भगवान शिव के प्रिय सावन माह के महत्वपूर्ण तिथियों में एक कल्कि जयंती भी है. प्रत्येक वर्ष सावन माह शुक्ल पक्ष की षष्ठी के दिन भगवान कल्कि जयंती मनाई जाती है. यह पर्व भगवान विष्णु को समर्पित होता है. इस दिन भगवान विष्णु के दसवें अवतार भगवान कल्कि की पूजा का विधान है. मान्यता है कि भगवान कल्कि की पूजा एवं व्रत करनेवाले जातक के जीवन की सारी समस्याएं समाप्त होती हैं, उसे मनचाहा जीवन साथी प्राप्त होता है, जीवन में सुख-शांति और समृद्धी आती है. इस वर्ष 10 अगस्त 2024 को कल्कि जयंती मनाई जाएगी. आइये जानते हैं, भगवान कल्कि की उत्पत्ति, मुहूर्त, मंत्र एवं पूजा-विधि आदि के बारे में..
कल्कि जयंतीः बन रहा है अत्यंत शुभ योग एवं मुहूर्त!
सावन शुक्ल पक्ष षष्ठी प्रारंभः 03.14 AM (10 अगस्त 2024, शनिवार)
सावन शुक्ल पक्ष षष्ठी समाप्तः 05.44 AM (11 अगस्त 2024, रविवार)
उदया तिथि के नियमों के अनुसार 10 अगस्त 2024 को कल्कि जयंती मनाई जाएगी.
शुभ योग
साध्य योगः सूर्योदय से 02.52 PM तक
इस पूरे दिन रवि योग भी बन रहा है
इस दिन शिववास का भी योग है
उपयुक्त योगों के संयोग के बीच भगवान कल्कि की पूजा करने से जातक की सभी प्रकार की मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं.
कब और कहां होगी भगवान कल्कि की उत्पत्ति
कल्कि पुराण में भगवान कल्कि के अवतार का विस्तार पूर्वक वर्णन है. जानकारों के अनुसार कलियुग में जब पृथ्वी पर अधर्म चरम पर पहुंचेगा और धर्म का पतन होने लगेगा, तब पृथ्वी पर अधर्मियों का नाश और धर्म की पुनर्स्थापना करने के हेतु भगवान विष्णु दसवें अवतार में कल्कि के रूप में जन्म लेंगे. पुराणों के अनुसार कलयुग 4,32,000 साल का होगा. कल्कि की उत्पत्ति सावन माह में संभल नामक स्थान पर विष्णुयशा नामक परिवार में होगा. भगवान कल्कि के प्रकाट्य का उद्देश्य कलियुग में कि राक्षस का वध करना होगा. इसके बाद कलयुग खत्म होगा और एक बार पुनः सतयुग प्रारंभ होगा. यह भी पढ़ें : Sawan Pradosh 2024 Wishes: सावन प्रदोष की इन भक्तिमय हिंदी WhatsApp Messages, Quotes, Facebook Greetings के जरिए दें शुभकामनाएं
कल्कि जयंती पर पूजा-विधि
कल्कि जयंती पर ब्रह्म बेला में उठकर स्नान-ध्यान करें. सूर्य को जल चढ़ाने के पश्चात भगवान विष्णु का ध्यान कर व्रत एवं पूजा का संकल्प लें. संभव हो तो पीले रंग का वस्त्र धारण कर पूजा प्रारंभ करें. घर के मंदिर के समक्ष चौकी पर पीला वस्त्र बिछाकर इस पर भगवान विष्णु एवं माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें. जल का अभिषेक करने के पश्चात धूप-दीप प्रज्वलित करें और निम्न मंत्र के जाप के साथ पूजा प्रारंभ करें.
‘ॐ कोंग कल्कि देवाय नमः'
भगवान को पीला फूल, पीला चंदन, केसर, पीतांबर, तुलसी पत्ता, पान, सुपारी आदि चढ़ाएं. भोग में पीला फल, दूध से बनी पीली मिठाई, मक्खन औऱ पंचामृत अर्पित करें. विष्ण चालीसा का पाठ करें और अंत में भगवान की आरती उतारें. इसके बाद प्रसाद का वितरण कर स्वयं प्रसाद का सेवन करें. अगले दिन सप्तमी की सुबह स्नान-ध्यान करने के पश्चात व्रत का पारण करें.