Rani Lakshmi Bai Death Anniversary 2020: आज (18 जून 2020) झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की पुण्यतिथि (Rani Lakshmi Bai Punyatithi) है. कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान (Subhadra Kumari Chauhan) की कविता 'खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी'... आज भी झांसी की इस वीरांगना (Queen Of Jhansi) की वीरता की गाथा को बयां करती है. एक ऐसा दौर था जब कई रियासतों के राजाओं ने अंग्रेजी हुकूमत के आगे घुटने टेक दिए, लेकिन झांसी की रानी लक्ष्मीबाई (Rani Lakshmi Bai) को किसी भी हाल में अंग्रेजों के सामने झुकना मंजूर नहीं था. उन्होंने अपनी झांसी को बचाने के लिए न सिर्फ अंग्रेजों से डटकर लोहा लिया, बल्कि रणभूमि में उनका डटकर सामना भी किया.
1857 के विद्रोह (Revolt of 1857) की नींव रखने वाली झांसी की इस वीरांगना ने अपनी आखिरी सांस तक मातृभूमि की रक्षा की. महज 23 साल की उम्र में 18 जून 1858 को उन्होंने रणभूमि में लड़ते हुए अपने प्राण न्योछावर कर दिए. चलिए जानते हैं झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की 162वीं जयंती पर उनके जीवन से जुड़ी रोचक बातें...
रानी लक्ष्मीबाई से जुड़ी रोचक बातें
- 19 नवंबर 1828 को बनारस में जन्मी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई को बचपन में मणिकर्णिका नाम से बुलाया जाता था और सब उन्हें प्यार मनु व छबीली कहकर पुकारते थे. मुन के जन्म के महज 4 साल बाद ही उनकी मां का निधन हो गया था.
- मराठा ब्राह्मण परिवार में जन्मी रानी लक्ष्मीबाई के पिता मोरोपंत मराठा बाजीराव (द्वितीय) की सेवा करते थे. उनकी माता का नाम भागीरथीबाई थी, मणिकर्णिका की माता बुद्धिमान होने के साथ-साथ संस्कृत भाषा को अच्छी तरह से जानती थीं.
- मणिकर्णिका की उम्र जब 14 साल थी, तब उनका विवाह झांसी के राजा गंगाधर राव नेवालकर से संपन्न करा दिया गया था.
- शादी के कुछ समय बाद लक्ष्मीबाई ने बेटे को जन्म दिया, लेकिन उनका बेटा सिर्फ 4 महीने तक ही जीवित रहा, जिसके बाद उन्होंने अपने चचेरे भाई के बेटे को गोद लिया और उसका नाम दामोदर राव रखा.
- पुत्र को गोद लेने के कुछ समय बाद ही 21 नवंबर 1853 को राजा गंगाधर राव का निधन हो गया. दरअसल, पुत्र के निधन के बाद से ही राजा गंगाधर राव की सेहत खराब होने लगी थी, उनके बिगड़ते स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें पुत्र गोद लेने की सलाह दी गई थी.
- झांसी के राजा गंगाधर राव के निधन के बाद रानी लक्ष्मीबाई बेहद कमजोर पड़ गईं और उनकी कमजोरी का अंग्रेजी सरकार और पड़ोसी राज्यों ने फायदा उठाने की कोशिश करते हुए झांसी पर आक्रमण कर दिया. यह भी पढ़ें: Rani Lakshmi Bai Jayanti 2019: झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की 191वीं जयंती, जानें मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाली इस मर्दानी की वीरगाथा
- राजा के निधन के बाद अंग्रेजी सरकार ने रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र दामोदर राव को झांसी का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया. झांसी की बदकिस्मती का फायदा उठाते हुए अंग्रेजी सरकार ने लक्ष्मीबाई को सालाना 60000 रुपए पेंशन लेने व झांसी को खाली करने के लिए कहा.
- 1857 के विद्रोह की नींव रखने वाली झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी को बचाने के लिए बागियों की फौज तैयार की. उन्होंने महिलाओं को प्रशिक्षण देकर दुर्गा दल नाम की एक महिला सेना तैयार की. रानी लक्ष्मीबाई की बागियों की सेना में 14000 लोग शामिल थे.
- अंग्रेजी सेना ने 1858 में झांसी को पूरी तरह से घेर लिया, लेकिन अंग्रेजों को चकमा देकर झांसी की यह वीरांगना वहां से भागने में सफल रहीं. झांसी के किले से निकलकर वे तात्या टोपे से मिलीं और उनके साथ मिलकर ग्वालियर के एक किले पर कब्जा किया.
- अंग्रेजों से लड़ते समय 18 जून 1858 को रानी लक्ष्मीबाई सोनरेखा नाले की तरफ बढ़ीं, लेकिन उनका घोड़ा साथ नहीं दे पाया और वो नाले को पार नहीं कर सका.
अंग्रेजों से लड़ते समय एक अंग्रेज सैनिक रानी पर तलवार से हमला करने में कामयाब रहा, जिससे उन्हें काफी चोटें आई और महज 23 साल की उम्र में अंग्रेजों से लोहा लेते हुए झांसी की रानी लक्ष्मीबाई युद्धभूमि में वीरगति को प्राप्त हुईं.