Coronavirus Health Update: कोरोना वायरस (Coronavirus) से बचना है तो मास्क पहनना है, इसे दुनिया के सभी लोगों ने लगभग आत्मसात कर लिया है. बाजार में भी लोगों की सुविधा के लिये तरह-तरह के मास्क आ गये हैं. हांलाकि आम लोगों को कॉटन का मास्क लगाने की ही सलाह दी जा रही है. ऐसे में सर्जिकल, डिस्पोजल, एन95 सहित तमाम मास्क के बाद अब रीचार्जेबल मास्क काफी चर्चा में है. स्वास्थ्य की बात करें तो फेफड़े (Lung) के पंक्चर होने को लेकर भी लोगों के मन में कई सवाल उठ रहे हैं. यह क्या होता है, इसके क्या दुष्प्रभाव पड़ सकते हैं, बता रहे हैं आईएमए के पूर्व सचिव डॉ. नरेंद्र सैनी.
अभी लैब में बन रहा रीचार्जेबल मास्क
रीचार्जेबल मास्क के बारे में उन्होंने कहा कि एन95 मास्क को सबसे अच्छा मानते हैं. अब यह मास्क दो तरीकों से कीटाणुओं को रोकता है. पहला इसके पोर्स बहुत छोटे होते हैं. इसे मैकेनिकल फिल्ट्र्रे्शन कहते हैं. दूसरा इसके अंदर इलेक्ट्रोस्टेटिक चार्ज होते हैं, जो कीटाणुओं को अपनी ओर आकर्षित करते हैं और बाहर ही रोक देते हैं. मैकेनिकल फिल्टरेशन तो धूप या यूवी लाइट में रखने से बना रहता है, लेकिन इलेक्ट्रोस्टेटिक चार्ज धीरे-धीरे खत्म होने लगता है. ऐसे मास्क जिनमें इस चार्ज को पुन: प्रवाहित किया जा सके, वो रीचार्जेबल मास्क होते हैं. ये अभी लैब में बने हैं, बाजार में नहीं आये हैं.
रीयूज़ेबल एन95 मास्क लेने पर रहे सावधान
बाजार में कई तरह-तरह के मास्क के बीच कॉटन के मास्क को तो दोबारा प्रयोग कर सकते हैं. लेकिन इन दिनों एन95 मास्क को भी रीयूज़ेबल बता कर बेचा जा रहा है. इस पर डॉ सैनी कहते हैं कि जो लोग एन95 मास्क पर रीयूज़ेबल लिख कर बेच रहे हैं, वो गलत कर रहे हैं. एन95 मास्क को दोबारा से साफ करने का कोई तरीका अभी तक नहीं है. घर के बने मास्क तो पानी से धुलकर दोबारा इस्तेमाल कर सकते हैं, लेकिन एन95 को नहीं. एक स्टडी की गई, जिसमें इसे एक बार पहनने के बाद पांच दिन बाद पुन: पहनने की सलाह दी गई. इसमें कहा गया कि अगर रख रहे हैं, तो अखबार में लपेट कर रख दें, ताकि उसमें नमी नहीं जाये. ध्यान रहे, एन95 को धुल कर इस्तेमाल करना सुरक्षित है, इस बात के कोई वैज्ञानिक प्रमाण अब तक नहीं हैं.
100 में से एक कोरोना संक्रमित के फेफड़े हो रहे हैं पंक्चर
कोविड से ठीक होने वाले मरजों या पोस्ट कोविड में लोगों के फेफड़े पंक्चर के कुछ केस सामने आये हैं. डॉ. सैनी ने कहा कि वैज्ञानिक भाषा में पंक्चर को बोलते हैं नीमोथोरैक्स. कुछ मरीजों में ऐसा पाया गया है कि फेफड़ों के अंदर की लेयर डैमेज होने की वजह से हवा फेफड़े के ऊपर के कवर, जिसे प्लूरा कहते हैं, में चली जाती है. नीमोथेरैक्स उनमें पाया गया है, जो पहले से अस्थमा के मरीज हैं, या सांस की तकलीफ है, या अगर टीबी के मरीज को कोरोना हुआ है.
कई बार कोरोना के मरीजों को रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम हो जाता है, जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है. वो जोर-जोर से सांस लेते हैं और इंटरनल प्रेशर बढ़ जाता है. प्रेशर की वजह से लंग्स (lungs) में छिद्र हो जाता है और प्लूरा के अंदर हवा घुस जाती है. यह एक बहुत खतरनाक बीमारी है. समय पर इलाज नहीं मिलने पर सांस रुक भी सकती है.