Sant Gadge Jayanti 2023: कौन थे संत गाडगे, जिन्होंने ताउम्र शिक्षा और स्वच्छता का उपदेश दिया, जानें इनके जीवन के रोचक प्रसंग!
Sant Gadge (Photo: Wikimedia Commons)

संतों की तपोभूमि महाराष्ट्र ने देश को एक से बढ़कर एक संत दिये हैं. जिनके उपदेशों ने देश ही नहीं दुनिया भर में सामाजिक चेतना का बिगुल फूंका है. ऐसे ही एक संत थे, संत गाडगे जी महाराज, जो निरक्षर रहते हुए भी महाराष्ट्र के ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता एवं शिक्षा का उपदेश देकर समाज को जागृत करने का काम किया है. गाडगे जी महाराज का हमेशा से एक ही लक्ष्य था, अज्ञान, अंधविश्वास एवं अपवित्रता के ढोंग को मिटाना. आज समस्त देश में संत गाडगे जी महाराज की 147 वीं जयंती (23 फरवरी 1876) मना रहा है, आइये जानते हैं गाडगे जी महाराज के जीवन के रोचक प्रसंगों के बारे में...

प्रारंभिक जीवन परिचय

संत गाडगे का जन्म 23 फरवरी 1876 को (जिला अमरावती, महाराष्ट्र) के अंजनगांव में एक क्षुद्र परिवार (धोबी) के घर पर हुआ था. माँ का नाम सखुबाई और पिता का नाम झिंगराजी था. उनकी परवरिश नाना के घर पर हुई थी. उनके घर का नाम देवीदास डेबूजी झिंगराजी जाणोकर था. लोग उन्हें देबूजी कहकर पुकारते थे. आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने से वे शिक्षा प्राप्त नहीं कर सके. साल 1892 में उनका विवाह कुंताबाई से हुआ था, उनके चार बच्चे थे. पशु-प्रेमी होने के नाते वे हमेशा से पशु-बलि का विरोध करते रहे.

घर-बार त्याग समाज सेवा में लिप्त होना

सांसारिक मोह माया से तंग आकर साल 1905 की एक रात उन्होंने घर-बार छोड़ दिया. वह गांव-गांव घूमकर भीख मांग कर अपना गुजारा करते. उन्होंने स्वच्छता अभियान के तहत गांव-गांव की सफाई करने का बीड़ा उठाया. उन्हें देख लोगों में भी स्वच्छता के प्रति जागरुकता बढ़ी. उन्होंने ग्रामीणों के सामने मौन रूप से एक उदाहरण पेश किया कि सभी को मिलकर उन परियोजनाओं पर काम करना चाहिए, जो समुदाय को लाभ पहुंचाती हैं.

समाज सेवा करते हुए उन्हें कई अनुयायी मसलन बाबा साहब आंबेडकर, आचार्य अत्रे आदि मिले. सामाजिक कार्य के लिए उनके पास दान की वर्षा होने लगी, लेकिन गाडगेजी ने इस धन का स्वयं पर कभी उपयोग नहीं किया. उन्होंने धर्मशालाओं, बावड़ी, वृद्धाश्रम, गौ संरक्षण केंद्र शुरू किया. गरीबों एवं भूखे लोगों के लिए अन्नदान केंद्र शुरू किया, इसके साथ ही कुष्ठ रोग से पीड़ितों के उत्थान के लिए भी केंद्रों का निर्माण कराया.

समाज सुधारक के रूप में

बाबा गाडगे ने ताउम्र समाज से अज्ञानता, अंधविश्वास और कुरीतियों को मिटाने में समर्पित किया. उनका समाज सुधारक बड़ी सहजता से होता था. वे कीर्तन करते और कीर्तन के माध्यम से श्रोताओं को उनकी अज्ञानता, दुर्गुणों और व्यवहार संबंधी लक्षणों से अवगत कराते थे. उनके उपदेश सरल और सीधे होते थे. उनके उपदेशों में मुख्य बातें, कि चोरी मत करो, साहूकारों से कर्ज मत लो, नशेड़ी मत बनो, भगवान और धर्म के नाम पर जानवरों को मत मारो, जातिगत भेदभाव न करो आदि होती थी.

सहज भाषा में देते थे उपदेश

बाबा गाडगे ने आम लोगों के दिमाग में यह छाप छोड़ने की कोशिश कि भगवान इंसानों में हैं, न कि पत्थर की मूर्ति में. वह संत तुकाराम को अपना गुरु मानते थे। साथ ही घोषणा करते थे कि वह स्वयं किसी के गुरु नहीं हैं और न ही उनका कोई शिष्य है. आम आदमी तक अपना संदेश पहुंचाने के लिए वह आम बोलचाल की भाषा, विशेषकर विदर्भ की बोली का प्रयोग करते थे. अपने कीर्तन में वह संत तुकाराम के अभंग (भक्ति गीत) का उपयोग करते थे.

संत गाडगे का निधन

साल 1956 की 20 दिसंबर को अमरावती की ओर प्रस्थान करते समय वाली गांव के पास पेढ़ी नदी तट पर संत गाडगे का निधन हो गया.