Rani Durgavati Death Anniversary 2019: शौर्य और पराक्रम की प्रतिमूर्ति थीं महारानी दुर्गावती, जिन्होंने अपने साहस से कर दिए थे मुगलों के दांत खट्टे
रानी दुर्गावती पुण्यतिथि 2019 (Photo Credits: Facebook)

Rani Durgavati Death Anniversary 2019: महारानी दुर्गावती (Maharani Durgavati) का शौर्य और पराक्रम रानी लक्ष्मीबाई से रानी कम नहीं था. रानी दुर्गावती (Rani Durgavati) की शौर्यगाथा को इसीलिए दबा दिया गया, क्योंकि उन्होंने मुगल शासकों से लोहा लेते हुए हर मोर्चे पर उनके दांत खट्टे कर दिये थे. उन्होंने मुगलों (Mughals) की विशाल सेना को कई बार ध्वस्त किया. कहा जाता है कि अकबर (Akbar) रानी दुर्गावती के राज्य को अपने निवास का हिस्सा बनाना चाहता था, लेकिन रानी ने अपने और अपने राज्य गोंडवाना के अस्तित्व के साथ कभी समझौता नहीं किया. ऐसे ही एक युद्ध में तीरों से बिंध चुकी रानी दुर्गावती ने जब देखा कि मुगल सेना अब उन्हें गिरफ्तार कर लेगी, रानी ने अपनी कटार अपने सीने में भोंक कर अपने अस्तित्व की रक्षा की. 24 जून को संपूर्ण देश अपनी आन बान शान के लिये बलिदान देने वाली रानी दुर्गावती की पुण्य तिथि मनाई जा रही है.

दुर्गावती का जन्म 5 नवंबर 1524 को कालिंजर के राजा कीर्ति सिंह चंदेल के घर हुआ था. जिस दिन वह पैदा हुईं, उस दिन दुर्गाष्टमी थी, इसलिए माता-पिता ने उनका नाम दुर्गावती रखा. इकलौती संतान होने के बावजूद दुर्गावती बचपन में तीर-तलवार और घुड़सवारी आदि में प्रवीण हो चुकी थीं. वह अपने नाम के अनुरूप साहसी और शौर्य की प्रतिमा थीं. सौंदर्य की अप्रतिम प्रतिमा तो वे थीं ही.

5 साल में सुहागन से विधवा हो गयीं

वर्ष 1542 में रानी दुर्गावती का विवाह गोंडवाना साम्राज्य के राजा संग्राम शाह के बड़े बेटे दलपत शाह के साथ हुआ था. दलपत शाह से दुर्गावती को एक पुत्र नारायण पैदा हुआ था, नारायण अभी तीन वर्ष का ही था कि दुर्भाग्यवश दलपत शाह की मृत्यु हो गई. पति के निधन के पश्चात रानी दुर्गावती ने गढ़ मंडला का राजपाट संभाला. प्रजा के हित के लिए उन्होंने काफी कार्य किये. अपने राज्य में अनेकों मंदिर, मठ, कुएं, बावड़ी और धर्मशालाएं बनवाई. आज का जबलपुर उन दिनों राज्य का केंद्र था. दुर्गावती अपनी सेविकाओं से कितना प्यार करती थीं, इस बात का अहसास इसी से किया जा सकता है कि उन्होंने अपनी दासी के नाम पर चेरीताल और विश्वस्त दीवान आधार सिंह के नाम पर आधारताल बनवाया था. बाद में मातहतों के कहने पर उन्होंने अपने नाम पर भी रानीताल बनवाया.

महारानी दुर्गावती का सुशासन

महारानी दुर्गावती की बहादुरी और सुशासन की प्रशंसा इतिहासकारों ने भी की है. अबुल फजल ने अपनी पुस्तक ‘आइना-ए-अकबरी’ में लिखा है कि दुर्गावती के शासनकाल में गोंडवाना इतना सुव्यवस्थित और सुसमृद्ध था कि प्रजा लगान की अदायगी स्वर्ण मुद्रा और हाथियों से करती थी. कहा जाता है कि दुर्गावती के हाथीखाने उस समय 14 सौ हाथी थे. उऩके राज्य में चारों ओर सुख, शांति और समृद्धि की वर्षा होती थी. लेकिन मुगल शासकों को यह कदापि पसंद नहीं था कि कोई गैरमुगल राज्य इतना तरक्की करे.

कटंगी युद्ध में विजय प्राप्त कर दुर्गावती बनीं ‘साम्राज्ञी’

उन दिनों मालवांचल शांत, समृद्ध और संपन्न राज्य माना जाता था. लेकिन वहां का सुबेदार बाज बहादुर स्त्री लोलुप और लालची व्यक्ति था. उसकी नजर रानी दुर्गावती की संपत्ति पर टिकी हुई थी. रानी दुर्गावती उसकी मंशा समझती थी, लिहाजा दुर्गावती ने उस पर आक्रमण कर दिया. इस युद्ध में बाज बहादुर का चाचा फतेह खान मारा गया, जबकि बाज बहादुर को युद्ध क्षेत्र से भागकर अपनी जान बचानी पड़ी. कुछ दिन पश्चात बाज बहादुर ने दुबारा दुर्गावती पर आक्रमण किया. रानी दुर्गावती ने आक्रमण का जवाब देते हुए बाजबहादुर की पूरी सेना को तबाह कर दिया. बाद में यह युद्ध ‘कटंगी घाटी के युद्ध’ के नाम लोकप्रिय हुआ. इस विजय के पश्चात उनके राज्य की जनता ने उन्हें सम्राज्ञी के रूप में स्थापित करवाया.

अकबर की कुटिल चालों का जवाब युद्ध से दिया दुर्गावती ने

उन दिनों अकबर के एक राज्य मानिकपुर का सुबेदार था अब्दुल मजीद खान, जिसका वास्तविक नाम आसफ खान था. वास्तव में आसफ खान अकबर का दूर का रिश्तेदार था. उसने अकबर को दुर्गावती के खिलाफ भड़काते हुए कहा कि महाराज दुर्गावती एक नगीना है, जिसे आपके हरम में होना चाहिए. अकबर ने रानी को जबरन परेशान करने की नियति से उनसे उनके प्रिय हाथी ‘सरमन’ और उसके सबसे विश्वस्त वजीर आधार सिंह को अपने पास भेजने का आदेश दिया. रानी ने अकबर की यह मांग ठुकरा दी. नाराज होकर अकबर ने आसफ खान को रानी दुर्गावती के राज्य गोंडवाना पर हमला करने का आदेश दिया. लेकिन इस युद्ध में रानी दुर्गावती ने आसफ खान को बुरी तरह पराजित किया. यह भी पढ़ें: Rani Lakshmi Bai Death Anniversary 2019: अंग्रजों से लोहा लेते हुए वीरगति को प्राप्त हुईं थी रानी लक्ष्मीबाई, जानिए झांसी की इस वीरांगना से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

जब रानी ने अपनी कटार सीने में भोंक ली

आसफ खान को परास्त होने की खबर सुनकर अकबर ने कई गुना ज्यादा सैनिक आसफ खान की मदद के लिये भेजा. आसफ खान ने गोंडवाना पर दुबारा हमला कर दिया. इस बार दुर्गावती के पास बहुत कम सैनिक थे. दुर्गावती ने पुरुष भेष रखकर जबलपुर के पास नरई नाले के किनारे अपना मोर्चा लगाया. इस युद्ध में रानी दुर्गावती एवं उसकी सेना ने 3 हजार मुगल सैनिकों को मार गिराया. लेकिन रानी को भी काफी नुकसान हुआ. मुगल सेना ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया था.

रानी ने किसी तरह नारायण को अपने विश्वस्त सैनिकों के साथ सुरक्षित जगह पर भेज दिया. लेकिन इसके पूर्व की वे मुगल सेना पर आक्रमण करतीं, एक तीर उनके कंधे पर लगा. रानी ने तीर निकाल कर फेंका ही था कि एक और तीर उनकी आंखों में घुस गयी. उन्होंने इसे भी निकालने की कोशिश की मगर तीर की नोक उनकी आंखों में ही रह गयी. रानी समझ गईं कि अकबर की सेना उन्हें कभी भी गिरफ्तार कर लेगी. उन्होंने अपने वजीर से प्रार्थना की कि वह अपने तलवार से उनकी गर्दन काट दे ताकि वे जीते जी अकबर की पकड़ में न आ सकें. मगर आधार सिंह ने ऐसा करने में असमर्थता जताई. तब रानी ने अपने कमर से कटार निकालकर अपने ही सीने में भोंककर अपनी जीवन लीला खत्म कर ली. वह दिन था 24 जून 1564. यह युद्ध आज के जबलपुर के करीब मदन महल किला के पास हुआ था. यहीं पर रानी दुर्गावती की समाधि बनी है. यहां आज भी लोग आकर पुष्प चढ़ाते हैं और वहां की रज माथे पर लगाते हैं.