राजीव गांधी की श्रीपेरंबुदूर में एक चुनावी रैली होने वाली थी. वहां पहुंचने की उन्हें इतनी जल्दी थी, कि उन्होंने अपने निजी सुरक्षा प्रमुख के बिना ही विशाखापटनम से उड़ान भरी, जिसका हश्र इतना बुरा हो सकता है किसी ने कल्पना तक नहीं की थी. आखिर क्या हुआ था पेरंबुदूर में उस रात
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या से पूर्व मंडल-मंदिर मुद्दों के कारण भारतीय राजनीति में जबरदस्त अस्थिरता चल रही थी. मतदाताओं की नब्ज देखते हुए लग रहा था कि कांग्रेस एक बार फिर से एकमात्र राजनीतिक विकल्प बनने जा रही थी. 1991 की मध्यावधि चुनाव में राजीव गांधी सत्ता में वापसी को लेकर निश्चिंत थे. इसलिए वह चुनाव प्रचार में जरा भी ढिलाई किये बिना लगातार सक्रिय थे. यह भी पढ़ें : International Tea Day 2024: ‘चाय उस तिजोरी की जादुई चाबी है, जहां मेरा दिमाग रखा है’ चाय की चुस्कियों के बीच अपनों को भेजे ऐसे सुंदर कोट्स!
पेरंबुदूर जाते समय राजीव गांधी ने अपने सुरक्षा चीफ से क्यों दूरी बनाई?
शाम 6 बजे के करीब राजीव गांधी ने आंध्र प्रदेश के विशाखापट्टनम में अपनी चुनावी सभाएं पूरी की, चेन्नई रवाना होने की योजना बनाई. उनका हेलिकॉप्टर चेन्नई की उड़ान के लिए तैयार किया जा रहा था. चेन्नई एयरपोर्ट पर जीके मूपनार, मार्ग थम चंद्रशेखर और जयंती नटराजन समेत तमाम कांग्रेसी नेता उनके स्वागत के लिए खड़े थे. तभी राजीव गांधी के पायलट ने बताया कि हेलीकॉप्टर में कुछ तकनीकी खराबी के कारण वह उड़ान भरने में असमर्थ है. राजीव स्टेट गेस्ट हाउस की ओर लौट पड़े. लेकिन तभी उनके पायलट कैप्टन चंडोक ने बताया कि किंग्स एयरवेज के इंजीनियरों ने हेलीकॉप्टर की तकनीक खामियों को दुरुस्त कर दिया है. राजीव गांधी चेन्नई पहुंचने के लिए इतने व्यग्र थे कि उन्होंने अपने निजी सुरक्षा प्रमुख ओपी सागर तक को सूचित नहीं किया. राजीव अपनी निजी सुरक्षा टीम के बगैर मद्रास चले गये.
रात 8.30 बजे के आसपास राजीव गांधी जब चेन्नई पहुंचे तो हवाई अड्डे पर कांग्रेसी नेताओं ने राजीव गांधी का स्वागत किया. राजीव को उसी रात श्रीपेरंबदूर में एक चुनावी रैली को संबोधित करना था. यद्यपि उन्हें पहले ही देर हो चुकी थी. राजीव एम. चन्द्रशेखर, जी.के. मूपनार और राममूर्ति के साथ और उनके पीछे जयंती नटराजन दूसरी कार में जा रहे थे.
आशीर्वाद का प्रतिसाद मिला मौत!
21 मई 1991 की रात करीब 10.10 बजे राजीव गांधी श्रीपेरंबदूर पहुंचे. वहां भारी भीड़ उनका इंतजार कर रही थी. पुरुषों और महिलाओं की अलग-अलग गैलरी बनी थी. राजीव बिना सिक्यूरिटी कवच के पहले पुरुष-गैलरी में पहुंचे, फिर महिलाओं की ओर, चारों तरफ उन्हीं की जय-जयकार हो रही थी. अचानक अनुसूया नामक एक महिला बाड़ क्रॉस कर राजीव की ओर बढ़ी. महिला सुरक्षाकर्मी ने उसे रोका, तो राजीव पुलिसकर्मी से कहा चिंता मत करो, उन्होंने उक्त महिला को आने देने का निर्देश दिया. राजीव गांधी के जीवन के ये आखिरी शब्द थे. क्योंकि कथित महिला राजीव गांधी का पैर छूने को झुकी तो राजीव ने उसे आशीर्वाद देते उसे खड़े होने का संकेत दिया. तब तक महिला ने कमर पर बंधे बटन को दबाकर ब्लास्ट कर दिया, एक भंयकर विस्फोट के साथ वहां सर्वत्र आग और धुआं सा फैल चुका था. 7 साल पूर्व राजीव गांधी की भविष्यवाणी सच हो गई.
अपनी ही मौत की भविष्यवाणी!
पीसी अलेक्जेंडर लिखित पुस्तक ‘माई डेज विद इंदिरा गांधी’ के अनुसार, 31 अक्टूबर 1984 दिन साढ़े नौ बजे के आसपास प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की उन्हीं के सुरक्षा गार्डों द्वारा हत्या कर दी जाती है. इसी रात एम्स अस्पताल (दिल्ली) के गलियारे में राजीव-सोनिया के बीच पुरजोर विवाद चल रहा था. दरअसल राजीव गांधी ने सोनिया गांधी से कहा, कांग्रेस पार्टी चाहती है कि मैं प्रधानमंत्री पद का शपथ लूं, सोनिया ने स्पष्ट शब्दों से इंकार कर दिया था, नहीं वे लोग तुम्हें भी मार डालेंगे, तब प्रत्योत्तर में राजीव गांधी ने कहा था, मेरे पास कोई विकल्प नहीं है, मैं वैसे भी मारा जाऊंगा.