जैन धर्म के दोनों समाज (श्वेतांबर और दिगंबर) में इस पर्व का विशेष महत्व है, जिसे जैन धर्म के लोग भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में मनाते हैं. श्वेतांबर समाज के लोग यह पर्व 8 दिनों तक मनाता है, इसके बाद वहीं दिगंबर समाज के अनुयाई 10 दिनों तक पर्युषण पर्व सेलीब्रेट करते हैं. इस दरम्यान अधिकांश जैन समुदाय के लोग व्रत रखते हैं, एवं पूजा-अर्चना करते हैं. आइये जानें इस पर्व का महत्व एवं मनाने के तरीके.
जैन धर्म का श्वेतांबर समप्रदाय इस त्यौहार को पर्यूषण के रूप में मनाता है. इसकी समाप्ति के साथ शुरु होता है दिंगबर समाज का दसलक्षण पर्व, जिसे दस दिनों तक मनाया जाता है. यह ऐसा त्यौहार है, जहां पूरा सम्प्रदाय उपवास एवं त्याग के माध्यम से आत्मशुद्धि करता है. इस दरम्यान हर व्यक्ति धर्म केमूल सिद्धांतों का पालन करता है, जो है सही ज्ञान, सही विश्वास और सही आचरण. यह मूल मुक्ति अथवा मोक्ष पाने के लिए सबसे आवश्यक माने जाते हैं. उपवास के दौरान लोग धार्मिक कार्यों, मसलन पूजा-पाठ, संतों की सेवा, शास्त्रों का ध्यान और दान देने का संकल्प करते हैं. पर्यूषण के दिनों में हमें ये पांच नियमों का पालन करना चाहिए.
साधर्मिक वात्सल्यः हमें हर समाज के प्रति स्नेह प्रकट करना चाहिए, ना कि केवल जैन सम्प्रदाय के प्रति.
अमारी पर्वतनः हमें यह कोशिश करनी चाहिए कि हम अपने विचार एवं शब्दों को लेकर अहिंसक रहें. और दूसरों को निर्भयता प्रदान करें.
अठ्ठम तपः माना जाता है कि तीन दिनों तक निरंतर तपस्या और उपवास करने से मन की शुद्धता होती है. ये तीन दिन जैन समाज के तीन मूल्यों का प्रतिनिधित्व करती है, जो है सही विश्वास, सही ज्ञान और सही आचरण.
चैत्य परिपाटीः इस दौरान हमें धार्मिक स्थलों पर जाकर भगवान के प्रति सम्मान और भक्ति प्रकट करना चाहिए.
छमापणाः पर्यूषण का अंतिम दिन है सम्वतसरी. जब हम सभी से सच्चे मन से मिच्छामि दुक्कड़म् कहकर छमापणा मांगते हैं, जिन्हें हमने कभी जाने-अनजाने में दुःख पहुंचाया हो, और सभी माफ करते हैं, जिनके कारण कभी हमें दुःख पहुंचा हो. इस तरह समाप्त होता है पर्यूषण पर्व यह भी पढ़ें : Gorakhmundi: यौन रोगों से गठिया तक के तमाम रोगों के लिए रामबाण है गोरखमुंडी! जानें कब कैसे करें इस्तेमाल!
इस वर्ष यह पर्व 4 सितंबर 2021 से शुरू होकर 11 सितंबर 2021 तक मनाया जायेगा.
पर्युषण पर्व का महत्व
पर्यूषण पर्व का मूल आशय है, मन के सारे विकारों को नष्ट करना. इस त्यौहार को मनाते हुए लोग अपने मन के बुरे विचारों को खत्म करने का संकल्प लेते हैं. उनका मानना है कि यदि इंसान मन के तमाम विकारों एवं दुष्प्रभावों पर नियंत्रण रखना सीख जाये तो जीवन में शांति एवं पवित्रता आती है. यह पर्व ‘अहिंसा परमो धर्मः’ के सिद्धांत को प्रतिपादित करनेवाले 'जिओ और जीने दो' का संदेश देता है. इऩ्हीं महत्ता के कारण जैन समुदाय इसे पर्वों का राजा मानता है. जैन धर्मावलंबियों के मतानुसार मोक्ष-प्राप्ति के द्वार खोलता है. पर्यूषण पर्व भाद्रपद की पंचमी से शुरू होता है और अनंत चतुर्दशी तक मनाया जाता है.
कैसे करते हैं सेलीब्रेट
आठ या दस दिनों तक मनाये जाने वाले इस पर्व पर सभी श्रद्धालु उपवास रखते हैं, दान-पुण्य का कार्य करते हैं. इन दिनों विशेष रूप से लोग धार्मिक ग्रंथ का पाठ करते हैं, जबकि कुछ लोग धार्मिक प्रवचन भी सुनते हैं. बहुत सी जगहों पर जैन मंदिरों से रथ-यात्रा एवं शोऊ-यात्रा निकाली जाती है. बहुत सी जगहों पर सामुदायिक भोज का आयोजन. भी किया जाता है.
क्यों मनाते हैं पर्यूषण पर्व
-साल भर हमने जितने भी पाप-कर्म किये हैं, जैसे किसी को दुःख, कष्ट, क्रोध एवं बैर भाव पहुंचाया हो, इन सबके लिए छमा याचना करने के लिए हम पर्यूषण पर्व मनाते हैं, साथ ही इस बात का भी ध्यान रखते हैं, आगे आने वाले समय में हम अपनी इन गल्तियों को ना दुहरायें. पर्यूषण पर्व के अंतिम दिन जिसे हम सवचरित्र कहते हैं वह दिन हर जैन समाज के लिए महत्वपूर्ण दिन कहा जाता है. इसी दिन हम साल भर के पापों एवं अन्य बुरे कार्यों के लिए छमा याचना करते हैं. इस दिन हमारा आराधना में कोई कमी ना रह जाये, इसके लिए पर्व प्रारंभ के पहले सात दिन हम प्रैक्टिस करते हैं.