हमारे हिंदू ग्रंथो में सच ही लिखा है, जिसका जन्म हुआ है उसका मरण निश्चित है. चाहे वो सर्व शक्तिमान और शक्तियों का ज्ञाता क्यों न हो सभी को एक न दिन मरना ही है. जिन्होंने महाभारत के युद्ध की पूरी बाग़डोर अपने हाथ में ली थी, जिनकी वजह से पांडवों ने कौरवों से युद्ध जीता था. उस सर्व शक्तिमान भगवान कृष्ण की भी मृत्यु हुई थी. श्री कृष्ण का जन्म, उनकी राधा के साथ रासलीला इन सभी कहानियों के बारे में सभी लोग जानते होंगे, लेकिन ऐसे बहुत कम लोग ही होंगे जिन्हें पता होगा कि कृष्ण मृत्यु हुई थी. भगवान कृष्ण की मृत्यु का कारण भी महाभारत के युद्ध से जुड़ा हुआ है. महाभारत का युद्ध ख़त्म होने के बाद जमीन पर चारों और सिर्फ लाशें बिछी हुई थी. करोड़ों सैनिकों की जान चली गई थी. गांधारी युद्ध भूमि पर अपने मरे हुए बेटों के शव पर दुःख व्यक्त करने वहां पहुंची थी. उनके साथ वहां कृष्ण और पांचों पांडव भी गए थे. वहां अपने बेटों की लाशों को देखकर वो इतनी दुखी हुई कि उन्होंने भगवान कृष्ण को 36 वर्ष बाद मृत्यु का शाप दे दिया. श्री कृष्ण ने मुस्कुराकर इस शाप को स्वीकार कर लिया और ठीक 36 वर्ष बात एक शिकारी के हाथों उनकी मृत्यु हो गई.
महाभारत के 18 वें खंड मौसल पर्व में लिखी है कृष्ण की मृत्यु:
कुरुक्षेत्र में हुए युद्ध की वजह से करोड़ों लोगों का खून बहा, जिसकी वजह से आज भी वहां की मिटटी का रंग लाल है. महर्षि वेद व्यास ने महाभारत को 18 खंडों में लिखा है, जिनमें 18वां खंड है मौसल पर्व इसमें कृष्ण की मृत्यु के बाद द्वारका नगरी के डूब जाने का वर्णन है.
कृष्ण के बेटे साम्ब की शरारत की वजह से डूबी पूरी द्वारका नगरी:
ये घटना महाभारत युद्ध के 35 साल बाद की है. द्वारका नगरी बहुत ही शांत और भोग विलास से परिपूर्ण थी. लेकिन श्री कृष्ण के बेटे साम्ब की शरारत की वजह से पूरी द्वारका पानी में डूब गई. श्री कृष्ण के साथ ऋषि विश्वामित्र, दुर्वासा, वशिष्ठ और नारद एक औपचारिक बैठक में थे. तभी साम्ब स्त्री का रूप धरकर वहां पहुंचा और ऋषियों से कहां कि, वो गर्भवती है कृपया आप मुझे बताएं की उसके गर्भ में क्या पल रहा है लड़का या लड़की ? ऋषि साम्ब की ठिठोली को समझ गए और उसे एक लोहे की छड़ जन्म देने के का शाप दिया. जिससे पूरे यादव वंश का नाश होगा. साम्ब ने डरकर सारी बात उग्रसेन को बताई जिसके बाद उन्होंने साम्ब को शाप से छुटकारा पाने का उपाय बताया, उसने बिलकुल वैसा ही किया. साथ ही उग्रसेन ने ये भी आदेश पारित कर दिया कि यादव राज्य में किसी भी प्रकार की नशीली सामग्रियों का ना तो उत्पादन किया जाएगा और ना ही वितरण होगा. इस घटना के बाद द्वारका नगरी में अशुभ संकेत मिलने लगे, पाप तेजी से बढ़ने लगा. सुदर्शन चक्र और कृष्ण के शंख, उनके रथ और बलराम का हल का अदृश्य हो गया.
इस सब चीजों से परेशान होकर श्री कृष्ण ने द्वारका वासियों को प्रभास नदी में स्नान कर अपने पापों से मुक्ति पाने को कहा, लेकिन वहां पहुंचकर सभी शराब पीकर गन्दी हरकतें करने लगे. शराब के नशे में चूर सात्याकि कृतवर्मा के पास पहुंचा और अश्वत्थामा को मारने की साजिश रचने और पांडव सेना के सोते हुए सिपाहियों की हत्या करने के लिए उसकी आलोचना करने लगा. वही कृतवर्मा ने भी सात्याकि पर आरोप मढ़ने शुरू कर दिए. बहस बढ़ती गई और इसी दौरान सत्याकि ने कृतवर्मा की हत्या कर दी. कृतवर्मा की हत्या करने के अपराध में यादवों ने मिलकर सात्यकि को मौत के घाट उतार दिया. जब कृष्ण को इस बात का पता चला तो वे वहां पर प्रकट हुए और एरका घास को हाथ में उठा लिया. ये घास एक लोहे छड़ में परिवर्तित हो गई जिससे श्रीकृष्ण ने दोषियों को सजा दी.
शराब के नशें में सभी ने घास को अपने हाथों में उठा लिया जो लोहे की छड़ बन गई और एक दूसरे की हत्या कर दी. वभ्रु, दारुक, बलराम और कृष्ण के अलावा अन्य सभी लोग मारे गए. कुछ समय बाद वभ्रु और बलराम की भी मृत्यु हो गई, जिसके बाद कृष्ण ने दारुक को कहा कि अर्जुन को सारी घटना बताकर उससे मदद लेकर आए. दारुक के रवाना होते ही श्री कृष्ण ने अपनी देह त्याग दी.
प्रभास नदी से जुड़ी है कृष्ण की मृत्यु:
कृष्ण की मृत्यु की घटना प्रभास नदी से ही जुड़ी है जिसमें लोहे की छड़ का चूर्ण बहाया गया था. लोहे की छड़ का चूर्ण एक मछली से निगल लिया और वह उसके पेट में जाकर धातु का एक टुकड़ा बन गया. जीरू नामक शिकारी ने उस मछली को पकड़ा और उसके शरीर से निकले धातु के टुकड़े को नुकीले तीर का निर्माण किया. कृष्ण वन में बैठे ध्यान में लीन थे. जीरू को लगा कोई हिरण है, उसने कृष्ण पर तीर चला दिया जिससे श्रीकृष्ण की मृत्यु हुई.