Happy Janmashtami 2019: श्रीकृष्ण (Shri Krishna) उनकी वंशी या मुरली (Flute) के प्रति प्रगाढ़ प्रेम ही है कि कृष्ण के नाम के पहले वंशी का नाम जुड़ा है. जहां वंशी है वहां वंशीधर हैं, जहां मुरली है वहां मुरली मनोहर (Murli Manohar) हैं, जहां वेणु है वहां वेणुगोपाल हैं. मान्यता है कि यह वंशी ही उनकी संगिनी है है. वे इससे एक क्षण भी दूर नहीं हो सकते. हमारे धार्मिक ग्रंथों में जितना बखान श्रीकृष्ण की कथाओं को दिया है, उतना ही महत्व श्रीकृष्ण के प्रिय वाद्य बांसुरी को भी दिया गया है. श्रीकृष्ण की प्रतीक बांसुरी हमेशा से उनके भक्तों के बीच जिज्ञासा का केंद्र रही है कि क्यों श्रीकृष्ण हमेशा अपने साथ बांसुरी रखते थे, क्यों बांसुरी को राधा अपना सौत कहती थीं. माना जा सकता है कि अधिकांश हिंदू समाज श्रीकृष्ण की बांसुरी (Krishna's Flute Love) के गूढ़ तत्व को नहीं जानते. दरअसल श्रीकृष्ण की बांसुरी में जीवन का सार छिपा हुआ है. कृष्ण जन्माष्टमी के इस पर्व पर उनकी प्रिय बांसुरी के संदर्भ में कुछ गूढ़ बातें करेंगे.
मुरली से ईर्ष्या करतीं गोपियां
गोपियां हमेशा से श्रीकृष्ण के अधरों से लगी मुरली से ईर्ष्या की. विरोध के स्वर में वह यह तक कहने से नहीं चूंकती थीं कि बांस जैसे बिना फल वाले वंश में पैदा होकर भी हमें हमारे वंश से दूर करती है. कहने का आशय यह कि मुरली की मधुर तान सुनकर गोपियां घर के सारे कामकाज छोड़कर श्रीकृष्ण के करीब आ बैठती थीं, जिससे उनके पति नाराज हो जाते थे. इसका वेधा (छिद्रित) हुए शरीर हमारे ह्दय को हर घड़ी बेधता रहता है. इसकी हरियाली सूखने के बावजूद इसने हमारे प्रियतम को अपने मोह में जकड़ रखा है. सूखी होकर भी हमारे हरि के करीब रहकर हमें सुखाने की कोशिश करती रहती है. यह भी पढ़ें: Krishna Janmashtami 2019: जन्माष्टमी कब है? 23 या 24 अगस्त किस दिन मनाया जाएगा ये त्योहार, जानिए कान्हा के जन्मोत्सव का महात्म्य, पूजा विधि, मंत्र और शुभ मुहूर्त
मुरली कैसे बनी कृष्ण का मीत
एक दिन श्रीकृष्ण यमुना नदी के किनारे कदंब वृक्ष के नीच बांसुरी बजा रहे थे. बांसुरी की तान सुनकर श्रीकृष्ण के चारों ओर गोपियां आकर इकट्ठी हो गयीं. गोपियों ने श्रीकृष्ण को अपनी मोहक बातों में उलझाकर उनकी बांसुरी अपने कब्जे में ले ली.
बांसुरी को एक किनारे ले जाकर गोपियों ने जानने की कोशिश की कि आखिर पिछले जन्म में तुमने ऐसा कौन-सा पुण्य कार्य किया था, कि तुम पूरे दिन श्रीकृष्ण के गुलाब जैसी नाजुक नरम होंठों का स्पर्श करती रहती हो? इस सवाल के जवाब में बांसुरी ने मुस्कुराते हुए कहा, -मैंने केशव के करीब आने के लिए जन्मों से प्रतीक्षा की है. त्रेता युग में जब भगवान श्रीराम चौदह वर्ष का वनवास भोग रहे थे, मैं उनकी कुटिया के बाहर पड़ी रहती थी. मेरे अलावा वहां सब कुछ सुंदर और मनोहर था. वहां का वातावरण खुशबूदार फूलों और फलों से सुसज्ज था. उन वृक्षों एवं पौधों जैसा कोई भी गुण मुझमें नहीं था. परंतु प्रभु श्रीराम ने मुझे किसी से कम महत्व नहीं दिया. उनके कोमल-नरम चरणों का स्पर्श पाकर मुझे प्रेम का अपरिमित अनुभव हुआ. उन्होंने कभी भी मेरी कठोरता की परवाह नहीं की.
उनके ह्रदय में हमेशा प्रेम का सागर उफनता रहता है. मुझे जीवन में पहली बार किसी ने इतना प्रेम किया है. इसीलिए एक दिन मैंने प्रभु श्रीराम जी से कामना की कि वह मुझे जीवन भर के लिए अपना लें. लेकिन तब वह अपनी मर्यादा से बंधे हुए थे. तब उन्होंने मुझे वादा किया कि वह मुझे द्वापर युग में अपने साथ रखेंगे. इसीलिए द्वापर युग में श्रीकृष्ण जी का आगमन हुआ तो उन्होंने अपना वादा निभाते हुए मुझे अपने सबसे करीब रखा. बांसुरी की प्रेम कथा सुनकर गोपियां द्रवित हो उठीं. भागवत पुराण में श्रीकृष्ण की प्रिय मुरली से जुड़ी कई कहानियां उल्लेखित हैं. यह भी पढ़ें: Krishna Janmashtami 2019: भगवान श्रीकृष्ण का रंग नीला क्यों है, जानिए इससे जुड़े रहस्य
बांसुरी में निहित हैं जीवन के ये सार
- मुरली की तान हमेशा मधुर रहती है. यही चीज दूसरों को रिझाती है. कहने का आशय यही है कि हमेशा मधुर वाणी में ही बात करनी चाहिए.
- बांसुरी में गांठ नहीं होती. यह इस बात का प्रतीक माना जाता है कि किसी के प्रति मन में गांठ नहीं रखनी चाहिए. यानी मन में बदले की भावना नहीं रखनी चाहिए.
- मुरली को बजाया जाये तभी बजती है. इसका सार यही है कि जब जरूरत हो तभी इंसान को बोलना चाहिए.
श्रीकृष्ण की मुरली के जीवन से यह सीख मिलती है कि मनुष्य को अहंकार छोड़कर श्रीकृष्ण के चरणों के शरण में रहना चाहिए.