी में एक है ‘अपान वायु’, जो शरीर के निचले हिस्सों में स्थित होती है. अपना वायु शरीर का ऐसा महत्वपूर्ण तत्व है, जो मासिक धर्म, प्रजनन एवं आर्गज्म को कंट्रोल करता है. अगर ‘अपान वायु’ की गति स्वस्थ है तो यह हमारी जड़ों को अक्षुण्य रखती है.

ऑर्गज्म (संभोग का चरमोत्कर्ष) हानिकारक क्यों होता हैं?

इंटरनेट पर संभोग सुख के संदर्भ में तमाम दावे देखे जाते हैं, इनके फायदों को बढ़ा-चढ़ा कर बताते हैं. लेकिन आयुर्वेद के अनुसार कुछ विशेष हालातों में ऑर्गज्म मानव शरीर के लिए अच्छा नहीं होता. इसकी मुख्य वजह यह है कि सेक्स के बाद हमारे शरीर में वात दोष उत्पन्न होता है, जिससे शारीरिक रूप से हम कमजोरी महसूस करते हैं. वात दोष सुक्र धातु को नुकसान पहुंचाता है, जिसके शरीर में निर्माण होने में एक माह से ज्यादा का वक्त लगता है, इसकी वजह से ओजस की निर्माण प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है. जो वास्तव में हमें ऊर्जा प्रदान करता है.

आयुर्वेदानुसार सेक्स करने का सही समय क्या है?

अमूमन लोग रात के समय सेक्स का आनंद लेना ज्यादा पसंद करते हैं. लेकिन आयुर्वेद के अनुसार रात के समय सेक्स करना उचित नहीं होता. वह सेक्स करने को सर्वोत्तम समय प्रातः सूर्योदयष् के पश्चात एवं 9 या 10 बजे के पहले बताता है. इसके साथ ही आयुर्वेद यह भी सलाह देता है कि सेक्स के लिए सर्वश्रेष्ठ मौसम सर्दी अथवा वसंत का होता है. क्योंकि ग्रीष्म ऋतु में वात दोष की प्रवृत्ति ज्यादा होती है. इसलिए इन दिनों में सेक्स एवं ऑर्गज्म की फ्रिक्वेंसी कम से कम होनी चाहिए. आयुर्वेद स्पष्ट करता है कि ग्रीष्म ऋतु में मौसम गर्म होने के कारण शरीर में ऊर्जा की कमी होती है और हमारे शरीर में यौन सुख के लिए अतिरिक्त रस नहीं बचता. यह भी पढ़ें: If Men Do This, They're likely to Cheat: अगर पुरुष ऐसा करते हैं, तो वो धोखा दे सकते हैं

किस मौसम में कितनी बार और क्यों करना चाहिए सेक्स?

शारीरिक रूप से हष्ट-पुष्ट लोग वसंत एवं शीत ऋतु में सप्ताह में तीन से पांच बार सेक्स आवश्यक रूप से करना चाहिए. इन मौसम में सेक्स क्रिया कम करने से शरीर में बनने वाला ओजस रस व्यर्थ चला जाता है. अलबत्ता ग्रीष्म ऋतु में कोशिश करें कि एक या दो सप्ताह के दरम्यान अधिकतम एक बार ही सेक्स करें.