Krishna Janmashtami 2019 Date & Puja Vidhi: कृष्ण जन्मोत्सव (Krishna Janmashtami) भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में बड़े प्यार और परंपरागत तरीकों से मनाया जाता है. यह हिंदूओं का प्रमुख धार्मिक पर्व है. वेद पुराण दर्शाते हैं कि श्रीकृष्ण (Lord Krisna) ब्रह्मांड के पालनकर्ता भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के आठवें अवतार थे. श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद कृष्णपक्ष की अष्टमी (Ashtami Tithi) की रात बारह बजे हुआ था, इसलिए देश के सभी मंदिरों में एवं घरों में श्रीकृष्ण जी का जन्म बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है.
क्यों है 23 अगस्त को जन्माष्टमी
इस वर्ष श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की तिथि को लेकर काफी दुविधाएं बनीं हुई हैं, कोई 23 अगस्त को तो कोई 24 अगस्त को कृष्ण जन्माष्टमी मनाने की बात कर रहा है. हमारे पुरोहित एवं ज्योतिषाचार्य के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण जी का जन्म भाद्रपद यानी भादों माह की कृष्णपक्ष की अष्टमी यानी रोहिणी नक्षत्र में हुआ था. इसलिए हमारे पंचांगों में इसी दिन रात बारह बजे भगवान श्रीकृष्ण जी का जन्मोत्सव मनाया जायेगा.
महात्म्य श्री कृष्ण जन्मोत्सव का
सर्वप्रथम श्रीकृष्ण के महात्म्य के संदर्भ में यह बता दें कि हिंदू देवी-देवताओं में आप किसी भी देवी-देवता का पूजा-अनुष्ठान करते हैं तो आप श्रीकृष्ण जी की पूजा स्वमेव हो जाती है. अब बात करते हैं श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के महात्म्य की. भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के सारे देशों के कृष्ण मंदिरों में जन्माष्टमी का पर्व बड़ी धूमधाम और परंपरागत तरीके से मनाया जाता है. इस रात मंदिर की छटा देखते बनती है. मान्यता है कि इसी दिन माता देवकी की गर्भ से विष्णु भगवान ने श्रीकृष्ण के रूप में जन्म लिया था. श्रीकृष्ण का जन्म मुख्यतया उनके मामा कंस और उसके साथी असुरों का संहार करने एवं उसकी प्रताड़ना से जनता को मुक्त करने के लिए हुआ था. इस दिन बच्चे से लेकर बुजुर्ग और महिलाएं सभी अपने अराध्य एवं प्रिय श्रीकृष्ण के जन्म की खुशी में पूरे दिन उपवास रखते हैं. श्रीकृष्ण के कुछ उपासक तो इस दिन निर्जल व्रत भी रखते हैं. घरों में जहां श्रीकृष्ण के जन्म की झांकियां सजायी जाती है वहीं मंदिरों में भजन-कीर्तन चलते हैं. रात बारह बजे जब श्रीकृष्ण का जन्म होता है तो झुला झूलाकर उनके जन्म दिन को सेलीब्रेट करते हैं. महिलाएं जच्चा-बच्चा का सोहर गाती हैं. इस दिन मथुरा के कृष्ण मंदिर की छटा देखते बनती है. पूरे मथुरा के अलावा और भी कई शहरों में श्रीकृष्ण की झांकियां सजाई जाती है. देश के करीब हर पुलिस स्टेशनों पर यह पर्व मुख्य रूप से मनाया जाता है, वेद-पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण का जन्म जेल में हुआ था. यह भी पढ़ें: Krishna Janmashtami 2019: इस दिन मनाया जाएगा श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव, जानें जन्माष्टमी की पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और मंत्र
कैसे रखें उपवास
श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का व्रत रखने के लिए एक दिन पूर्व केवल एक समय भोजन करना चाहिए. इसके पश्चात प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व उठ स्नान-ध्यान के पश्चात उपवास का संकल्प लेते हुए व्रत शुरू करना चाहिए. पूरे दिन फलाहार करते हुए रात में श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर पूजा-आरती के पश्चात भगवान को लगाया गया भोग प्रसाद के रूप में ग्रहण किया जाता है. कुछ लोग इसके पश्चात ही भोजन ग्रहण करते हैं, लेकिन चूंकि मध्यरात्रि में श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था, इसलिए अधिकांश लोग अगले दिन प्रातःकाल उठकर स्नानादि से फारिग होकर व्रत तोड़ते हैं.
पूजा-अनुष्ठान
श्री कृष्ण का जन्म रात में 12 बजे के बाद होता है. सर्वप्रथम उन्हें दूध से, फिर दही, घी, और शहद से स्नान कराया जाता है. इसके पश्चात गंगाजल से अभिषेक किया जाता है. यही पंचामृत बन जाता है और इस भक्तों में प्रसाद के रूप में बांटा जाता है. इसके पश्चात बाल गोपाल को नये वस्त्र पहनाए जाते हैं. कहा जाता है कि बहुत सी जगहों पर श्रीकृष्ण का जन्म होते समय मंगल गान गया जाता है. कृष्णजी को फूलों से बने एक आसन पर बैठाकर उनका श्रृंगार किया जाता है. सिर पर मोरपंख. फिर मुकुट पहनाएं. उनके पास ही उनकी सबसे प्रिय वस्तु बांसुरी रख दें. इसके पश्चात उनके हाथों में कड़े, गले में वैजयंती माला पहनाएं. उनके मस्तष्क पर चंदन अक्षत लगाकर धूप-दीप से पूजा करें. इस समय कहीं-कहीं मक्खन से तो कहीं मिश्री अथवा मिष्ठान से भोग लगाया जाता है. भोग में तुलसी का पत्ता जरूर रखें. मान्यता है कि तुलसी का पत्ता श्रीकृष्ण को अति प्रिय है. इसके पश्चात श्रीकृष्ण को झुला पर बिठाकर झुलाने की परंपरा निभाई जाती है.