Lal Bahadur Shastri Jayanti 2021: स्वभाव से सरल, सहज व सौम्य, मगर फैसला लेने में कठोर थे शास्त्री जी!
लाल बहादुर शास्त्री के महान विचार (Photo Credits: File Image)

लाल बहादुर शास्त्री (Lal Bahadur Shastri) का जन्म 2 अक्टूबर 1904 को वाराणसी के निकट मुगलसराय में हुआ था. आजाद भारत के इस दूसरे प्रधानमंत्री का कार्यकाल जितना चुनौतियों भरा था, उतना ही अल्पकालिक भी था. लेकिन इस अल्पकाल में भी उन्होंने देश को तमाम संकटों से उबारा. पाकिस्तान के आक्रमण का कड़ा जवाब दिया. लेकिन कुछ लोगों के षड़यंत्र में फंसकर इस महान योद्धा का 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में संदेहास्पद ढंग से मृत्यु हो गई. भारत के 75 साल के इतिहास में शास्त्री जी पहले और अंतिम प्रधानमंत्री थे, जिनकी साफ-सुथरी छवि के कारण विपक्ष भी उनकी पुरजोर प्रशंसा करती रही है. आइये जानें सादगी, सौम्य और सहजता की मूर्ति स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री की 117वीं जयंती पर उनके जीवन के कुछ प्रेरक प्रसंग.

अमेरिकी धमकी का करारा जवाब देने वाले इकलौते पीएम!

शास्‍त्री जी का प्रधानमंत्री कार्यकाल काफी चुनौतियों भरा रहा है. 1964 में देश की कमान संभालने के दौरान ही 1965 में पाकिस्तान ने भारत पर आक्रमण किया. इसके पहले की भारतीय सेना लाहौर एयरपोर्ट को अपने कब्जे में लेती. अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन बी जॉनसन ने भारत पर युद्ध बंद करने का दबाव डालते हुए धमकी दिया कि अमेरिका PL-480 संधि को तोड़ भी सकता है, जिसके तहत अमेरिका भारत को गेहूं निर्यात करता रहा था. यह धमकी ऐसे समय दी गई थी, जब देश के कुछ भागों में अकाल पड़ने के कारण भूखमरी के दौर से गुजर रहा था. लेकिन सहज और सरल माने जाने वाले शास्त्री जी ने कड़ा फैसला लेते हुए अमेरिका की धमकी का करारा जवाब दिया. उन्होंने ऑल इंडिया रेडियो पर देश के नाम प्रसारित संदेश में हफ्ते में एक दिन उपवास रखने की अपील करते हुए कहा कि, “हम भूखे रह जायेंगे, लेकिन अमेरिका के आगे झुकेंगे नहीं. इसी समय शास्त्री जी ने ‘जय जवान जय किसान’ का नारा देते हुए कृषि संयंत्रों एवं उत्पादन पर ठोस योजना क्रियान्वित करते हुए देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रेरित किया.

महिलाओं को बतौर ‘कंडक्टर’ पहला मौका!

प्रधानमंत्री बनने से पहले लाल बहादुर शास्त्री ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर भी रह चुके थे. उस दरम्यान शास्त्री जी ने ट्रांसपोर्ट उद्योग से महिलाओं को भी जोड़ने की पहल की. उनके मंत्रित्वकाल में पहली बार महिलाओं ने कंडक्टर बनकर स्टेयरिंग संभालने की जिम्मेदारी भी स्वीकारी. उनके इस फैसले का स्वागत महिला राजनेताओं ने भी किया. इसके अलावा सड़क पर प्रदर्शन के दरम्यान प्रदर्शनकारियों पर लाठी चलाने को अतिनृशंसता मानते हुए शास्त्री जी ने उन पर पानी की बौछार डालकर तितर-बितर का नियम बनाया. यह भी पढ़ें : Dry Day on Gandhi Jayanti 2021: गांधी जयंती पर ड्राई डे के चलते गोवा के रिसॉर्ट्स में नहीं परोसी जाएगी शराब

जात-पात के सख्त खिलाफ थे शास्त्री जी

बचपन में उन्हें मुंशी लाल बहादुर पुकारा जाता था. माँ का नाम राम दुलारी और पिता का नाम मुंशी प्रसाद श्रीवास्तव था. स्कूली दिनों में उनका नाम लाल बहादुर श्रीवास्तव था. लेकिन जात-पात के सख्त खिलाफ होने के कारण उन्होंने राजनीति में आने के साथ ही नाम के पीछे सरनाम हटाने का कड़ा फैसला लिया था. ‘शास्त्री’ की उपाधि उन्हें काशी विद्यापीठ से पढ़ाई के बाद मिली थी.

जीवन भर पद का अतिरिक्त लाभ नहीं उठाया

लाल बहादुर शास्त्री देश के सर्वोच्च पद प्रधानमंत्री के पद पर रहते हुए भी कभी पद का लाभ नहीं उठाया. उनके प्रधानमंत्री काल में एक बार उनके बेटे उनकी आधिकारिक कार लेकर चले गये. शास्त्री जी ने अगले ही दिन बेटे द्वारा किए गए सफर का खर्च सरकारी खजाने में जमा कराने के लिए अपने पास से पैसे दिए. इसी तरह 1966 में जब शास्त्री का निधन हुआ तो उनके पास कोई निजी घर या जमीन नहीं थी. प्रधानमंत्री रहते हुए एक बार फिएट कार खरीदने के लिए उन्होंने जो कर्ज बैंक से लिया था, मृत्यु तक नहीं भर पाए थे. इस कर्ज की भरपाई पत्नी ललिता शास्त्री ने किया.

शास्त्री जी की संदेहास्पद मौत पर क्यों हैं सरकारें मौन

शास्त्री जी की मौत को लेकर आज भी तमाम अटकलें लग रही हैं. आरटीआई के अनुसार 10 जनवरी 1966 की रात 12.30 बजे तक शास्‍त्रीजी एकदम स्‍वस्‍थ थे. इसके बाद जब उनकी तबीयत बिगड़ी, तो डॉक्टर आरएन चग को बुलाया गया. चग के अनुसार शास्त्री की सांसें तेज चल रही थीं, वह बिस्‍तर पर छाती पकड़कर बैठे हुए थे. उन्‍हें इंट्रा मस्कुलर इंजेक्शन दिया गया, इसके 3 मिनट बाद से शास्त्रीजी का शरीर शांत होने लगा. सांस धीमी होती गई. हालात बिगड़ने पर सोवियत डॉक्टर को बुलाया गया, लेकिन इससे पहले कि वह इलाज शुरू करते रात 1.32 बजे शास्त्रीजी की मौत हो गई. आरटीआई में यह भी खुलासा हुआ कि मौत के बाद उनकी डेड बॉडी का पोस्टमार्टम नहीं किया गया, जबकि ऐसी हालत में पोस्टमार्टम वैधानिक प्रक्रिया मानी जाती है