कलकत्ता हाई कोर्ट के जज अजय कुमार गुप्ता ने एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि यदि कोई पुरुष और महिला काफी समय से पति-पत्नी के रूप में साथ रह रहे हैं तो दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 125 के तहत भरण-पोषण का दावा करने के लिए विवाह का सख्त सबूत अनिवार्य नहीं है. कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि विवाह का प्रथम दृष्टया मामला अभाव को रोकने के उद्देश्य से प्रावधान की भावना को पूरा करने के लिए पर्याप्त है. यह फैसला एक आपराधिक पुनरीक्षण याचिका के जवाब में आया, जिसमें पहले के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें एक महिला को मेंटेनेंस देने से इनकार कर दिया गया था, लेकिन उसकी नाबालिग बेटी के लिए कथित तौर पर उसके पति से 3,000 रुपये प्रति माह देने का आदेश दिया गया था. यह भी पढ़ें: Calcutta High Court Verdict: 'किशोरियों को अपनी यौन इच्छाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए', SC ने कलकत्ता हाईकोर्ट की आपत्तिजनक टिप्पणी को किया खारिज

याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उसने 2006 में कोलकाता के एक मंदिर में हिंदू रीति-रिवाजों के अनुसार प्रतिवादी से विवाह किया था. विवाह के बाद, दंपति पति-पत्नी के रूप में रहने लगे, जिसके परिणामस्वरूप 2007 में उनकी बेटी का जन्म हुआ. हालांकि, बाद में प्रतिवादी ने विवाह और बच्चे के पितृत्व से इनकार कर दिया, जिसके कारण लंबी कानूनी लड़ाई चली.

कोलकाता हाई कोर्ट ऑर्डर:

(SocialLY के साथ पाएं लेटेस्ट ब्रेकिंग न्यूज, वायरल ट्रेंड और सोशल मीडिया की दुनिया से जुड़ी सभी खबरें. यहां आपको ट्विटर, इंस्टाग्राम और यूट्यूब पर वायरल होने वाले हर कंटेंट की सीधी जानकारी मिलेगी. ऊपर दिखाया गया पोस्ट अनएडिटेड कंटेंट है, जिसे सीधे सोशल मीडिया यूजर्स के अकाउंट से लिया गया है. लेटेस्टली स्टाफ द्वारा इसमें कोई बदलाव या एडिट नहीं किया गया है. सोशल मीडिया पोस्ट लेटेस्टली के विचारों और भावनाओं का प्रतिनिधित्व नहीं करता है, हम इस पोस्ट में मौजूद किसी भी कंटेंट के लिए कोई जिम्मेदारी या दायित्व स्वीकार नहीं करते हैं.)