Pitru Paksha Shradh: सनातन धर्म में विभिन्न पर्व मनाये जाने की परंपरा है. इस परंपरा का हिस्सा परिवार के वे लोग भी बनते हैं, जो अब नहीं हैं, जिन्हें पूर्वज, पितर आदि से संबोधित किया जाता है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार अनंत चतुर्दशी के अगले दिन यानी भाद्रपद पूर्णिमा से आश्विन मास अमावस्या तक का समय पितरों की पूजा-अर्चना (पितृ पक्ष श्राद्ध) का समय होता है. हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार इस पंद्रह दिन तक हमारे पूर्वज पृथ्वी लोक में विचरण करते हैं, और उम्मीद रखते हैं कि उनका परिवार उन्हें मोक्ष एवं शांति दिलाने के लिए कुछ करेंगे. प्रश्न उठता है कि इसके लिए एक पखवाड़े का समय क्यों निर्धारित किया गया. साथ ही पितृ पक्ष के निहित नियमों को भी जानने का प्रयास करेंगे.
क्यों चलता है एक पखवाड़े तक पित्र उत्सव ?
पित्र उत्सव की विभिन्न तिथियां हिंदी तिथि के अनुसार निर्धारित की गई हैं. उदाहरण के लिए परिवार के किसी सदस्य की जब मृत्यु होती है, तो यह देखा जाता है कि उस दिन हिंदी माह के अनुसार प्रथमा से चतुर्दशी तक की क्या तिथि थी. उस तिथि के अनुसार पितृ पक्ष में पितर की शांति एवं मोक्ष के लिए हिंदू धर्म के अनुसार पिंडदान इत्यादि किया जाता है. मान्यता है कि जिसे अपने पूर्वज (अमूमन पिता) की मृत्यु की तिथि ज्ञात नहीं होती, उसके लिए सर्वपित्री दर्श अमावस्या की तिथि नियत की गई है. वैसे इस दिन वे लोग भी श्राद्ध कर सकते हैं, जो तिथि अनुसार तर्पण आदि कर चुके हैं. यह भी पढ़ें : Pitru Paksha 2024: क्यों मनाते हैं पितृपक्ष? तिथि के अनुसार करें अपने पूर्वजों का Shradh ! देखें सिलसिलेवार श्राद्ध की तिथियां!
मातृ नवमी क्यों मनाई जाती है?
श्राद्ध पखवाड़े की नवमी की तिथि दिवंगत माताओं के नाम समर्पित माना गया है. इस दिन दिवंगत माता अथवा सास की तिल-तर्पण आदि घर के बहु-बेटे करते हैं. विशेष रूप से बहुएं अपनी सास के लिए इस दिन शांति पूजा एवं उनके नाम से दान-धर्म का कार्य करती हैं. मातृ नवमी की पूजा तिथियों के अनुसार नहीं होती. इस वर्ष मातृ नवमी का पर्व 25 सितंबर 2024 को पड़ रहा है.
श्राद्ध से जुड़ी कुछ और बातें:
* किसी परिजन की मृत्यु के एक साल बाद भरणी श्राद्ध करना जरूरी होता है. अविवाहित लोगों का भरणी श्राद्ध पंचमी को किया जाता है.
* अगर किसी महिला की मृत्यु पति के रहते हो गई हो, तो उसका श्राद्ध नवमी को किया जाता है.
* किसी महिला की मृत्यु हो गई हो, लेकिन उसकी तिथि पता न हो, तो उसका भी श्राद्ध मातृ नवमी को ही किया जाता है.
* आत्महत्या, विष, या दुर्घटना से मरने वाले लोगों का श्राद्ध चतुर्दशी के दिन किया जाता है.
* पितृ पक्ष के 15-16 दिनों में पितरों के लिए तर्पण, श्राद्ध, और पिंडदान किया जाता है.
सनातन धर्म में, मृत्यु के बाद श्राद्ध करना बहुत जरूरी माना जाता है. मान्यता है कि अगर किसी व्यक्ति का विधिपूर्वक श्राद्ध और तर्पण न किया जाए, तो वह आत्मा के रूप में इस संसार में भटकता रहता है.