Savitribai Phule Punyatithi 2023 Quotes: सावित्रीबाई फुले जयंती! शेयर करें देश की पहली महिला शिक्षिका के ये महान विचार
सावित्रीबाई फुले पुण्यतिथि 2023 (Photo Credits: File Image)

Savitribai Phule Punyatithi 2023 Quotes: देश की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले (Savitribai Phule) की आज पुण्यतिथि मनाई जा रही है. उनका निधन 10 मार्च 1897 के दिन हुआ था, महिलाओं के उद्धार व उनके अधिकारों के लिए काम करने वाली सावित्रीबाई फुले का जन्म एक दलित परिवार में 3 जनवरी 1831 को महाराष्ट्र (Maharashtra) के सातारा जिले (Satara District) के नायगांव में हुआ था. बताया जाता है कि केवल 13 साल की उम्र में उनका विवाह ज्योतिराव फुले से कर दिया गया था. सामाजिक भेदभाव और कई रुकावटों के बावजूद उन्होंने अपनी शिक्षा पूरी की और उन्होंने महिलाओं को शिक्षित करने का जिम्मा उठाया, इसलिए उन्हें भारत की पहली महिला शिक्षिका और नारी मुक्ति आंदोलन की पहली नेता के तौर पर भी जाना जाता है.

सावित्रीबाई फुले ने अपने पति ज्योतिराव फुले के साथ मिलकर लड़कियों के लिए 8 स्कूल खोले, जिनमें सबसे पहला स्कूल उन्होंने 1848 में पुणे में खोला था. वो अपने जीवनकाल में सती प्रथा, बाल विवाह और विधवा विवाह निषेध के खिलाफ लड़ाई लड़ी. उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर आप सावित्रीबाई फुले के इन  महान विचारों को अपनों के साथ शेयर कर श्रद्धांलजि अर्पित कर सकते हैं.

1- कोई तुम्हे कमजोर समझे, इससे पहले तुम्हें शिक्षा के महत्व को समझना होगा.

सावित्रीबाई फुले पुण्यतिथि 2023 (Photo Credits: File Image)

2- स्वाभिमान से जीने के लिए पढ़ाई करो, शिक्षा ही इंसानों का सच्चा आभूषण है.

सावित्रीबाई फुले पुण्यतिथि 2023 (Photo Credits: File Image)

3- स्त्रियां सिर्फ रसोई और खेत पर काम करने के लिए नहीं बनी हैं, वह पुरुषों से बेहतर कार्य कर सकती हैं.

सावित्रीबाई फुले पुण्यतिथि 2023 (Photo Credits: File Image)

4- देश में महिला साक्षरता की भारी कमी है, क्योंकि यहां की महिलाओं को कभी बंधन मुक्त होने ही नहीं दिया गया.

सावित्रीबाई फुले पुण्यतिथि 2023 (Photo Credits: File Image)

5- चौका बर्तन से ज्यादा जरूरी है पढ़ाई, क्या तुम्हें मेरी बात समझ में आई?

सावित्रीबाई फुले पुण्यतिथि 2023 (Photo Credits: File Image)

सावित्रीबाई फुले ने एक विधवा ब्राह्मण महिला को आत्महत्या करने से रोका और उसके नवजात बच्चे को गोद लेकर उसका नाम यशवंत राव रखा. उन्होंने उसे पढ़ाया-लिखाया और डॉक्टर बनाया. साल 1897 में उन्होंने बेटे यशवंत राव के साथ मिलकर प्लेग के मरीजों का इलाज करने के लिए अस्पताल खोला. प्लेग के मरीजों की देखभाल करते-करते वो खुद भी इसकी शिकार हो गई थीं और 10 मार्च 1897 को उन्होंने अंतिम सांस ली थी.