Tulsi Vivah 2018: आज कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की 19 नवंबर को एकादशी को देव उठनी या देव प्रबोधिनी एकादशी मनाई गई. देव उठनी ग्यारस एकादशी के दिन तुलसी और शालिग्राम का विवाह किया जाता है. कहा जाता है तुलसी का विवाह शालिग्राम से कराना विशेष फलदायी होता है. इसलिए यह परंपरा बरसों से चली आ रही है.
शालिग्राम नेपाल की गंडकी नदी के तल में मिलते हैं. ये काले रंग के चिकने, अंडाकार होते हैं. इन पत्थरों को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है. शालिग्राम की पूजन तुलसी के बिना पूर्ण नहीं मानी जाती है. बता दें तुलसी और शालिग्राम विवाह करवाने से वही पुण्य फल प्राप्त होता है जो कन्यादान करने से मिलता है.
आज के दिन भगवान विष्णु क्षीर सागर में 4 महीने की निद्रा के बाद जागते हैं, उनके जागने के बाद ही सभी शुभ, मांगलिक कार्य फिर शुरू होते हैं. दरअसल, आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान क्षीर सागर में सोने के लिए चले जाते हैं, जिसे देवशयनी एकादशी कहते हैं. इस दौरान कोई भी शुभ और मांगलिक कार्य नहीं किया जाता.
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वहीं हिंदू मान्यताओं के अनुसार तुलसी विवाह के समय कन्यादान करने से कई यज्ञों के समान पुण्य मिलता है. पुराणों में तुलसी जी को विष्णु प्रिया या हरि प्रिया कहा जाता है. तुलसी पूजा से घर में संपन्नता आती है तथा संतान योग्य बनती है. तुलसी विवाह में तुलसी के पौधे और विष्णु जी की मूर्ति या शालिग्राम पाषाण का पूर्ण वैदिक रूप से विवाह कराया जाता है.
इस दिन घर के आंगन में गन्ने का मंडप बनाकर उसमें शालिग्राम को स्थापित किया जाता है और विधि-विधान से उनका विवाह तुलसी जी के साथ संपन्न कराया जाता है. पूजन के बाद उनकी परिक्रमा की जाती है.
पूजन का शुभ मुहूर्त-
शाम- 05.25 से शाम 07.05 बजे तक.
रात- 10.26 से रात 10.26 बजे तक.
व्रत के पारण का मुहूर्त-
20 नवंबर 2018, मंगलवार.
सुबह- 06.47 से 08.55 बजे तक.
तुलसी विवाह शुभ मुहूर्त:
द्वादशी तिथि आरंभ: 19 नवंबर 2018 को दोपहर 2:29 बजे
द्वादशी तिथि समाप्त: 20 नवंबर 2018 को दोपहर 2:40 बजे
मान्यताओं के अनुसार, साल की सभी 24 एकादशियों में देव उठनी एकादशी का व्रत करने से भक्तों के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है. यह भी पढ़े- Dev Uthani Ekadashi 2018: आज है सबसे बड़ी और फलदायी एकादशी, भूलकर भी न करें ये काम