Rani Lakshmi Bai Jayanti 2019: झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की 191वीं जयंती, जानें मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्योछावर करने वाली इस मर्दानी की वीरगाथा
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई (Photo Credits: Wikimedia Commons)

Rani Lakshmi Bai 191st Birth Anniversary: 'खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी (Queen of Jhansi) थी' कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान द्वारा रचित ये कविता आज भी झांसी की रानी लक्ष्मीबाई (Rani Lakshmi Bai) की वीरता की गाथा बयान करती है. झांसी की इस वीरांगना (Brave Queen of Jhansi) की आज 191वीं जयंती मनाई जा रही है और पूरा देश एक बार फिर उनकी वीरगाथा को याद कर रहा है. 1857 के गदर की नींव रखने वाली झांसी की रानी ने उस वक्त अंग्रेजों को धूल चटाई थी, जब एक-एक करके कई रियासतों के राजाओं ने अंग्रेजों के सामने घुटने टेक दिए थे. झांसी की इस वीरांगना ने अंग्रेजों का डटकर सामना किया और 18 जून 1858 को अपनी मातृभूमि के लिए लड़ते हुए 23 साल की उम्र में उन्होंने रणभूमि में अपने प्राण न्योछावर कर दिए.

आज पूरा देश झांसी की रानी लक्ष्मीबाई और उनकी वीरता की गाथा को याद कर रहा है. चलिए रानी लक्ष्मीबाई की 191वीं जयंती (Rani Lakshmi Bai 191st Birth Anniversary) पर जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें और उनकी वीरता की गाथा.

1- रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को बनारस में हुआ था. बचपन में उनका नाम मणिकर्णिका था और सब उन्हें प्यार से मनु और छबीली कहकर पुकारते थे. मणिकर्णिका के जन्म के महज 4 साल बाद ही उनकी मां का निधन हो गया था.

2- मणिकर्णिका का जन्म मराठा ब्राह्मण परिवार में हुआ था. उनके पिता मोरोपंत मराठा बाजीराव (द्वितीय) की सेवा करते थे और उनकी माता का नाम भागीरथीबाई था, जो बहुत बुद्धिमान और संस्कृत भाषा को अच्छी तरह से जानती थीं. यह भी पढ़ें: Rani Lakshmi Bai Death Anniversary 2019: अंग्रजों से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हुईं थी रानी लक्ष्मीबाई, जानिए झांसी की इस वीरांगना से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

3- महज 14 साल की उम्र में सन 1842 में मणिकर्णिका का विवाह झांसी के राजा गंगाधार राव नेवालकर से हो गया. राजा गंगाधर राव के कार्यकाल से पहले ही झांसी अंग्रेजों के कर्ज तले दबी हुई थी और सत्ता में आने के कुछ ही सालों बाद ही उन्होंने अंग्रेजों को बाहर कर दिया था.

4- विवाह के बाद रानी लक्ष्मीबाई ने बेटे को जन्म दिया, लेकिन दुर्भाग्यवश उनका बेटा सिर्फ 4 महीने तक ही जीवित रह सका. बेटे की मौत के बाद राजा गंगाधर राव ने अपने चचेरे भाई के बच्चे को गोद लिया और उसे दामोदर राव नाम दिया.

5- दरअसल, सन 1853 में राजा गंगाधर राव का स्वास्थ्य ज्यादा बिगड़ने लगा था, जिसे देखते हुए उन्हें एक पुत्र को गोद लेने की सलाह दी गई. पुत्र को गोद लेने के बाद 21 नवंबर 1853 को राजा गंगाधर राव की मौत हो गई.

6- राजा गंगाधर राव की मृत्यु के बाद रानी लक्ष्मीबाई कमजोर पड़ने लगी. उनकी कमजोरी का फायदा उठाते हुए अंग्रेजी सरकार और पड़ोसी राज्यों ने मिलकर झांसी पर आक्रमण शुरू कर दिया.

7- राजा के देहांत के बाद लॉर्ड डलहौजी ने ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार करने के लिए झांसी की बदकिस्मती का फायदा उठाने की कोशिश की. अंग्रेजों ने रानी लक्ष्मीबाई के दत्तक पुत्र दामोदर राव को झांसी के राजा का उत्तराधिकारी मानने से इनकार कर दिया. झांसी की रानी को सालाना 60000 रुपए पेंशन लेने और झांसी के किले को खाली करने के लिए कहा गया.

8- सन 1857 तक झांसी दुश्मनों से घिर चुकी थी, जिसके बाद दुश्मनों के बीच घिरी झांसी को बचाने का जिम्मा खुद रानी लक्ष्मीबाई ने अपने कंधों पर उठा लिया. इसके लिए उन्होंने बागियों की फौज तैयार करने का फैसला किया. उन्होंने महिलाओं को प्रशिक्षण दिया और अपनी एक महिला सेना तैयार की. महिला सेना का नाम दुर्गा दल रखा गया. उन्होंने करीब 14000 बागियों की सेना तैयार की थी.

9- सन 1858 में युद्ध के दौरान अंग्रेजी सेना ने पूरी झांसी को घेर लिया और पूरे राज्य पर कब्जा कर लिया था, लेकिन अंग्रेजों को चकमा देकर रानी लक्ष्मीबाई वहां से भागने में सफल रहीं. झांसी के किले से निकलने के बाद वे तात्या टोपे से मिलीं. उन्होंने तात्या टोपे से मिलकर ग्वालियर के एक किले पर कब्जा किया. यह भी पढ़ें: रानी लक्ष्मीबाई जन्मदिन विशेष: 'खूब लड़ी मर्दानी वो तो....जानें उस वीरांगना के बारे में जिसनें रखीं थी 1857 के गदर की नींव

10- 18 जून 1858 को अंग्रेजों से लड़ते समय रानी अपने दत्तक पुत्र दामोदर राव को रामचंद्र देशमुख को सौंपकर सोनरेखा नाले की तरफ बढ़ीं, लेकिन दुर्भाग्यवश रानी का घोड़ा इस नाले को पार नहीं कर सका. उसी समय एक अंग्रेज सैनिक ने रानी पर तलवार से हमला कर दिया, जिससे उन्हें काफी चोट आई और मातृभूमि के लिए अंग्रेजों से लड़ते हुए वे युद्धभूमि में वीरगति को प्राप्त हुईं.

गौरतलब है कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई ने अपने आखिरी दम तक अंग्रेजों से लोहा लिया और 23 साल की उम्र में मातृभूमि के लिए अपने प्राण न्योछावर करके इतिहास में सदा-सदा के लिए अमर हो गईं.