गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष।
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मैटैं न दोष।
गुरू की महिमा का बखान कबीर दास जी के इस दोहे से बेहतर भला क्या हो सकता है. उन्होंने बड़े सरल और सहज शब्दों में बताया है कि, बिना गुरु के ज्ञान का मिलना असंभव है. मनुष्य अज्ञान रूपी अंधकार में तब तक भटकता हुआ मायारूपी सांसारिक बंधनों में जकड़ा रहता है, जब तक उसे गुरु-कृपा प्राप्त नहीं हो जाती. मोक्ष रूपी मार्ग दिखलाने वाले गुरू ही हैं. बिना गुरु के सत्य एवं असत्य का ज्ञान नही होता. उचित-अनुचित के अंतर का ज्ञान नहीं होता, ऐसे में मोक्ष की प्राप्ति भला कैसे हो सकती है. इसलिए गुरु की शरण में जाओ, वही सच्ची राह दिखाएंगे.
गोविंद से बड़े गुरू
यूं तो हर धर्म और सम्प्रदाय में गुरू की महिमा सर्वोपरि है. विदेशी साहित्यों में भी गुरू की महानता का वर्णन मिलता है, लेकिन सनातन धर्म में गुरू की भूमिका ईश्वर से भी ऊपर मानी गई है. हिंदू शास्त्रों में लिखा है कि जिसे साक्षात भगवान ने श्रॉप दे दिया हो, उससे उसके गुरू बचा सकते हैं लेकिन जिसे गुरु ने श्रॉप दे दिया है, उसे भगवान भी नहीं बचा सकते. इसलिए हमारे धर्म शास्त्रों में गोविंद से ऊंचा स्थान गुरू को दिया जाता है.
हमारे पौराणिक ग्रंथों के अनुसार आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था. कहा जाता है कि आज के ही दिन ऋषि वेद व्यास जी ने वेदों का विस्तार करने के पश्चात पहली बार अपने शिष्यों को पुराणों का ज्ञान दिया था. गौरतलब है कि वेदव्यास जी ने 18 पुराणों एवं 18 उपपुराणों की रचना की थी. महाभारत एवं श्रीमद् भागवत् शास्त्र भी उन्हीं द्वारा लिखा गया था. इस लिहाज से उनका स्थान ब्रह्म गुरू के समान है. यही वजह है कि इस दिन को ‘व्यास पूर्णिमा’ के नाम से भी जाना जाता है.
गुरु पूर्णिमा तिथि व महूर्त
गुरु पूर्णिमा तिथि -16 जुलाई 2019
गुरु पूर्णिमा तिथि प्रारंभ - 01:48 बजे (16 जुलाई 2019)
गुरु पूर्णिमा तिथि समाप्त - 03:07 बजे (17 जुलाई 2019)
गुरुपूर्णिमा पर कैसे करें गुरु-पूजा
गुरु पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल उठकर स्नान-ध्यान से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र पहनें. सर्वप्रथम शिव जी और विष्णु जी की पूजा करें. इसके बाद गुरु वेदव्यास की विधिवत पूजा करनी चाहिए. अगर इसके साथ-साथ अपने कॉलेज के गुरू की पूजा और सम्मान स्वरूप वस्त्रादि प्रदान कर सकते हैं, तो इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता. कुछ लोग इस दिन अपने दिवंगत गुरु अथवा ब्रह्मलीन संतों के चित्र अथवा उनकी पादुका का धूप, दीप, पुष्प, अक्षत, चंदन, नैवेद्य आदि से पूजन करते हैं. अगर किसी से जाने-अनजाने गुरू जी के मान-सम्मान में कोई गलती हो गयी है तो उनसे माफी मांग लेनी चाहिए. यदि आपने किसी को अपना गुरू नहीं बनाया है तो वेद पुराण एवं शास्त्रों की भी पूजा कर सकते हैं.