Shivaji Maharaj Jayanti 2020: साल 1674 में भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज को कौन नहीं जानता. कई कलाओं में माहिर शिवाजी महाराज ने बचपन में ही राजनीति, रणनीति और युद्धनीति की शिक्षा हासिल कर ली थी. उनकी शूरवीरता, न्यायप्रियता, सर्वधर्म सम्मान करने वाले, चतुर योद्धा एवं महिलाओं को विशेष दर्जा देने जैसी कई बातों का उल्लेख इतिहास के पन्नों में मिलेगा. हिंदी तिथि के अनुसार 12 मार्च को सारा हिंदुस्तान उनकी जयंती मनायेगा.
हालांकि उनके जन्म के संबंध में कुछ भ्रांतिया हैं. यहां हम छत्रपति शिवाजी महाराज से जुड़े उन प्रसंगों को पढ़ेंगे, जिसके कारण छत्रपति शिवाजी महाराज कहलाए.
जन्म-तिथि को लेकर भ्रांतियां
छत्रपति शिवाजी महाराज की सही जन्म-तिथि को लेकर पिछले सौ सालों से हो रहे शोध के बावजूद भ्रांतियां बनी हुई हैं. कुछ इतिहासकार उनकी जन्म-तिथि अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार मनाने की बात करते हैं तो कुछ हिंदी पंचांग के आधार पर उनकी जयंती मनाने की वकालत करते हैं. अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार पिछले माह फरवरी की 19 तारीख को देश उनकी जयंती मना चुका है. हिंदी पंचांग के अनुसार शिवाजी का जन्म चैत्र मास के कृष्णपक्ष की तृतीया, 1551 शक संवत्सर बताई जाती है. उस हिसाब से उनकी जयंती इस वर्ष 2020 में 12 मार्च को मनायी जायेगी. कहा जाता है कि स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने सर्वप्रथम शिवाजी महाराज की सही जन्म-तिथि का पता लगाने की कोशिश की थी, लेकिन 14 अप्रैल 1900 में उऩ्होंने अपने समाचार पत्र में स्पष्ट किया कि शिवाजी महाराज की जन्मतिथि को लेकर कोई पुख्ता जानकारी नहीं है.
सर्वधर्म सम्मान
शिवाजी का सबसे बड़ा दुश्मन मुगल बादशाह औरंगजेब था. उन्होंने औरंगजेब को हर युद्ध में बुरी तरह परास्त किया है. रणभूमि में उसके सिपाहियों की गर्दन उड़ाते समय वे अत्यंत क्रूर हो जाते थे. लेकिन उन्होंने कभी मुसलमानों से नफरत या द्वेष नहीं किया. वह सभी धर्म के लोगों को इज्जत करते थे. उनकी सेना में कई मुस्लिम बड़े-बड़े पदों पर थे. इब्राहिम खान और दौलत खान उनके सेना के खास पदों पर थे. सिद्दी इब्राहिम उनकी सेना के तोपखानों का प्रमुख था. शिवाजी उन सभी का बहुत सम्मान करते थे. जानकारों के मुताबिक शिवाजी ने कई मस्जिदों के निर्माण में अनुदान दिया, इस वजह से उन्हें हिन्दू पंडितों के साथ-साथ मुसलमान संतों और फकीरों का भी सम्मान प्राप्त था.
महिलाओं का विशेष सम्मान
शिवाजी महाराज महिलाओं का बहुत सम्मान करते थे. ऐसा कई बार हुआ जब उनके सैनिक मुगलों को युद्ध में परास्त कर उनकी महिलाओं को गिरफ्तार कर दरबार में पेश करते. लेकिन शिवाजी ने उन महिलाओं के साथ कभी बुरा व्यवहार नहीं किया. वे उन्हें ससम्मान उनके घर भिजवाते और अपने सैनिकों के इस कदम के लिए खेद प्रकट करते. वे मुगल औरतों का ही नहीं बल्कि सभी औरतों को पूरी इज्जत देते थे. ऐसा ही एक किस्सा है. एक बार उनके सैनिक किसी गांव के मुखिया को पकड़ कर लाए. मुखिया बहुत रसूखदार व्यक्ति था. इस मुखिया पर एक औरत का रेप करने का आरोप था. शिवाजी के गुप्तचरों के पता लगाने के बाद मुखिया पर आरोप प्रमाणित हो गया. उस समय शिवाजी मात्र चौदह साल के थे, उन्होंने मुखिया के प्रभाव में आये बिना अपना निर्णय सुनाते हुए कहा, 'मुखिया के दोनों हाथ और पैर काट दिये जाएं, ताकि भविष्य में महिलाओं के साथ दुबारा ऐसी हरकतें करना का साहस कोई न करे. ऐसे जघन्य अपराध के लिए इससे कम कोई सजा नहीं हो सकती.
महा पराक्रमी
शिवाजी बचपन से ही वीर योद्धा के रूप में लोकप्रिय थे. ऐसी ही एक घटना है. पुणे के नचनी गांव में एक बार एक आदमखोर चीते का आतंक छाया हुआ था. वह चीता अचानक किसी व्यक्ति पर हमला करता और उसे गांव खींच ले जाता था. जब आदमखोर चीते के बढ़ते आतंक की खबर शिवाजी तक पहुंची तो उन्होंने गांव वालों को बुलावा कर धैर्य पूर्वक उनकी बात सुनी और कहा कि आप लोग निश्चिंत होकर अपने घर जाएं. मैं आपकी पूरी मदद करूंगा. इसके बाद शिवाजी अपने सिपाहियों कुछ सैनिकों के साथ जंगल में चीते को मारने पहुंचे. काफी तलाशने के बाद एक जगह चीता नजर आया. चीते को देखते ही सैनिक भाग खड़े हुए. लेकिन शिवाजी चीता से बिना डरे उस पर टूट पड़े और देखते ही देखते उसे उसे मार गिराया.
चतुर योद्धा
शिवाजी पराक्रमी भी थे और शक्तिशाली भी. युद्ध के मैदान में मुगल सिपाही उनसे युद्ध करने के नाम पर खौफ खाते थे. लेकिन कई बार ऐसा हुआ जब शिवाजी को अपने मुट्ठी भर सैनिकों के दम पर मुगलों के हजारों सेना से युद्ध लड़ना पड़ा. ऐसे में उनका सबसे सफल हथियार होता था गुरिल्ला युद्ध यानि छापामार युद्ध. अमूमन शिवाजी इस तरह का युद्ध भी जीतते थे. शिवाजी महाराज ने इस तरह का सबसे खतरनाक युद्ध शाइस्ता खान के साथ किया था. कहा जाता है कि शिवाजी की बढ़ती शक्ति पर अंकुश लगाने के लिए औरंगजेब ने अपने मामा शाइस्ता खान को डेढ़ लाख सैनिक देकर शिवाजी के पीछे भेजा. शाइस्ता खान अपनी सेना के साथ मावल में अगले दिन शिवाजी के साथ युद्ध की रणनीति बना रहा था. वहीं एक जंगल में शिवाजी अपने साढ़े तीन सौ सिपाहियों के साथ छिपे थे. कहा जाता है कि आधी रात के समय जब मुगल सेना सो रही थी, शिवाजी ने साढ़े तीन सौ सैनिकों के साथ शाइस्ता खान पर हमला कर दिया.यह हमला इतना अचानक हुआ था कि मुगल सैनिकों को संभलने का अवसर ही नहीं मिला. शाइस्ता खान तो भाग गया मगर हजारों मुगल सेना मारी गयी.
निधन
जन्म की ही तरह शिवाजी की मृत्यु (03 अप्रैल 1680) के बारे में भी विवाद है. कुछ इतिहासकार उनकी मृत्यु को स्वाभाविक मानते हैं तो कुछ इतिहासकारों ने लिखा है कि उन्हें साजिश के तहत जहर देकर मारा गया.