Valmiki Jayanti 2018: जानें कैसे राम के नाम ने एक डाकू को बना दिया महर्षि वाल्मीकि, जिन्होंने की थी रामायण की रचना 
वाल्मीकि जयंती (File Photo)

Valmiki Jayanti 2018: हर साल आश्विन मास की शरद पूर्णिमा को महर्षि वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है. इस साल वाल्मीकि जयंती 24 अक्टूबर, बुधवार को मनाई जा रही है. वैदिक काल के महान ऋषि महर्षि वाल्मीकि का जन्म शरद पूर्णिमा को हुआ था. इसके अलावा शरद पूर्णिमा के दिन देवी लक्ष्मी के प्राकट्य का दिवस भी माना जाता है. महर्षि वाल्मिकि को कई भाषाओं का ज्ञान था और उन्होंने संस्कृत भाषा में रामायण की रचना की थी. विश्व के इस पहले महाकाव्य की रचना करके उन्होंने आदि कवि होने का गौरव प्राप्त किया था.

क्या आप जानते हैं कि महाकाव्य रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि असल में रत्नाकर नाम के एक डाकू हुआ करते थे और उनका लालन-पालन भील परिवार में हुआ था, लेकिन उनके जीवन में एक ऐसी घटना घटी जिसने उन्हें महर्षि वाल्मीकि बना दिया.

भील परिवार में हुआ था लालन-पालन 

पौराणिक कथा के अनुसार, महर्षि वाल्मिकि ब्रह्माजी के मानस पुत्र ऋषि प्रचेता के पुत्र थे, लेकिन बचपन में ही एक भीलनी ने उनका अपहरण कर लिया था. भील परिवार डकैती करके अपने परिवार का भरण-पोषण करता था, चूंकि रत्नाकर का लालन-पालन इसी परिवार में हुआ था इसलिए उन्होंने भी डकैती और लूटपाट का काम शुरू कर दिया

संसार से हुआ रत्नाकर का मोह भंग 

संयोगवश एक दिन उसी जंगल से नारद मुनि गुजर रहे थे और रत्नाकर ने लूटपाट के इरादे से उन्हें पकड़ लिया. जब रत्नाकर ने नारद मुनि को बंदी बनाया तब उन्होंने उससे पूछा कि लूटपाट और डकैती करके तुम जो ये पाप कर रहे हो क्या इसमें तुम्हारा परिवार बराबर का भागीदार बनेगा, जरा उनसे यह सवाल पूछकर देखो? नारद मुनि के कहने पर रत्नाकर ने अपने परिवार से यह सवाल पूछा तो सभी ने कहा कि अपने पाप के केवल तुम ही भागीदार बनोगे, हम नहीं. परिवार वालों की यह बात सुनकर उनका संसार से मोह भंग हो गया. यह भी पढ़ें: शरद पूर्णिमा 2018: जानें पूजा का शुभ मुहूर्त और विधि

नारद जी ने दिया राम नाम का मंत्र 

रत्नाकर का लालन-पालन भले ही भील परिवार में हुआ था, लेकिन वो महर्षि प्रचेता के पुत्र थे, इसलिए संसार से मोह भंग होते ही उन्होंने नारद मुनि से इसका उपाय पूछा.  जिसके बाद नारद मुनि ने रत्नाकर को राम नाम का मंत्र दिया और इस मंत्र को बोलते-बोलते रत्नाकर को पता ही नहीं चला कि वो कब तपस्या में लीन हो गए. एक स्थान पर बैठकर घोर तपस्या करने के कारण उनके शरीर पर मिट्टी की बांबी बन गई. मिट्टी की बांबी को वाल्मीकि कहते हैं, इसलिए उन्हें वाल्मीकि नाम से बुलाया जाने लगा.

वाल्मीकि ने की थी रामायण की रचना 

महर्षि वाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध होने के बाद भगवान ब्रह्मा ने उन्हें रामायण की रचना करने के लिए प्रेरित किया और ज्ञान प्राप्ति के बाद महर्षि वाल्मिकि ने रामायण ग्रंथ की रचना की. बता दें की रामायण एक ऐसा प्रथम महाकाव्य है जो भगवान राम के जीवन की प्रमुख घटनाओं को काव्य के रूप में सुनाता है. इतना ही नहीं जब भगवान राम ने सीता का त्याग कर दिया तब महर्षि वाल्मीकि ने ही इनको आश्रय दिया था और उनके आश्रम में ही माता सीता ने लव-कुश को जन्म दिया था.