Rani Lakshmi Bai Jayanti 2024: झांसी की रानी (Jhansi Ki Rani), रानी लक्ष्मीबाई (Rani Lakshmi Bai), झांसी की रानी के नाम से प्रसिद्ध थीं. उनका जन्म एक मराठा ब्राह्मण परिवार में हुआ था और उनका नाम मणिकर्णिका रखा गया था. मणिकर्णिका से उनका उपनाम मनु रखा गया. रानी लक्ष्मीबाई 1857 के विद्रोह की अग्रणी हस्तियों में से एक थीं, जो 10 मई, 1857 को शुरू हुआ था. पूरे देश के लिए, वह ब्रिटिश राज के खिलाफ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की एक प्रतीक बन गईं. 19 नवंबर को रानी लक्ष्मीबाई की जयंती को 1857 के विद्रोह में शहीद हुए लोगों के सम्मान में झांसी में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है. लक्ष्मीबाई की जन्म तिथि के बारे में अभी भी विवाद है. ऐसा माना जाता है कि रानी लक्ष्मीबाई का जन्म 19 नवंबर 1828 को मणिकर्णिका तांबे के रूप में हुआ था.
मणिकर्णिका ने चार साल की उम्र में अपनी माँ को खो दिया था और उनके पिता ने उन्हें अपरंपरागत तरीके से पाला था, जो पेशवा के दरबार में सलाहकार के रूप में काम करते थे. उनके पिता ने उन्हें घुड़सवारी, तीरंदाजी, आत्मरक्षा और निशानेबाजी सीखने में मदद की. 1842 में लक्ष्मीबाई का विवाह झांसी के महाराजा गंगाधर राव नेवालकर से हुआ और उन्हें रानी लक्ष्मीबाई का नाम दिया गया. विवाह के कुछ साल बाद, 1851 में मणिकर्णिका ने एक लड़के को जन्म दिया, लेकिन वह जीवित नहीं रह सका और चार महीने बाद ही उसकी मृत्यु हो गई. आनंद को गोद लेने के तुरंत बाद, 1853 में बीमारी के कारण महाराजा की मृत्यु हो गई. वह केवल 18 वर्ष की उम्र में झांसी की शासक बन गईं.
ईस्ट इंडिया कंपनी ने महाराजा की मौत का फायदा उठाया और व्यपगत सिद्धांत लागू किया- दामोदर राव को कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में स्वीकार नहीं किया. अन्याय से दुखी होकर रानी लक्ष्मीबाई ने लंदन की एक अदालत में अपील भी की, जिसने उनके मामले को खारिज कर दिया. रानी लक्ष्मीबाई झांसी पर अपना आधिपत्य नहीं छोड़ना चाहती थीं और इसलिए उन्होंने विद्रोहियों की एक सेना तैयार करना शुरू कर दिया. उन्हें महान योद्धाओं का समर्थन प्राप्त था और अपनी रक्षा को मजबूत करने के लिए रानी के पास महिलाओं की एक सेना भी थी.
रानी लक्ष्मी बाई की जयंती पर हम उनकी एक प्रसिद्ध कविता खूब गई जाती है. इस कविता को प्रसिद्ध लेखिका सुभद्रा कुमारी चौहान ने लिखी है. इस कविता के बोल नीचे दिए गए हैं.
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी
बूढ़े भारत में भी आई फिर से नयी जवानी थी
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी
कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
कानपूर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,
बरछी, ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।
वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार
लक्ष्मी थी या दुर्गा थी वह स्वयं वीरता की अवतार,
देख मराठे पुलकित होते उसकी तलवारों के वार,
नकली युद्ध-व्यूह की रचना और खेलना खूब शिकार,
सैन्य घेरना, दुर्ग तोड़ना ये थे उसके प्रिय खिलवाड़।
महाराष्ट्र-कुल-देवी उसकी भी आराध्य भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में।
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
उदित हुआ सौभाग्य, मुदित महलों में उजियाली छाई,
किंतु कालगति चुपके-चुपके काली घटा घेर लाई,
तीर चलाने वाले कर में उसे चूड़ियाँ कब भाई,
रानी विधवा हुई, हाय! विधि को भी नहीं दया आई।
निसंतान मरे राजाजी रानी शोक-समानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया
बुझा दीप झाँसी का तब डलहौज़ी मन में हरषाया,
राज्य हड़प करने का उसने यह अच्छा अवसर पाया,
फ़ौरन फौजें भेज दुर्ग पर अपना झंडा फहराया,
लावारिस का वारिस बनकर ब्रिटिश राज्य झाँसी आया।
अश्रुपूर्ण रानी ने देखा झाँसी हुई बिरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया
अनुनय विनय नहीं सुनती है, विकट शासकों की माया,
व्यापारी बन दया चाहता था जब यह भारत आया,
डलहौज़ी ने पैर पसारे, अब तो पलट गई काया,
राजाओं नव्वाबों को भी उसने पैरों ठुकराया।
रानी दासी बनी, बनी यह दासी अब महरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात
छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,
उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?
जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार
रानी रोयीं रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,
'नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान
कुटियों में भी विषम वेदना, महलों में आहत अपमान,
वीर सैनिकों के मन में था अपने पुरखों का अभिमान,
नाना धुंधूपंत पेशवा जुटा रहा था सब सामान,
बहिन छबीली ने रण-चण्डी का कर दिया प्रकट आहवान।
हुआ यज्ञ प्रारम्भ उन्हें तो सोई ज्योति जगानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी
महलों ने दी आग, झोंपड़ी ने ज्वाला सुलगाई थी,
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,
मेरठ, कानपुर,पटना ने भारी धूम मचाई थी,
जबलपुर, कोल्हापुर में भी कुछ हलचल उकसानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम
इस स्वतंत्रता महायज्ञ में कई वीरवर आए काम,
नाना धुंधूपंत, ताँतिया, चतुर अज़ीमुल्ला सरनाम,
अहमदशाह मौलवी, ठाकुर कुँवरसिंह सैनिक अभिराम,
भारत के इतिहास गगन में अमर रहेंगे जिनके नाम।
लेकिन आज जुर्म कहलाती उनकी जो कुरबानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी
इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में
इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वंद असमानों में।
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥
रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार
रानी बढ़ी कालपी आई, कर सौ मील निरंतर पार,
घोड़ा थक कर गिरा भूमि पर गया स्वर्ग तत्काल सिधार,
यमुना तट पर अंग्रेज़ों ने फिर खाई रानी से हार,
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी राजधानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो
कहा जाता है कि भीषण युद्ध के बाद जब ब्रिटिश सेना झांसी में घुसी तो रानी लक्ष्मीबाई ने अपने बेटे दामोदर राव को अपनी पीठ पर बांधा और दोनों हाथों में दो तलवारें लेकर बहादुरी से लड़ीं. भारत की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति देते हुए 17 जून 1958 को उनकी मृत्यु हो गई.