Kasturba Gandhi 76th Death Anniversary 2020: हिंदी में एक कहावत बहुत मशहूर है कि हर सफल पुरुष के पीछे एक औरत का हाथ अवश्य होता है. इस कहावत में कितनी सच्चाई हो सकती है, यह शोध का विषय हो सकता है, लेकिन जहां तक हमारे देश के राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी (Mohandas Karamchand Gandhi) की बात करें तो निसंदेह उनके ऊपर यह कहावत शत-प्रतिशत लागू होती है, क्योंकि गांधीजी (Gandhi Ji) को ‘महात्मा गांधी’ (Mahatma Gandhi) बनाने के लिए कस्तूरबा गांधी (Kasturba Gandhi) ने गांधीजी की तुलना में ज्यादा संघर्ष किया, कदम-कदम पर उनकी हमसफर बनकर उनके हर आंदोलनों में उनका साथ दिया. यहां तक कि जब (22 फरवरी 1944) उन्होंने अंतिम सांस ली, तब भी वे महात्मा गांधी के साथ थीं, आइये जानें एक पत्नी ने पति को ‘महात्मा ’ बनाने के लिए क्या-क्या किया...
7 साल में सगाई 13 साल में शादी!
कस्तूरबा गांधी का जन्म 11 अप्रैल 1869 में गुजरात के काठियावाड़ में हुआ था. पिता ‘गोकुलदास मकनजी’ सामान्य व्यापारी थे. कस्तूरबा उनकी तीसरी संतान थी. उस जमाने में लोग बेटियों की पढ़ाई के प्रति गंभीर नहीं थे. 10-11 साल की उम्र होते-होते उनकी शादी करवाकर उन्हें ससुराल भेज दिया जाता था. कस्तूरबा के पिता और गांधीजी के पिता करीबी मित्र थे. दोनों ने अपनी मित्रता को रिश्तेदारी में बदलते हुए कस्तूरबा (7 वर्ष) और मोहनदास (6 वर्ष) की सगाई कर दी. कस्तूरबा बचपन से निरक्षर थीं और 13 साल की उम्र उनका विवाह हो गया.
कस्तूरबा की निरक्षरता पसंद नहीं थी मोहनदास को
कस्तूरबा की शुरूआती जिंदगी बहुत कठिन थी. पति मोहनदास अक्सर उनकी निरक्षरता पर ताने सुनाते थे. मोहनदास को कस्तूरबा का संजना-संवरना और घर से बाहर निकलना जरा भी पसंद नहीं था. उन्होंने उन पर शुरू से अंकुश रखने का प्रयास किया, मगर सफल नहीं हुए, क्योंकि निरक्षर होते हुए भी कस्तूरबा भीतर से बहुत तेज-तर्रार महिला थीं. साल 1888 में मोहनदास उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गये, तब कस्तूरबा गर्भवती थीं. मोहनदास की अनुपस्थिति में कस्तूरबा ने पुत्र हरिलाल को जन्म दिया और अकेले के दम पर पाला-पोसा. इस दरम्यान मोहनदास लंबे समय तक पहले इंग्लैंड फिर साउथ अफ्रीक्रा में रहे. यह भी पढ़ें: Mahatma Gandhi 72nd Death Anniversary: सफर मोहनदास करमचंद गांधी से ‘महात्मा’ बनने तक का
हर कठिन परिस्थितियों में बनीं गांधीजी की हमसफर
सन् 1896 में दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आने के बाद गांधी जी जब दुबारा दक्षिण अफ्रीका गये तो कस्तूरबा को अपने साथ दक्षिण अफ्रीका ले गये. इस समय तक ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ आजादी का बिगुल बज चुका था. मोहनदास गांधी के रूप में लोकप्रिय होने लगे थे. मोहनदास जहां भी जाते कस्तूरबा हर पल उनके साथ रहतीं. गांधी जी उपवास रखते, धरना प्रदर्शन करते, कस्तूरबा उनके साथ रहकर उनकी देखभाल करती थीं. उनके गंभीर और स्थिर स्वभाव के चलते उन्हें सभी 'बा' कहकर पुकारने लगे.
दक्षिण अफ्रीका में पहली बार जेल की सजा
दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के साथ हो रही दोगली नीति के खिलाफ गांधीजी ने आंदोलन छेड़ा था, लेकिन बहुत लोगों को जानकारी है कि वहां के भारतीयों पर की जा रही ज्यादतियों के विरुद्ध आवाज उठानेवाली कस्तूरबा ही थीं. सर्वप्रथम कस्तूरबा का ही ध्यान इस तरफ गया, उनके लिए लड़ते हुए कस्तूरबा को तीन महीने की जेल की सजा भुगतनी पड़ी. जेल में दोयम दर्जे के खाने का विरोध करते हुए कस्तूरबा ने केवल फलाहार लेने का निश्चय किया, जेल के अधिकारी फिर भी नहीं माने तो कस्तूरबा ने उपवास करना शुरू कर दिया. अंततः जेल अधिकारियों को उनके आगे झुकना पड़ा.
भारतीय महिलाओं की प्रेरणास्त्रोत बा
1915 में दक्षिण भारत से भारत वापस आने पर गांधीजी ने चंपारण सत्याग्रह शुरू किया तो कस्तूरबा भी उनके साथ साए की तरह पीछे-पीछे लगी रहीं. गांधी जी के साथ रहते हुए वहां के लोगों को साफ-सफाई, अनुशासन और पढ़ाई के महत्व के बारे में समझातीं, अंग्रेजी सरकार के खिलाफ स्थानीय महिलाओं को तैयार करती थीं. साल 1922 में जब अंग्रेज सरकार ने गांधी जी को गिरफ्तार कर लिया तब कस्तूरबा ने शेरनी की तरह आगे बढ़कर गांधीजी की गिरफ्तारी का विरोध, विदेशी कपड़ों का परित्याग किया, गांधी जी के अहिंसात्मक आंदोलन के संदेशों को गुजरात भर में प्रचारित करने के लिए गांवों का दौरा किया. इसी तरह साल 1930 में दांडी यात्रा के बाद जब गांधी पुनः जेल गये तो कस्तूरबा एक बार फिर घर की ड्योढ़ी क्रॉस कर आंदोलनकारियों का मार्ग दर्शन करती रहीं. उनकी गतिविधियों को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने उन्हें 1932 में जेल भेज दिया. यह भी पढ़ें: Mahatma Gandhi Death Anniversary 2020: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की तरह उनके विचार भी थे महान, जो देते हैं सत्य और अहिंसा की राह पर चलने की प्रेरणा
बा की मृत्यु अंग्रेजों के आपराधिक सोच की जीत हुई
9 अगस्त 1942 को ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन को गंभीरता से लेते हुए ब्रिटिश सरकार ने गांधी सहित लगभग सभी बड़े कांग्रेसी नेताओं को गिरफ्तार करके जेल भेज दिया. बापू की गैरमौजूदगी में आंदोलन ठंडा नहीं होने पाये, इस बात का ध्यान रखते हुए बापू की जगह बा ने ले ली. आंदोलन की धार कुंद नहीं होने पाये इस बात का ध्यान रखते हुए बा ने मुंबई के शिवाजी पार्क पर भाषण देने का निश्चिय किया. ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर पूना के आगा खाँ महल में नजरबंद कर दिया. यहीं पर अंग्रेजी सरकार ने गांधी जी को भी रखा हुआ था. लंबे समय से अस्वस्थ चल रहीं कस्तूरबा यहां गंभीर रूप से बीमार पड़ीं. कहा जाता है कि उनकी बीमारी को अंग्रेज सरकार ने गंभीरता से नहीं लिया.
जनवरी 1944 में उन्हें दो बार दिल का दौरा पड़ा. लोगों की तमाम कोशिशों के बावजूद अंग्रेज सरकार ने बीमार बा को जेल से रिहा नहीं किया. दरअसल उन्होंने तय कर लिया था कि कस्तूरबा जेल में पति गांधी के सामने दम तोड़ें. 22 फरवरी को 74 वर्षीया बा को दिल का तेज दौरा पड़ा और उनकी मृत्यु हो गयी. अंततः उनकी इस आपराधिक सोच की जीत हुई. बा की यह मृत्यु किसी हत्या से कम नहीं थी. बा ने बापू के सामने अंतिम सांस ली. बा स्त्रीत्व का आदर्श, शक्तिशाली, धैर्यवान, शांत और आत्मनिर्भर थीं.