Maharana Pratap Jayanti 2022: मेवाड़ के 13वें राजपूत राजा (13th Rajpur King of Mewar) महाराणा प्रताप की जयंती (Maharana Pratap Jayanti) हर साल 9 मई को मनाई जाती है. अपनी वीरता, बहादूरी और हल्दीघाटी की लड़ाई के लिए इतिहास के पन्नों पर अपना नाम दर्ज कराने वाले महाराणा प्रताप की इस साल 482वीं जयंती मनाई जा रही है. प्रताप सिंह प्रथम (Pratap Singh I) यानी महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) का जन्म 9 मई 1540 एक हिंदू राजपूत परिवार में हुआ था. उनके पिता का नाम उदय सिंह द्वितीय (Udai Singh II) और माता का नाम जयवंता बाई (Jaiwanta Bai) था. वे उदयपुर के संस्थापक उदय सिंह द्वितीय के सबसे बड़े पुत्र थे. महाराणा प्रताप एक ऐसे राजपूत वीर योद्धा थे, जिन्होंने सीमित संसाधनों के बल पर मुगलों को नाकों चने चबाने पर मजबूर कर दिया था. इसके अलावा इतिहास के पन्नों में महाराणा प्रताप के शौर्य और जांबाजी के कई किस्से दर्ज हैं.
महाराणा प्रताप एक वीर योद्धा और उत्कृष्ट युद्ध रणनीतिकार थे, जिन्होंने मुगलों द्वारा बार-बार किए जाने वाले हमलों का मुंहतोड़ जवाब देते हुए मेवाड़ की रक्षा की. वे मेवाड के 13वें राजा थे, जिसके अंतर्गत भीलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, झालावाड़, उदयपुर, नीमच और मंदसौर जैसे क्षेत्र आते हैं. महाराणा प्रताप की 480वीं जयंती पर चलिए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ अनसुनी रोचक बातें.
महाराणा प्रताप से जुड़ी रोचक बातें
1- महाराणा प्रताप की कद काठी काफी अच्छी थी. उनकी हाइट 7 फीट 5 इंच थी और उन्हें भारत के सबसे मजबूत योद्धाओं में से एक माना जाता है. यह भी पढ़ें: Maharana Pratap Jayanti 2020: स्वाधीनता के प्रत्यक्ष पथ प्रदर्शक थे महाराणा प्रताप, जानें इस योध्या से जुड़ीं अन्य रोचक तथ्य
2- युद्ध के मैदान में महाराणा प्रताप 80 किलो का भाला और दो तलवार लेकर उतरते थे. उनके अस्त्र-शस्त्र का कुल वजन 208 किलोग्राम हुआ करता था.
3- महाराणा प्रताप की 11 पत्नियां थीं और इतिहास के पन्नों में दर्ज जानकारी के अनुसार उनके 17 बेटे और 5 बेटियां थीं.
4- सन 1572 में महाराणा उदय सिंह द्वितीय की मौत हो गई थी, अपने एक भाई के साथ सत्ता संघर्ष के बाद प्रताप सिंह प्रथम मेवाड़ के महाराणा बन गए.
5- 19 जनवरी 1597 को 56 साल की उम्र में चावंड में महाराणा प्रताप की मृत्यु हो गई थी, उनकी मौत के बाद उनके सबसे बड़े पुत्र अमर सिंह प्रथम को उत्तराधिकारी बनाया गया.
6- मेवाड़ का महाराणा बनने के तुरंत बाद उनका सामना मुगल सम्राट अकबर से हुआ, जब वो गुजरात से एक स्थिर मार्ग को सुरक्षित करने के लिए मेवाड़ आया था.
7- इतिहास के जानकारों के अनुसार, जब अकबर ने उन्हें जागीरदार बनने का मौका दिया तो महाराणा प्रताप ने मुगल शासक के सामने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया, जो प्रसिद्ध हल्दीघाटी युद्ध का कारण बना.
8- मुगल बादशाह अकबर और महाराणा प्रताप के बीच 18 जून 1576 को हल्दीघाटी का युद्ध हुआ था. इस युद्ध में अकबर के पास 80,000 से भी ज्यादा सैनिक थे, जबकि महाराणा प्रताप सिर्फ 20,000 सैनिकों की फौज लेकर युद्ध के मैदान में उतरे थे. यह भी पढ़ें: Maharana Pratap Jayanti 2019: मेवाड़ के 13वें राजपूत राजा महाराणा प्रताप की 479वीं जयंती, जानिए उनसे जुड़ी 10 रोचक बातें
9- इतिहासकारों के अनुसार, अकबर की विशाल सेना और महाराणा प्रताप की छोटी सेना होने के बावजूद हल्दीघाटी की लड़ाई को न तो अकबर जीत पाया था और न ही महाराणा प्रताप इस युद्ध में हारे थे.
10- महाराणा प्रताप को अपने राज्य में मुगलों का राज किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं था, इसलिए उन्होंने करीब 6 बार महाराणा प्रताप ने अकबर को बादशाह मानकर मेवाड़ में राज चलाने की पेशकश ठुकरा दी थी और आखिरी सांस तक उन्होंने मेवाड़ की रक्षा की.
गौरतलब है कि मेवाड़ और मेवाड़ वासियों की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले महाराणा प्रताप की मौत पर मुगल बादशाह अकबर भी दुखी हुआ था. भले ही अकबर और महाराणा प्रताप के बीच प्रसिद्ध हल्दीघाटी का युद्ध हुआ हो, लेकिन अकबर दिल से महाराणा प्रताप के शौर्य और बहादूरी का प्रशंसक था. अकबर जानता था कि महाराणा प्रताप जैसा वीर योद्धा इस धरती पर दूसरा कोई नहीं है, इसलिए उनकी मौत की खबर सुनते ही अकबर की आंखों से भी आंसू छलक पड़े थे.