Tulsi Vivah 2020: कब है तुलसी विवाह, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और पौराणिक कथा
तुलसी विवाह, (Photo Credits: Facebook)

तुलसी विवाह (Tulsi Vivah 2020) माता तुलसी और भगवान विष्णु का विवाह संस्कार है. इस त्योहार के दौरान कन्यादान समारोह सहित विवाह संबंधी सभी रस्में निभाई जाती हैं. माता तुलसी को देवी लक्ष्मी का अवतार कहा जाता है, जिनका जन्म वृंदा के रूप में हुआ था. तुलसी विवाह आमतौर पर हिंदू विवाह की तरह होता है. जिसके तहत दुल्हन में तुलसी के पौधे और दूल्हे शालिग्राम के रूप में भगवान विष्णु होते हैं, महिलाएं विवाह गीत और भजन गाती हैं. तुलसी विवाह में मंगलाष्टक मंत्र गाने की परंपरा है. यह भी पढ़ें: Dev Uthani Ekadashi 2020: कब है देवउठनी एकादशी? इस दिन से क्यों शुरू हो जाते हैं विवाह और मांगलिक कार्य

इस दिन घर को विवाह मंडप की तरह सजाया जाता है. तुलसी जी को लाल चुनरी चढ़ाकर उनका 16 श्रंगार किया जाता है. अग्नि देव को साक्षी मानकर शालिग्राम और तुलसी को हाथों में लेकर विवाह की प्रतिज्ञा ली जाती है. विवाह के बाद एक भोज भी आयोजित किया जाता है. तुलसी के पौधे के पास शाम को दीपक जलाने से घर में सुख-समृद्धि आती है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है. स्कंद पुराण के अनुसार यमदूत कभी भी उन घरों में प्रवेश नहीं करते हैं जहां तुलसी की पूजा की जाती है.

तुलसी विवाह तिथि:

गुरुवार  26 नवंबर, 2020

तुलसी विवाह शुभ मुहूर्त:

द्वादशी तिथि प्रारंभ प्रातः 05 बजकर 10 मिनट (26 नवम्बर 2020)

तुलसी विवाह पूजा विधि:

  • तुलसी विवाह के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करना चाहिए और साफ वस्त्र धारण करने चाहिए.
  • इसके बाद तुलसी जी को लाल रंग की चुनरी चढ़ाएं और उन्हें श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करें.
  • यह सभी चीजें अर्पित करने के बाद शालीग्राम जी को तुलसी के पौधे में स्थापित करें.
  • इसके बाद पंडित जी के द्वारा तुलसी और शालीग्राम का विधिवत विवाह कराएं.
  • तुलसी विवाह के समय पुरुष को शालिग्राम और स्त्री को तुलसी जी को हाथ में लेकर सात फेरे कराने चाहिए और विवाह संपन्न होने के बाद तुलसी जी की आरती करें.

तुलसी विवाह कथा:

पौराणिक कथा के अनुसार राक्षस कुल में एक अत्यंत ही सुदंर कन्या वृंदा का जन्म हुआ. वृंदा बचपन से ही भगवान विष्णु की पूजा करती थी और उनकी बहुत बड़ी भक्त भी थी. बड़ी होने पर उस कन्या का विवाह असुर जलंधर से हो गया. पतिव्रता वृंदा के कारण जलंधर को और भी ज्यादा शक्तियां प्राप्त हो गई. जलंधर वृंदा की भक्ति के कारण इतना शक्तिशाली हो गया था कि वह न केवल मनुष्य और देवताओं पर बल्कि राक्षसों पर भी अत्याचार करने लगा था.

वह इतना बलशाली हो गया था कि उसे मात देना किसी के भी वश में नहीं था. जिसके बाद सभी देवी- देवता मिलकर इसका हल ढूंढने भगवान विष्णु के पास गए. देवाताओं को इस समस्या से निकालने के लिए भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण कर लिया और वृंदा का पतिव्रता धर्म नष्ट कर दिया. जिसकी वजह से जलंधर युद्ध में मारा गया. जिसके बाद वृंदा ने भगवान विष्णु के इस छल के कारण उन्हें पत्थर हो जाने का श्राप दे दिया. सभी देवी- देवताओं ने वृंदा से अपना श्राप वापस लेने का आग्रह किया. वृंदा ने अपना श्राप तो वापस ले लिया, लेकिन खुद को अग्नि में भस्म कर लिया. भगवान विष्णु ने वृंदा की राख से एक पौधा लगाया और उसका नाम तुलसी रखा और कहा कि मेरी पूजा के साथ पृथ्वी के अंत तक तुलसी की भी पूजा होगी. तबसे शालिग्राम पत्थर का विवाह तुलसी से कराया जाता है.