World Arthritis Day 2023: वृद्धावस्था में ही गठिया का खतरा क्यों बढ़ता है? जानें इसके लक्षण एवं कुछ आयुर्वेदिक उपचार!
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World Arthritis Day 2023: गठिया क्या है? क्या यह बीमारी है, अथवा कुछ और? अधिकांश लोगों को इसके बारे में सही जानकारी नहीं है. गठिया का शाब्दिक अर्थ है जोड़ों में सूजन. शरीर का वह मुख्य अंग जहां दो हड्डियां मिलती है. आपकी कोहनी, घुटना, हथेली एवं पैर इत्यादि. कहने का आशय जोड़ों में दर्द, लालिमा, एवं सूजन के लक्षण गठिया का संकेत हो सकते हैं. शुरू में समझ में नहीं आने वाली यह बीमारी जानलेवा भी साबित हो सकती है. गठिया रोग के प्रति आम लोगों को जागृत करने के लिए प्रत्येक वर्ष 12 अक्टूबर को विश्व गठिया दिवस मनाया जाता है. इस अवसर विशेष पर आइये जानते हैं. इससे जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां.. यह भी पढ़े: Dengue Fever: क्यों तेजी से फैल रहा है डेंगू? बेहद खतरनाक है इसका टाइप-2 स्ट्रेन; ऐसे करें बचाव

क्यों मनाया जाता है विश्व गठिया दिवस?

विश्व गठिया दिवस का मुख्य उद्देश्य गठिया के बारे में आम लोगों में जागरूकता बढ़ाना है. यह ऐसी स्थिति है, जो जोड़ों में सूजन का कारण बनती है, और इससे लाखों लोग प्रभावित होते हैं. यह रोग अमूमन वृद्धावस्था में ज्यादा देखने को मिलता है. विशेषकर जब वृद्धावस्था में मोटापा बढ़ने लगता है, तो जोड़ों, घुटनों, कूल्हों, और रीढ़ की हड्डी पर अतिरिक्त दबाव बढ़ता है. यह अतिरिक्त दबाव ऑस्टियो आर्थराइटिस का कारण बन सकता है. विश्व गठिया दिवस इस रोग के बारे में जानकारी बढ़ाने एवं यथाशीघ्र जांच कर उचित देखभाल करने और पीड़ितों को सहयोग देने के उद्देश्य से मनाया जाता है. गठिया वास्तव में एक कॉम्पलेक्स डिसऑर्डर है. इस बीमारी का इलाज नहीं है. अलबत्ता लक्षणों के अनुसार दवा, फिजिकल ट्रीटमेंट और लाइफस्टाइल में बदलाव आदि करके इसके उपचार की व्यवस्था की जा सकती है.

विश्व गठिया दिवस का इतिहास

गठिया का इतिहास काफी पुराना माना जाता है. कहा जाता है कि लगभग 4500 ईसा पूर्व लोगों में गठिया जैसी बीमारी पाई जाती थी, लेकिन 1859 में एक ब्रिटिश रूमेटोलॉजिस्ट डॉ. अल्फ्रेड बैरिंग गैरोड ने इसे 'रुमेटीयड गठिया' (Rheumatoid Arthritis) नाम दिया था. पहली बार विश्व गठिया दिवस 1996 में ‘द आर्थराइटिस एंड रूमेटिज्म इंटरनेशनल’ फाउंडेशन के सहयोग से मनाया गया. इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य दुनिया का ध्यान इस पीड़ादायक और साइलेंट किलर जैसी बीमारी की ओर आकर्षित पैदा कर उसका सही उपचार कराना है.

गठिया के लक्षण!

सूजन और कोमलताः जोड़ों में दर्द एवं सूजन हो सकती है, जो काफी पीड़ादायक होती है.

लालीपनः सूजन और दर्द वाले प्रभावित क्षेत्र में लालिमा दिखाई दे सकती है.

जोड़ों में दर्दः जोड़ों का दर्द गठिया की पहली पहचान अथवा लक्षण कहा जा सकता है. ऐसी स्थिति में यथाशीघ्र चिकित्सक से बातचीत कर आवश्यक इलाज शुरू कर देना चाहिए.

हड्डियों में अकड़नः इस बीमारी के मुख्य लक्षणों में हड्डियों में जकड़न भी हो सकती है, जो सुबह के समय ज्यादा महसूस होती है, यह लक्षण अमूमन बारिश अथवा सर्दी के बढ़ने से कठोरता एवं पीड़ा बढ़ सकती है.

गठिया का आयुर्वेदिक उपचार

अधिकांश चिकित्सकों का मानना है कि गठिया का कोई समुचित इलाज नहीं है. लेकिन आयुर्वेद में इस पर नियंत्रण रखने की क्षमता है. यहां कुछ ऐसे ही उपचार के बारे में बताया जा रहा है.

हल्दीः हल्दी में सक्रिय यौगिक करक्यूमिन में सूजन रोधी गुण होते हैं. यह गठिया के लक्षणों को कम कर सकता है. अगर गठिया का मामूली लक्षण भी दिखता है तो हल्दी के सेवन की मात्रा बढ़ा देनी चाहिए.

अदरकः अदरक में भी सूजन कम करने के औषधीय गुण होते हैं, जिसके उपयोग से गठिया की पीड़ा से काफी हद तक मुक्ति पाई जा सकती है. अदरक के सेवन से रक्त संचार सुचारू होता है, और जोड़ों में सूजन तथा कठोरता को कम करता है. अदरक का सेवन चाय एवं सब्जियों आदि में किया जा सकता है.

गुग्गुलः गुग्गुल में एनाल्जेसिक और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण निहित होते हैं, जो गठिया के प्रबंधन में सहायक होते हैं. इसके सेवन से सूजन में आराम मिलता है, जिसकी वजह से मरीज में चलने-फिरने की शक्ति पैदा होती है.

अश्वगंधाः अश्वगंधा में भी सूजन पर नियंत्रण रखने के गुण होते हैं, साथ ही गठिया के दर्द एवं जकड़न को कम कर राहत दिलाता है. अश्वगंधा के सेवन से जोड़ों के इर्द-गिर्द की मांसपेशियां मजबूत होती हैं. आयुर्वेदिक औषधि की दुकानों पर अश्वगंधा कैप्सूल अथवा पाउडर के रूप में उपलब्ध होती हैं. अश्वगंधा पाउडर का सेवन दूध अथवा पानी के साथ किया जा सकता है.

नोटः आयुर्वेदिक औषधियों का प्रयोग करने से पूर्व आयुर्वेदिक विशेषज्ञ से सुझाव अवश्य लें.