Indira Ekadashi Vrat 2019: इंदिरा एकादशी व्रत से यमलोक में दण्ड भुगत रहे पूर्वजों को मिलता है मोक्ष! जानें पौराणिक कथा, महात्म्य, पूजा-विधि एवं मुहूर्त
सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व माना गया है. प्रत्येक चंद्र मास में दो एकादशियां होती हैं. साल में कुल 24 और अधिमास अथवा मलमास वर्ष में 26 एकादशियों का संयोग बनता है. इन सभी एकादशियों का अपना अलग-अलग महत्व होता है.
Indira Ekadashi Vrat 2019: सनातन धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व माना गया है. प्रत्येक चंद्र मास में दो एकादशियां होती हैं. साल में कुल 24 और अधिमास अथवा मलमास वर्ष में 26 एकादशियों का संयोग बनता है. इन सभी एकादशियों का अपना अलग-अलग महत्व होता है, सभी की अलग-अलग कथाएं उल्लेखित हैं. वेद और पुराणों में सभी एकादशियों को मोक्षदायिनी बताया गया है. लेकिन कम लोगों को ज्ञात है कि कुछ एकादशियां बहुत खास होती हैं, इन्हीं में एक है इंदिरा एकादशी. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस वर्ष इंदिरा एकादशी 25 सितंबर को पड़ रही है. आखिर क्या खास बात है इंदिरा एकादशी में? जानिए इसके महात्म्य एवं पौराणिक कथा के बारे में?
इंदिरा एकादशी क्या है
हिंदी पंचांग में आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को इंदिरा एकादशी बताया गया है. इस एकादशी का महात्म्य इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि यह एकादशी हमेशा पितृपक्ष के पखवारे में ही पड़ती है. मान्यता है कि कोई पूर्वज जाने-अनजान हुए पाप कर्मों के कारण यमलोक में दण्ड भुगत रहा है तो इंदिरा एकादशी व्रत एवं पूजा-अर्चना करने से उसे जो पुण्य प्राप्त होता है, उसे पूर्वजों के नाम पर दान कर तो दण्ड भुगत रहे पूर्वज को तो मोक्ष की प्राप्ति होती ही है, साथ ही व्रत एवं अनुष्ठान रखने वाला भी मृत्युपर्यंत सीधा स्वर्ग पहुंचता है.
इंदिरा एकादशी 2019 - व्रत तिथि व पूजा मुहूर्त
व्रत तिथि - 25 सितंबर 2019
एकादशी तिथि आरंभ – अपराह्न 04.42 बजे (24 सितंबर 2019)
एकादशी तिथि समाप्त – अपराह्न 02.09 बजे (25 सितंबर 2019)
द्वादशी को पारण का समय – प्रातः 06.15 से 08.38 बजे तक (26 सितंबर 2019)
पारंपरिक कथा
महाभारत युद्ध की समाप्ति के पश्चात एक दिन भगवान श्रीकृष्ण युधिष्ठिर से इंदिरा एकादशी का महात्म्य बताते हुए कहते हैं कि इंदिरा एकादशी समस्त पाप को नष्ट करने वाली होती है. इस व्रत को नियमपूर्वक करने से उनके पितरों को भी मुक्ति मिलती है. व्रत के साथ-साथ इसकी कथा सुनने अथवा सुनाने से वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्ति होती है.
इंदिरा एकादशी व्रत कथा
सतयुग में महिष्मति नगर में इंद्रसेन नामक प्रतापी और अत्यंत बलवान राजा राज करते थे. वह बड़े धर्मात्मा और प्रजा के सुख-दुख का भी ख्याल रखते थे. उनके राज्य में हर ओर यज्ञ एवं प्रवचन आदि होते थे. प्रजा चैन की नींद सोती थी. एक दिन महामुनि नारद इंद्रसेन के दरबार में पहुंचे. राजा इंद्रसेन नारद मुनि के सम्मान में खड़े होकर प्रणाम करते हुए दरबार में आने का प्रयोजन पूछा. महामुनि नारद ने बताया कि वह उनके पिता का संदेश लेकर आए हैं, जो इस समय यमलोक में दण्ड भोग रहे हैं, क्योंकि उन्होंने अपने जीवनकाल में किए एकादशी का व्रत भंग कर दिया था. दिवंगत पिता की पीड़ा सुनकर इंद्रसेन परेशान हो गए. उऩ्होंने महामुनि से करबद्ध प्रार्थना कर पूछा, -प्रभु ऐसा क्या करूं कि मेरे पिता को शांति एवं मोक्ष प्राप्त हो जाए. देवर्षि ने बताया, -हे राजन अगर आप आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का पूरे विधि-विधान से पूजा एवं व्रत करोगे और बदले में तुम्हें जो पुण्य प्राप्त होगा, उसे अपने पिता के नाम पर दान करना होगा. इसके पश्चात तुम्हारे पिता को मुक्ति मिल जाएगी. नारद जी के सुझाव पर इंद्रसेन ने आश्विन कृष्ण एकादशी का पूरी निष्ठा के साथ व्रत रखा. इंद्रसेन द्वारा किए व्रत से प्राप्त पुण्य अपने पिता के नाम से किसी एक को दान कर दिया. इसके तुरंत बाद उन्हें मोक्ष का प्राप्ति हुई.
व्रत एवं पूजा विधि
आश्विन माह के कृष्णपक्ष की दशमी के दिन प्रात:काल स्नानादि कर इंदिरा एकादशी व्रत का संकल्प लें. भगवान श्रीहरि का ध्यान कर मन ही मन कहें, -मैं निराहार व्रत रहकर एकादशी व्रत करूंगा, -हे ईश्वर मैं आपकी छत्रछाया में हूं, आप मेरी रक्षा करें’ अब विष्णु जी की प्रतिमा पर धूप, दीप, गंध, पुष्प, नैवेद्य आदि से पूजा करें. पूजा के पश्चात विधिपूर्वक श्राद्ध कर ब्राह्मण को फलाहार परोसें और दक्षिणादि देकर प्रसन्न मन से उन्हें विदा करें. एकादशी व्रत में रात्रि जागरण कर भगवान विष्णु की प्रतिमा के सामने कीर्तन-भजन करने से मनोवांछित फल प्राप्त होते हैं. किसी भी देवता या देवी की पूजा करने से पूर्व यह जान लें कि अगर आप उनकी विधि-विधान से पूजा एवं व्रत रखने में असमंजस महसूस करते हैं तो किसी योग्य पुरोहित से भी सुझाव ले सकते हैं.