International Day of Charity 2022: कब और क्यों मनाते हैं अंतर्राष्ट्रीय दान दिवस? जानें भारत में दान का इतिहास और इस दिवस का उद्देश्य!
International Day of Charity (Photo credits: Pixabay, Comfreak)

भारत के दृष्टिकोण से 5 सितंबर की तारीख बहुत महत्वपूर्ण कही जा सकती है, क्योंकि इस दिन जहां हम आजाद भारत के दूसरे महामहिम राष्ट्रपति सर्वपल्ली डॉ. राधाकृष्णन के जन्मदिन को ‘अध्यापक दिवस’ के रूप में मनाते हैं, वहीं इसी दिन विश्व के तमाम देशों के साथ मिलकर ‘अंतर्राष्ट्रीय चैरिटी दिवस’ भी मनाते हैं. इस तिथि की एक विशेष बात यह भी है कि इसी मदर टेरेसा की पुण्यतिथि के रूप में उन्हें श्रद्धा सुमन भी अर्पित करते हैं. इस अवसर पर, हर तरह के धर्मार्थ और मानवीय सहयोग पर कार्य किया जाता है. इस दिन का मुख्य लक्ष्य आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को आम समाज के समानांतर लाना होता है.

अंतर्राष्ट्रीय दान दिवस का इतिहास!

भारत के परिप्रेक्ष्य में चैरिटी यानी दान की बात करें तो हिंदू धर्म में आदिकाल से यह प्रथा जारी है. वैदिक काल में ब्राह्मण भिक्षा लेकर जीवनयापन करते थे, और शिष्यों को मुफ्त शिक्षा देते थे. गुरुकुल में भी शिक्षा के बदले दक्षिणा देने की प्रथा थी. इससे संबंधित तमाम प्रचलित कथाएं हैं. आज भी हिंदू एवं मुस्लिम धर्मों में दान की प्रक्रिया शिद्दत से अपनाई जाती है. जहां तक अंतर्राष्ट्रीय दान दिवस की औपचारिक बात है, तो 17 दिसंबर 2012 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 5 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा. जिस पर संयुक्त राष्ट्र संघ के 44 देशों ने हस्ताक्षर करके अपनी सहमति जताई थी. मदद के इस क्रम में सांस्कृतिक विरासत, विज्ञान, खेल और प्राकृतिक संरक्षण को बढ़ावा देना था. इस अवसर पर वंचितों एवं गरीबों के अधिकारों का समर्थन करने के साथ समानता एवं सहानुभूति का संदेश भी देता है.

अंतर्राष्ट्रीय चैरिटी दिवस का उद्देश्य!

राष्ट्रीय स्तर पर देखें या अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, चैरिटी (दान) दिवस मनाने का मुख्य मकसद जरूरतमंदों को हर तरह से आर्थिक मदद कर समाज से गरीबी के अभिशाप को दूर करना है. इस संदर्भ में यूनिसेफ ने भी एक प्रशंसनीय संकल्प गत वर्ष पारित किया था, जिसके अनुसार साल 2030 तक दुनिया के हर देश को गरीबी मुक्त करना है. यद्यपि आज भी दुनिया के बहुत सारे देश गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन कर रहे हैं, जहां बच्चे कुपोषण का शिकार बन रहे हैं, इन देशों की कठिन समय में मदद करना हर विकसित देश का पहला धर्म होना चाहिए. ध्यान रहे यह सहयोग ऋण के रूप में नहीं बल्कि आर्थिक सहयोग के रूप में होना चाहिए.