Magh Purnima 2019: प्रयागराज (Prayagraj) में मकर संक्रांति (Makar Sankranti) से माघी पूर्णिमा (Maghi Purnima) तक पूरे एक माह चलने वाले माघ मेले का महत्व इसी से जाना जा सकता है कि इस अवसर पर करोड़ों श्रद्धालु त्रिवेणी (Triveni) में स्नान करते हैं, ताकि उन्हें मोक्ष (Moksha) की प्राप्ति हो, इसीलिए इसे विश्व का सबसे बड़ा मेला कहा जाता है. अगर इसी माह कुंभ पड़ा हो तो इसका महत्व सैकड़ों गुना बढ़ जाता है. संयोगवश इस वर्ष प्रयागराज में कुंभ लगा होने से माघी पूर्णिमा का महत्व बहुत बढ़ गया है. अनुमान है कि इस माघी पूर्णिमा पर तीन से चार करोड़ श्रद्धालु प्रयागराज पहुंच सकते हैं.
हिन्दू पंचांग के अनुसार ‘माघी पूर्णिमा’ माघ मास के अंतिम दिन यानि पूर्णिमा को मनाया जाता है. पौराणिक ग्रंथों के मुताबिक 27 नक्षत्रों में माघा नक्षत्र से ‘माघी पूर्णिमा’ का योग बनता है. चन्द्रमा जब अपनी ही राशि कर्क में होता है एवं सूर्य (पुत्र) शनि की राशि मकर में होता है, तब माघी पूर्णिमा का योग होता है. इस योग में सूर्य और चन्द्रमा एक दूसरे के आमने-सामने होते हैं, इसे ‘पुण्य योग’ भी कहते हैं. मान्यता है कि इस योग में स्नान करने से सूर्य और चंद्रमा से मिलने वाले कष्ट नष्ट हो जाते हैं.
ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी इस तिथि का विशेष महत्व बताया गया है. कहते हैं कि इस योग में स्वयं भगवान विष्णु गंगाजल में वास करते हैं तथा सभी देवता मानव रूप धारणकर स्वर्गलोक से पृथ्वी के इस पवित्र तीर्थस्थल प्रयागराज में स्नान, जप और दान करते हैं. इसीलिए ‘माघी पूर्णिमा’ में त्रिवेणी में स्नान के बाद जप और दान करने की परंपरा है. मान्यता है कि इससे जातक की सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है. यह भी पढ़ें: 18 फरवरी 1911 में कुंभ पर शुरू हुई थी दुनिया की पहली हवाई डाक सेवा
माघी पूर्णिमा का दिन इसलिए भी बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है, क्योंकि एक माह तक संगम तट पर कपड़ों के टेंट में प्रवास करने वाले कल्पवासियों का यह अंतिम स्नान होता है. इसके पश्चात वे अपने घरों की ओर लौटने लगते हैं. हांलाकि इस बार प्रयागराज में कुंभ होने के कारण कयास लगाया जा रहा है कि कल्पवासी कुंभ के अंतिम स्नान यानि शिवरात्रि जो कि 4 मार्च को पड़ रहा है, इसी त्रिवेणी के तट पर वे प्रवास करेगे.
स्नान-दान का महत्व
माघी पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए. नदी उपलब्ध नहीं होने पर किसी जलाशय, कुँआ अथवा बावड़ी में स्नान करना चाहिए. अगर यह भी सुलभ नहीं है तो घर में ही नहाने के पानी में गंगाजल मिलाकर स्नान कर लेना चाहिए। चूंकि इस दिन गंगाजल में भगवान विष्णु का वास माना जाता है, इसलिए इस विधि से स्नान करने से भी पूरे पुण्य की प्राप्ति हो जाती है. स्नान करने के पश्चात विष्णु भगवान की पूजा करके गरीबों को भोजन करवाकर उन्हें दान-दक्षिणा देनी चाहिए। तभी गंगा स्नान का पूर्ण फल की प्राप्ति होती है.