Ganga Sagar Mela 2023: 8 जनवरी से शुरू हो रहा है गंगासागर मेला? जानें इसका इतिहास और महात्म्य!
Ganga Sagar Mela 2023 (Photo Credits: File Photo)

  गंगासागर मेला (Ganga Sagar Mela) मकर संक्रांति से 2-3 दिन पहले शुरू होता है. मकर संक्रांति के दिन इसकी छटा देखते बनती है. इसे गंगासागर स्नान अथवा गंगासागर यात्रा के नाम से भी जाना जाता है. गंगोत्री से उद्गम होने के बाद देश के विभिन्न शहरों से होती हुई दुनिया की सबसे पवित्र नदी गंगा बंगाल की खाड़ी में विलीन हो जाती है. मकर संक्रांति के अवसर पर सनातन धर्म के लोग गंगा में पवित्र डुबकियां लगाने गंगासागर की ओर प्रस्थान करते हैं. भारी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं. इस वर्ष 2023 में 8 जनवरी, रविवार से 17 जनवरी, मंगलवार तक गंगासागर मेला मनाया जायेगा.

गंगासागर स्नान का महात्म्य!

गंगासागर के संगम पर श्रद्धालु समुद्र देवता को नारियल और यज्ञोपवीत भेंट करने की सदियों पुरानी परंपरा है. समुद्र में पूजन एवं पिंडदान कर पितरों को जल अवश्य अर्पित करना चाहिए. गंगासागर में स्नान-दान का महत्व शास्त्रों में विस्तार से वर्णित है. स्थानीय मान्यतानुसार जो कुंवारी कन्याएं अथवा कुंवारे युवक यहां स्नान-दान करते हैं, उन्हें उनकी इच्छानुसार वर एवं युवकों को इच्छित वधू प्राप्त होती है. अनुष्ठान आदि के पश्चात् सभी लोग कपिल मुनि के आश्रम जाकर उनका दर्शन लाभ लेते हैं, तथा श्रद्धा से उनकी मूर्ति की पूजा करते हैं. मंदिर में गंगा देवी, कपिल मुनि तथा भागीरथी की भी दिव्य मूर्तियां स्थापित हैं. यह भी पढ़ें : Satynarayan Vrat-katha 2023: पूर्णिमा पर रखें सत्यनारायण व्रत-कथा! होगी हर कामनाएं पूरी! जानें पूजा-कथा की विधि, मुहूर्त एवं पुण्य-लाभ!

क्या है गंगासागर की कहानी?

   हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार एक बार श्रीहरि कपिल मुनि के रूप में अवतरित हुए थे. यहीं उन्होंने अपना आश्रम बनाया और तपस्या में लीन हो गए. उस समय राजा सागर अपने शुभ कर्मों से खूब पुण्य-लाभ कमा रहे थे. यह देख इंद्र को अपना सिंहासन हिलता दिखा. उन्होंने षड़यंत्र करके राजा सागर का बलि में चढ़ाए जाने वाले अश्व को चुरा कर कपिल मुनि के आश्रम में छोड़ा दिया. सागर के साठ हजार पुत्र जब अश्व को ढूंढते हुए कपिल मुनि के आश्रम में घोड़े को देखा, तो उन्हें लगा कि उनका घोड़ा कपिल मुनि ने चुराया है. सागर-पुत्रों द्वारा अपमानित होने पर कपिल मुनि ने सागर के सभी पुत्रों को श्राप देकर भस्म कर दिया. पुत्रों के निधन से राजा सागर दुखी हो गये. सागर के पौत्र भगीरथ की कड़ी तपस्या से प्रसन्न होकर गंगा जी पृथ्वी पर अवतरित हुईं. इस तरह सागर-पुत्रों की राख गंगा में प्रवाहित कर उन्हें मोक्ष दिलाया गया. इसके बाद से ही गंगा को मोक्ष दायिनी माना जाता है, और हर व्यक्ति इस अवसर पर गंगा में डुबकी लगाते हैं.  

आज भी लाखों श्रद्धालु सागर द्वीप पहुंचकर मुक्ति पाने और पुराने पापों से मुक्ति पाने के लिए सागर और गंगा के संगम में पवित्र डुबकी लगाते हैं.

गंगासागर मेला: प्रमुख आकर्षण

ओंकारनाथ मंदिर

फ्रेजरगंज

कपिल मुनि मंदिर