Jyotiba Phule 131st Death Anniversary 2021: बहुमुखी प्रतिभावान महात्मा ज्योतिबा फुले के 9 महान अनमोल विचार!
महात्मा ज्योतिबा फुले जयंती (Photo Credits-File Image)

महान समाज सुधारक, समर्पित क्रांतिकारी, ओजस्वी लेखक, विचारक, एवं उच्च कोटि के दार्शनिक थे, ज्योतिराव गोविंदराव फुले. संक्षिप्त में इन्हें ज्योतिबा फुले के नाम से संबोधित किया जाता है. स्त्रियों की दशा सुधारने और उन्हें शिक्षित करने की दिशा में ज्योतिबा फुले ने साल 1854 में एक कन्या स्कूल खोला. यह देश का यह पहला महिला विद्यालय था. धार्मिक कट्टरता की परंपरा के खिलाफ जाकर ब्राह्मण-पुरोहित के बिना विवाह संस्कार शुरू कराया. उनके इस कृत्य को मुंबई हाईकोर्ट ने बिना शर्त मान्यता दिया. समाज के प्रति उनके निस्वार्थ सेवा को देखते हुए साल 1888 में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें ‘महात्मा’ की उपाधि दी. बतौर समाज सुधारक ज्योतिबा फुले ने धार्मिक कट्टरता, स्त्री पुरुष समानता, स्त्री शिक्षा जैसे कार्यों में पूरी जिंदगी अर्पित कर दी. यहां उनके कुछ ऐसे ही अनमोल विचार प्रस्तुत है

ज्योतिबा का संक्षिप्त परिचय

ज्योतिबा फुले का जन्म 11 अप्रैल 1827 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के कटगुण में हुआ था. उनका पूरा नाम ज्योतिराव गोविंदराव गोन्हे, ज्योतिराव गोविंदराव फुले था. पिता गोविंदराव तथा माता चिमणा बाई थीं. वे मात्र एक वर्ष के थे, जब उनकी माँ का निधन हो गया. उनका पालन-पोषण सगुनाबाई नामक एक दाई ने किया. ज्योतिबा फुले का विवाह साल 1840 में सावित्री बाई फुले से हुआ था. लेकिन काफी कोशिशों के बावजूद जब फुले दंपति को कोई संतान नहीं हुआ, तब उन्होंने एक विधवा के बच्चे को गोद ले लिया. 28 नवंबर 1890 में ज्योतिबा फुले का निधन हो गया.

* दबे कुचले वर्गों में नैतिकता, बुद्धिमता, समृद्धि एवं प्रगति का विकास करने हेतु शिक्षा की आवश्यकता सर्वाधिक है.

* भारत में राष्ट्रीयता की भावना का विकास तब तक नहीं होगा, जब तक खान-पान एवं वैवाहिक संबंधों पर जातीय बंधन बने रहेंगे.

* दूसरों की गलती से सीखना ही सबसे बड़ा आकलन होता है.

* सभी प्राणियों में पुरुष श्रेष्ठ है और सभी मनुष्यों में नारी श्रेष्ठ है. स्त्री और पुरुष जन्म से ही स्वतंत्र है, इसीलिए दोनों को सभी अधिकार सामान रूप से भोगने का

अवसर मिलना चाहिए.

* मैं समझता हूं कि किसी देश की उन्नति में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका महिलाओं की ही होती है.

* शिक्षा स्त्री और पुरुष दोनों के लिए समान रूप से आवश्यक है.

* स्वार्थ अलग-अलग रूप धारण करता है, कभी जाति का रूप लेता है तो कभी धर्म का.

* अच्छा काम करने के लिए बुरे काम करने के लिए बुरे उपाय से काम नहीं लेना चाहिए.

* विद्या बिना मति गई, मति बिना नीति गई, नीति बिना गति गई, गति बिना वित्त गया, वित्त बिना शूद गये. इतने अनर्थ एक अविद्या ने किये.

आर्थिक असमानता के कारण किसानों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है.