ब्रिटिश हुकूमत से भारत को आजादी दिलाने में सैकड़ों क्रांतिकारियों ने अदम्य साहस और त्याग का परिचय देते हुए हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर झूल गये. ऐसे ही अदम्य साहस और शौर्य के प्रतीक थे सिपाही मंगल पांडे. मंगल पांडे देश के पहले क्रांतिकारी थे, जिन्होंने 1857 के जंग-ए-आजादी में विद्रोही सिपाही की भूमिका निभाते हुए अंग्रेज अधिकारियों की नींद उड़ा दी थी. इस तरह आजादी के इतिहास में मंगल पांडे पहले क्रांतिकारी के रूप में दर्ज हैं. आज मंगल पांडे की 196 वीं जयंती पर याद करेंगे, उनके देश-प्रेम के प्रति अटूट त्याग, अदम्य साहस एवं बलिदान की गाथा की...
मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के बलिया (संयुक्त प्रांत, अब उत्तर प्रदेश) के नगवा गाँव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था. पिता दिवाकर पांडे पेशे से किसान थे, जबकि माँ अभय रानी गृहिणी थीं. साल 1849 में मंगल पांडे की नियुक्ति बैरकपुर में 34वीं बंगाल नेटिव इन्फेंट्री की 6वीं कंपनी में एक सिपाही के रूप में हुई.
क्यों विद्रोही बनें मंगल पांडे?
मंगल पांडे ने पूरी निष्ठा एवं आस्था के साथ ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना में शामिल हुए थे. उनकी बहादुरी की मिसाल अंग्रेज अधिकारी भी देते थे. लेकिन उन्हीं दिनों सेना में सैनिकों को एक नई एनफील्ड राइफल दिया गया था, जिसके बारे में चर्चा थी कि इस राइफल में प्रयोग की जाने वाली कारतूस वास्तव में सुअर और गाय की चर्बी लगी है. यह सुन हिंदू और मुसलमान सिपाहियों को यह बर्दाश्त नहीं हुआ, क्योंकि कारतूस को राइफल में लोड करने के लिए उसके कवर को मुंह से खोलना पड़ता था. सैनिकों ने विरोध तो जाहिर किया, मगर आगे बढ़कर कारतूस प्रयोग नहीं करने का विरोध नहीं कर पा रहे थे, लेकिन मंगल पांडे समझ गए कि अंग्रेज अधिकारी जान बूझकर धर्म के आधार पर हिंदू-मुस्लिम के बीच खाई खोदने का षड़यंत्र रच रहे हैं. मंगल पांडे ने सारे सैनिकों के एक सूत्र में बांधकर चर्बी युक्त कारतूस को इस्तेमाल करने से मना कर दिया. उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ एक विद्रोही एवं आक्रामक योजना बनाई.
जब मंगल पांडे ब्रिटिश पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया
मंगल पांडे ने बैरकपुर छावनी में रहते हुए चर्बी युक्त कारतूस के इस्तेमाल से स्पष्ट मना कर दिया और दूसरे सिपाहियों को भी ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ उकसाया. मंगल पांडे का यह विरोध अंग्रेज अफसरों का जरा भी रास नहीं आया. उन्होंने मंगल पांडे को सबक सिखाने की कोशिश की, तो मंगल पांडे ने एक अंग्रेज अफसर पर गोली चला दी. सैनिकों में विद्रोह फूंकने और अंग्रेज अधिकारी पर जानलेवा हमले के साहस से ब्रिटिश अफसर मंगल पांडे से खौफ खाने लगे. उन्होंने विद्रोह की इस चिंगारी को दावानल बनने से पहले ही गिरफ्तार कर लिया.
और चुपचाप फांसी पर चढ़ा दिये गए
अंग्रेज अफसर मंगल पांडे की निडरता और साहस से इस कदर भयभीत हो गये थे, कि उन्हें सीधा फांसी पर लटकाने का फैसला कर लिया. कोर्ट मार्शल की औपचारिकता में उन्हें 18 अप्रैल 1857 देने का फैसला सुनाया, कहा जाता है कि मंगल पांडे की वीरता से प्रभावित जल्लाद ने मंगल पांडे को फांसी पर चढ़ाने से साफ मना कर दिया. तब कंपनी के अधिकारियों ने कलकत्ता से चार जल्लाद बुलाए. इससे कई छावनियों में कंपनी के खिलाफ असंतोष भड़क गया. अंग्रेजों ने भी हालात समझते हुए मंगल पांडे को उन्हें दस दिन पहले फांसी पर चढ़ाने का फैसला किया और 8 अप्रैल को उन्हें फांसी पर लटका दिया.