Mesha Sankranti 2024: कब और क्यों मनाया जाता है मेष संक्रांति? जानें इस दिन पुण्य-लाभ अर्जित करने के लिए क्या करें!
Mesha Sankranti 2024

हिंदू नववर्ष की पहली संक्रांति को मेष संक्रांति मनाया जाता है. इस दिन सूर्य अपनी राशि से मेष राशि में प्रवेश करते हैं. सौर मास को मानने वाले लोग इसी दिन को नये साल की शुरुआत मानते हैं, इसी दिन साल का पहला खरमास समाप्त होता है, और घरों में शुभ मंगल कार्य प्रारंभ हो जाते हैं. हिंदू मान्यताओं के अनुसार मेष संक्रांति पर गंगा स्नान, दान एवं भगवान सूर्य की पूजा करने से नौकरी-पेशा वालों को तरक्की, वेतन वृद्धि आदि प्राप्त होती है. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष 14 अप्रैल 2024 को मेष संक्रांति मनाई जाएगी, आइये जानते हैं मेष संक्रांति के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातें...

मेष संक्रांति का महत्व

हिंदू धर्म में मेष संक्रांति को एक बेहद शुभ दिन माना जाता है. सौर कैलेंडर मानने वाले सनातन धर्म के लोगों के लिए इस दिन का महत्व इसलिए बढ़ जाता है, क्योंकि इसी दिन से नया संवत्सर प्रारंभ होता है, जिसे नववर्ष की शुरुआत मानी जाती है. इस पवित्र अवसर पर लोग गंगा और यमुना जैसी पवित्र नदियों में स्नान के लिए हरिद्वार, काशी, प्रयागराज, मथुरा, ऋषिकेश जैसे पवित्र स्थानों पर जाते हैं. मान्यता है कि इस दिन गंगा-यमुना स्नान करने वालों के अगले-पिछले सारे पाप नष्ट हो जाते हैं. बहुत से घरों में इस दिन भगवान शिव एवं भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा भी की जाती है. चूंकि इसी दिन एक माह का खरमास समाप्त होता है, जिस वजह से विवाह जैसे मंगल कार्य प्रारंभ हो जाते हैं. लेकिन इस वर्ष शुक्र ग्रह के डूबने से एक बार पुनः मांगलिक कार्यों में वर्जित हो जाएंगे. यह भी पढ़ें : Pana Sankranti 2024 Messages: उड़िया नव वर्ष ‘पना संक्रांति’ की इन हिंदी WhatsApp Wishes, Quotes, Facebook Greetings के जरिए दें शुभकामनाएं

मेष संक्रांति शुभ मुहूर्त

मेष संक्रांति काल (2024) 12.22 PM से 06.46 PM तक (13 अप्रैल 2024, शनिवार)

महापुण्य कालः 04.38 PM से 06.46 PM तक

उपरोक्त काल में ही सूर्यदेव की पूजा-अनुष्ठान करना लाभकारी साबित हो सकता है.

मेष संक्रांति पर क्या करें

* गंगा अथवा यमुना में स्नान करते समय एक लाल पुष्प भगवान सूर्य को अर्पित करते हुए गंगा-यमुना में प्रवाहित करें.

* स्नान-ध्यान के पश्चात आदित्य स्त्रोत का पाठ करें.

* स्नान एवं सूर्योपासना के पश्चात ब्राह्मण को अन्न-वस्त्र के साथ दक्षिणा दें.

* गरीबों अथवा जरूरतमंदों को वस्त्र एवं भोजन वितरित करें.

* वृद्धाश्रम में जाकर वृद्धजनों को भोजन, वस्त्र एवं उनकी जरूरत की चीजें दान करें.

* पितृदोष से पीड़ित लोग पितरों को तिल का अर्पण करें, गायत्री पाठ का आयोजन कराएं. इससे पितरों का आशीर्वाद मिलता है.

* घर में वयोवृद्ध जनों की सेवा सम्मान करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करें.

* इस दिन किसी भिखारी को खाली हाथ वापस नहीं जाने दें.