रात में देर तक मोबाइल फोन देखने वालों, स्मार्ट फोन की नीली रोशनी आपकी आंखों की रोशनी तो नहीं छीन रही हैं?
प्रतीकात्मक तस्वीर (Photo Credits: Pixabay)

एक समय था, जब रात के प्रहर पर नींद का कब्जा हुआ करता था, आज सोशल मीडिया (social media) के बढ़ते चलन के कारण वहां नीली रोशनी ने कब्जा जमा लिया है. अब वे दिन नहीं रहे, जब लोग सोने से पूर्व अच्छी-अच्छी पुस्तकें या पत्रिकाएं पढ़ते थे. आज हर कोई स्मार्ट फोन अथवा टैबलेट (Smart phone or tablet) की नीली रोशनी में खोया हुआ है, लिहाजा ऐसे लोगों की आंखों की रोशनी धुंधली पड़ने लगी है. ऐसे लोगों की बढ़ती संख्या ने चिकित्सा जगत के सामने चुनौतियां खड़ी कर दी हैं. आइये जानें इस संबंध में नींद विशेषज्ञ क्या कहते हैं. यह भी पढ़े:  Condom Stuck in Woman's Lung: टीबी से ग्रसित होने की आशंका से महिला पहुंची डॉक्टर के पास, लेकिन सच्चाई जानकर उड़े उसके होश

 जया और विजया दो जुड़वा बहने हैं. जया रात में सोने से पूर्व पुस्तक पढ़ती हैं, जबकि विजया टैबलेट पर पढ़ती है. नीली रोशनी के आंखों पर बढ़ते दुष्प्रभाव को जांचने के लिए दोनों ने ट्रैकर का इस्तेमाल किया, जो बताता है कि वे सोई हैं या जाग रही हैं. ट्रैकर्स से प्राप्त डाटा एक स्मार्ट फोन एप पर सेव होता है. जया पुस्तक पढ़ते-पढ़ते सो जाती है, उधर विजया के टैबलेट की लाइट उसके चेहरे पर भी पड़ रही है. अंततः वह भी सो जाती है?

पहली सुबह

पहले बात करेंगे रात में पुस्तक पढ़ने वाली जया की. ऐप दर्शाता है कि जया 11 बजकर 48 मिनट पर सो गई थीं. उसने कुल छह घंटे सात मिनट की नींद ली. उधर विजया जया के मुकाबले 10 मिनट कम सो पाती हैं. नींद विशेषज्ञ डॉक्टर हाल्गर हाइन जो स्क्रीन लाइट के असर को बखूबी समझते हैं. उनका कहना था कि इस रोशनी की तरंगे छोटी होती हैं. इसकी लंबाई 470 से 480 नैनो मीटर होती है. आंख के फोटो रिसेप्टर इसे रजिस्टर करते हैं. इससे वे हारमोन प्रभावित होते हैं, जो शरीर को आराम पहुंचाने और रक्त को प्रभावित करने का कार्य करते हैं. इस रोशनी की वजह से सोने और जागने के रुटीन में खलल पड़ती है, और नींद की अवधि कम हो जाती है.

हर दिन दोनों बहनों की एक जैसी व्यस्तताएं होती हैं. उनका ज्यादातर समय व्यतीत होता है फार्म के कामकाज में, जहां उन्हें ताजी हवा मिलती है. शाम तक दोनों काफी थक जाती हैं. इस प्रयोग में पाया गया कि एक सप्ताह बाद विजया की नींद में अच्छी खासी कमी आई है. विजया हर रात अपनी बहन जया के मुकाबले औसतन 15 से 20 मिनट कम सोती हैं. नींद की कमी का असर ध्यान केंद्रित करने वाले एक विशेष टेस्ट में स्पष्ट दिखता है. इस टेस्ट के अंतर्गत एक बिंदु आधे घंटे तक एक दायरे में निरंतर घूमता रहता है, जिस पर क्लिक करना है. पर्याप्त नींद लेने वाले एक व्यक्ति के मुकाबले एक थके हुए कम नींद लेने वाले व्यक्ति के लिए इन बिंदुओं पर क्लिक करना मुश्किल होता है. फिलहाल तो अंतर बहुत ज्यादा नहीं है, लेकिन इतना जरूर है कि रात में नीली रोशनी देखने की वजह से दिन में ध्यान केंद्रित करने की क्षमता प्रभावित होती है. अगर हर रात स्क्रीन से निकलनेवाली नीली रोशनी देखेंगे तो परिणाम और ज्यादा स्पष्ट होगा.

नीली रोशनी के बढ़ते कहर के संदर्भ में देश के अधिकांश नेत्र रोग विशेषज्ञों का भी मानना है कि यह आंखों की रोशनी के लिए ठीक नहीं है. स्मार्ट फोन पर निरंतर नजरे जमाये रखने से जहां नीली रोशनी का जहर आंखों को धुंधला कर रहा है, वहीं आंखों का झपकना भी कम हो गया है. सामान्य तौर पर प्रति मिनट 12 से 14 बार आंखे झपकती हैं, लेकिन मोबाइल स्क्रीन पर बने रहने पर यह दर प्रति मिनट मात्र 6 से 7 बार रह गया है, इससे आंखें कमजोर हो रही हैं. पिछले 4-5 सालों में आंखों में सूनेपन की शिकायत लेकर आने वाले मरीजों की संख्या काफी वृद्धि हुई है. हैरानी की बात यह है कि ऐसे मामलों प्रोफेशनल्स की संख्या कहीं ज्यादा हैं, क्योंकि कोविड के कारण अधिकांश प्रोफेशनल्स लैपटॉप, टैबलेट और स्मार्ट फोन का ज्यादा प्रयोग करते हैं.

सुझाव

बेहतर तो यही होगा कि सोने से पूर्व पुस्तक पढ़ने की पुरानी आदतों को फिर से अमल में लाया जाये. लेकिन जहां तक प्रोफेशनल्स की बात है या नाइट शिफ्ट में कार्य करने की मजबूरी है तो वे स्मार्ट फोन या टैबलेट की लाइट की सेटिंग कम कर सकते हैं ताकि स्क्रीन से नीली रंग की बजाय लाल रोशनी निकले. कम से कम नुकसान हो, इसके लिए डिस्प्ले की रोशनी मध्यम रखनी चाहिए. इसके अलावा फोन या टैबलेट को आंखों से दूर रखकर कुछ हद तक आंखों को सुरक्षित रखा जा सकता है. जब भी फोन यूज करें इस बात का जरूर ध्यान रखें कि फोन आंखों के बेहद करीब न हो.