Radha Ashtami 2022: कब है राधाष्टमी? जानें इस पर्व का महत्व, मुहूर्त, एवं पूजा-विधि! जानें क्यों नहीं बन सकीं राधा श्रीकृष्ण की रानी?
राधाष्टमी (Photo Credits: File Photo)

प्रत्येक वर्ष कृष्ण जन्मोत्सव के 15 दिनों के पश्चात भाद्रपद शुक्लपक्ष की अष्टमी के दिन राधाष्टमी का पर्व मनाया जाता है. इस दिन राधारानी का व्रत एवं पूजा करने से सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है.

वैष्णव सम्प्रदाय में राधा को भगवान कृष्ण की शक्ति स्वरूपा माना जाता है, जो स्त्री रूप में श्रीकृष्ण की लीलाओं में प्रकट होती हैं. भविष्य पुराण और गर्ग संहिता के अनुसार, द्वापर युग में जब भगवान श्रीकृष्ण पृथ्वी पर अवतरित हुए, तब भाद्रपद मास के शुक्लपक्ष की अष्टमी के दिन बरसाना के सुप्रसिद्ध यादव महाराज वृषभानु की पत्नी महारानी कीर्ति के गर्भ से राधा अवतरित हुईं थीं. तभी से भाद्रपद शुक्लअष्टमी  को ‘राधाष्टमी’ के नाम से जाना जाने लगा. तमाम पुराणों में राधा को देवी लक्ष्मी का अवतार भी बताया गया है. राधा के जन्मोत्सव के उपलक्ष्य में देश भर में इनकी विधि-विधान से पूजा की जाती है. कहते हैं कि ऐसा करने से भक्त की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.

राधा अष्टमी का महत्व  

स्कंद पुराण के अनुसार राधा श्रीकृष्ण की आत्मा हैं, इसीलिए भक्त उन्हें ‘राधारमण’ कहते हैं. हिंदू पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक राधाष्टमी के दिन व्रत रखने और राधा-कृष्ण की विधिवत पूजा अर्चना करने से भगवान कृष्ण प्रसन्न होते हैं. उनकी कृपा से उनके भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, धन एवं मान-सम्मान की कमी नहीं होती. लेकिन इस दिन राधारानी के साथ श्रीकृष्ण की पूजा भी संयुक्त रूप से की जानी चाहिए, अन्यथा व्रत का सुफल नहीं मिलता. इसलिए राधाष्टमी के दिन पूजा करते समय राधा-कृष्ण की तस्वीर अथवा प्रतिमा रखें. नारद पुराण के अनुसार ‘राधाष्टमी’ का व्रत करने वाला भक्त ब्रज के दुर्लभ रहस्य को जान लेता है. पद्म पुराण में सत्यतपा मुनि सुभद्रा गोपी प्रसंग में राधा का स्पष्ट उल्लेख है.

राधाष्टमी तिथि व मुहूर्त

राधाष्टमी प्रारंभः 12.25 P.M.  (03 सितंबर 2022, शनिवार)

राधा अष्टमी समाप्त 10.40 A.M.  (04 सितंबर 2022, रविवार)

इस तरह उदया तिथि के अनुसार राधा अष्टमी 4 सितंबर को मनाई जायेगी.

राधाष्टमी व्रत एवं पूजा के नियम

प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान-ध्यान के पश्चात स्वच्छ वस्त्र धारण कर देवी राधा का ध्यान कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. अब एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर इस पर राधा-कृष्ण की धातु की प्रतिमा स्थापित करें. चांदी के पात्र में राधारानी एवं श्रीकृष्ण की प्रतिमा को रखकर पंचामृत से स्नान करायें, तत्पश्चात गंगाजल से स्नान करायें. अब राधा रानी को वस्त्र एवं आभूषण पहनाएं, उन पर इत्र छिड़कें. राधा-कृष्ण की प्रतिमा के सामने शुद्ध घी का दीप एवं धूप प्रज्वलित करें. उन्हें रोली, पान, सुपारी, अक्षत इत्यादि के साथ भोग के लिए फल एवं मिष्ठान अर्पित करें. अब राधा-कृष्ण के समक्ष इस मंत्र का जाप करें.

ऊं ह्नीं राधिकायै नम:

इसके बाद राधारानी का स्तुतिगान करें, एवं आरती उतारें, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार राधारानी प्रसन्न होती हैं तो जातक पर माँ लक्ष्मी की विशेष कृपा सदा बरसती है, एवंं उनका दाम्पत्य जीवन सफल रहता है.

राधा-कृष्ण में क्यों हुआ विछोह?

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार श्रीकृष्ण और राधा गोलोक में रहते थे. एक बार श्रीकृष्ण विरजा नामक एक गोपिका के साथ भ्रमण कर रहे थे, तभी अचानक वहां राधा पहुंच गईं. उन्होंने कृष्ण के साथ विरजा को देखकर दोनों को खूब खरी-खोटी सुना कर अपमानित किया. राधा ने विरजा को दरिद्र बनकर पृथ्वी पर दुख सहने का श्राप दे दिया. वहीं उपस्थित सुदामा को राधा के श्राप पर क्रोध आया, उन्होंने राधा को श्राप दे दिया कि तुम सौ साल तक कृष्ण को नहीं पा सकोगी. इसी वजह से कृष्ण राधा के साथ विवाह नहीं कर सके. यद्यपि कुछ पौराणिक कथाओं में जिक्र मिलता है कि राधा-कृष्ण ने बालपन में ही विवाह कर लिया था.