Muharram 2020 Date in India: मुहर्रम (Muharram) को इस्लामिक कैलेंडर 'हिजरी' (Hijri Calendar) का पहला महीना (First Month of Islamic Calendar) माना जाता है, जिसे इस्लाम धर्म में बेहद महत्वपूर्ण माना जाता है. हालांकि इस महीने को इस्लाम धर्म के लोग खुशियों के तौर पर नहीं, बल्कि मातक के रूप में मनाते हैं. मुहर्रम के महीने में कर्बला के 72 शहीदों को शिद्दत से याद किया जाता है. चांद के दीदार के बाद भारत में 21 या 22 अगस्त 2020 से माह-ए-मुहर्रम (Maah-e-Muharram) की शुरुआत हो सकती है. हालांकि इस साल कोरोना संकट (Corona Crisis) की वजह से मुहर्रम के दसवें दिन यौम-ए-आशुरा (Youm-e-Ashura) को भी अलग तरीके से मनाया जाएगा.
दरअसल, ओमान न्यूज एजेंसी के अनुसार, चांद के दीदार के आधार पर हिजरी न्यू ईयर की शुरुआत होगी. इस्लामिक नव वर्ष को हिजरी नववर्ष (Hijri New Year) या अरबी नववर्ष भी कहा जाता है.MERA के एस्ट्रोनॉमिकल अफेयर्स डिपार्टमेंट (Astronomical Affairs Department) ने कहा कि अगर मौसम साफ रहा तो मुहर्रम के चांद का दीदार 19 अगस्त (बुधवार) को हो सकता है. ऑनलाइन जारी किए गए एक बयान में कहा गया है कि मस्कट शहर के स्थानीय समयानुसार बुधवार शाम 6.36 बजे सूर्यास्त होगा और चंद्रमा शाम 6.42 बजे अपने संयोजन चरण (Conjunction Phase) में हो सकता है.
ऐसे मनाया जाएगा यौम-ए-आशुरा
देश में कोरोना वायरस के प्रकोप को देखते किसी भी पर्व को सार्वजनिक तौर पर नहीं मनाया जा रहा है. कोरोना संकट के चलते इस साल मुहर्रम के आयोजन में भी कई बदलाव किए जाएंगे. इस साल केंद्र सरकार और प्रदेश सरकारों द्वारा जारी गाइडलाइन्स के अनुसार मुहर्रम मनाया जाएगा. कोरोना संक्रमण से खुद का बचाव करते हुए अजादारों को कर्बला के शहीदों को पुरसा पेश करना होगा. यह भी पढ़ें: Ganesh Chaturthi, Muharram 2020: कोरोना महामारी को लेकर दिल्ली में सार्वजनिक स्थानों पर गणेश मूर्ति और ताजिया बैठने पर लगा प्रतिबंध
मजलिस और जुलूस का आयोजन भी सोशल डिस्टेंसिंग और कोविड-19 हेल्थ प्रोटोकॉल्स को ध्यान में रखते हुए किया जाएगा. मजलिस में लोगों के लिए जहां सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना अनिवार्य होगा तो वहीं मजलिस में आने वालों को मास्क भी दिए जाएंगे. जुलूस में भी केवल उतने लोगों को ही शामिल होने की इजाजत होगी, जितनों के लिए प्रशासन द्वारा अनुमति मिलेगी.
मुहर्रम को सुन्नी और शिया दोनों समुदाय के मुसलमान मनाते हैं. शिया मुस्लिम मुहर्रम के पहले दिन से लेकर 10वें दिन तक मातम मनाते हैं और यौम-ए-आशुरा के दिन इमाम हुसैन की याद में अपना खून बहाते हैं. इस दौरान इस समुदाय में महिलाएं और पुरुष रंगीन कपड़ों और किसी भी तरह से जश्न से दूरी बनाकर रखते हैं. वहीं सुन्नी समुदाय के लोग मुहर्रम के दसनें दिन ताजिया निकालते हैं और लाठी व तलवारबाजी कर एक-दूसरे के साथ प्रतीकात्मक जंग लड़ते हैं.