Sharad Purnima 2019: शरद पूर्णिमा की रात श्रीकृष्ण ने रचाया था महारास, कामदेव की इस चुनौती से है संबंध
श्रीकृष्ण की गोपियों के साथ रास रचाने की कथा दुनियाभर में प्रसिद्ध है. गोपियों को श्रीकृष्ण का मनमोहक रूप अतिप्रिय था और वे बासुंरी की धुन सुनते ही श्रीकृष्ण के पास खींची चली आती थीं. यहां तक कि वृंदावन की हर एक गली आज भी श्रीकृष्ण के रास की कहानी बयां करती है. कहा जाता है कि शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में उन्होंने महारास रचाया था.
Sharad Purnima 2019 Wishes: शरद पूर्णिमा की चांदनी रात सबसे मनमोहक और आकर्षक होती है. कहा जाता है कि इस दिन चंद्रमा (Moon) अपनी 16 कलाओं से परिपूर्ण रहते हैं और धरती पर अमृत की वर्षा करते हैं. आश्विन महीने की पूर्णिमा तिथि को शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) और कोजागरी पूर्णिमा (Kojagari Purnima) के नाम से जाना जाता है, यह पावन तिथि इस साल 13 अक्टूबर को पड़ रही है. शरद पूर्णिमा के दिन धन की देवी लक्ष्मी, श्रीकृष्ण, भगवान शिव, चंद्र देवता और कुबेर देवता की पूजा की जाती है. इसे देवी लक्ष्मी के प्राकट्य का दिवस भी माना जाता है. इसके अलावा कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में महारास किया था.
यूं तो श्रीकृष्ण की गोपियों के साथ रास रचाने की कथा दुनियाभर में प्रसिद्ध है और हो भी क्यों ना, गोपियों को श्रीकृष्ण का मनमोहक रूप इतना प्रिय था कि वे बासुंरी की धुन सुनते ही श्रीकृष्ण के पास खींची चली आती थीं. यहां तक कि वृंदावन की हर एक गली आज भी श्रीकृष्ण के रास की कहानी बयां करती है. हालांकि शरद पूर्णिमा की रात श्रीकृष्ण के महारास की यह कथा कामदेव की एक चुनौती से जुड़ी हुई है, चलिए विस्तार से जानते हैं. यह भी पढ़ें: Sharad Purnima 2019: शरद पूर्णिमा पर चांदनी रात में खीर खाने की है परंपरा, इससे सेहत को होते हैं ये कमाल के फायदे
कामदेव ने दी थी श्रीकृष्ण को चुनौती
बताया जाता है कि श्रीकृष्ण के द्वारा रचाया जाने वाला महारास सबसे पहले शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में ही संपन्न हुआ था. इससे जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार, कामदेव को इस बात का घमंड था कि वो किसी को भी काम के प्रति आसक्त कर सकते हैं. अपने इसी अहंकार के चलते उन्होंने एक बार श्रीकृष्ण को चुनौती देते हुए कहा कि वो उन्हें वासना के बंधन में बांधकर ही रहेंगे. श्रीकृष्ण ने उनकी चुनौती स्वीकार कर ली.
श्रीकृष्ण ने स्वीकार की हर शर्त
इस चुनौती के साथ ही कामदेव ने श्रीकृष्ण के सामने शर्त रखी कि आश्विन माह की पूर्णिमा की रात वृंदावन के खूबसूरत वन में उन्हें अपनी सुंदर गोपियों के संग आना होगा, जहां कामदेव के अनुकूल वातावरण हो. श्रीकृष्ण ने कामदेव की यह शर्त मान ली और शरद पूर्णिमा की रात वृंदावन के जंगल में जाकर बांसुरी बजाने लगे. बांसुरी की मधुर धुन सुनकर सभी गोपियां अपनी सुध-बुध खो बैठीं और श्रीकृष्ण के पास पहुंच गईं. कहा जाता है कि उन सभी गोपियों के मन में श्रीकृष्ण के करीब जाने और उनसे प्रेम करने की भावना तो जागी, लेकिन वो पूरी तरह से वासना रहित था.
श्रीकृष्ण ने रचाया गोपियों संग महारास
गोपियों के वन में पहुंचते ही श्रीकृष्ण ने अपने हजारों रूप धरकर वन में उपस्थित सभी गोपियों के साथ महारास किया, लेकिन उनके मन में एक क्षण के लिए भी वासना का भाव नहीं जागा. कामदेव ने श्रीकृष्ण के मन में काम और वासना का भाव जगाने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी, लेकिन वो असफल रहे. यह भी पढ़ें: Sharad Purnima 2019: कब है शरद पूर्णिमा, इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा से आती है जीवन में सुख-समृद्धि, जानें शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व
इस तरह से भगवान श्रीकृष्ण ने कामदेव की चुनौती को स्वीकार कर महारास रचाया, लेकिन उस दौरान अपने मन में किसी भी तरह की वासना को उत्पन्न नहीं होने दिया, जिसके चलते कामदेव का अहंकार भी चूर-चूर हो गया और वो चुनौती हार भी गए.
नोट- इस लेख में दी गई तमाम जानकारियों को प्रचलित मान्यताओं के आधार पर सूचनात्मक उद्देश्य से लिखा गया है. इसकी वास्तविकता, सटीकता और विशिष्ट परिणाम की हम कोई गारंटी नहीं देते हैं. इसके बारे में हर व्यक्ति की सोच और राय अलग-अलग हो सकती है.